सुभाष कश्यप ने पढ़ाया बिहार के MLA को कानून का पाठ

पटना : संविधान विशेषज्ञ और लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष कश्यप ने बिहार विधानमंडल के सदस्यों को आज सुझाव दिया कि वे अपने को समाज का विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग से नहीं समझें बल्कि वे जनता से जुड़े रहें क्योंकि उन्हें जो भी अधिकार प्राप्त हैं वह जनता द्वारा चुने जाने के कारण ही प्राप्त हुए […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 8, 2016 7:31 PM

पटना : संविधान विशेषज्ञ और लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष कश्यप ने बिहार विधानमंडल के सदस्यों को आज सुझाव दिया कि वे अपने को समाज का विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग से नहीं समझें बल्कि वे जनता से जुड़े रहें क्योंकि उन्हें जो भी अधिकार प्राप्त हैं वह जनता द्वारा चुने जाने के कारण ही प्राप्त हुए हैं. बिहार विधानसभा की स्थापना दिवस पर आयोजित विधानमंडल सदस्यों के प्रबोधन कार्यक्रम के अंतिम दिन विधानमंडल एवं उनके सदस्यों के विशेषाधिकार विषय से अवगत कराते हुए कश्यप ने कहा कि आज के वातावरण में जनता और उनके द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधियों के बीच एक खाई बनती जा रही है. यह लोकतंत्र के लिए बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि जनता में उनके द्वारा स्वयं चुने गए प्रतिनिधियों के प्रति आदर और आस्था में कमी देखने को मिल रही है.

जनता का प्रतिनिधि बनें

उन्होंने कहा कि संसदीय विशेषाधिकार केवल सदन के समितियों और सदस्यों के होते हैं. यह विशेषाधिकार दिये जाने का उद्देश्य यह है कि जनता के चुने हुए प्रतिनिधि अपने सदन और समितियों में बिना किसी बाधा, भय, विध्न या डर के बेरोक-टोक जनता का प्रतिनिधित्व कर सकें, उनकी समस्याएं उठा सकें और जनहित में काम कर सकें. कश्यप ने कहा कि बड़े परिप्रेक्ष्य में देखे तो सांसद या विधायक को प्राप्त विशेषाधिकार वस्तुत: जनता के विशेषाधिकार हैं और जनता के हित में काम करने लिए अपने प्रतिनिधियों को उन्होंने यह विशेषाधिकार दिया है. इसलिए सांसदों या विधायकों को प्राप्त संसदीय विशेषाधिकार केवल जनता के हित में सदन या समिति के अंदर काम करने तक सीमित हैं.

जनता से जुड़ना जरूरी

उन्होंने विधायकों और सांसदों को सुझाव दिया कि दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य में उनके लिए जरूरी होगा कि वे अपने को समाज का विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग से नहीं समझें बल्कि जनता से जुड़े रहें क्योंकि जो भी उनके अधिकार हैं वे जनता है ही प्राप्त हैं. सुभाष कश्यप ने विधायकों और सांसदों को सुझाव दिया कि उन्हें इस बात का ख्याल रखना होगा कि जनता यह नहीं समझने लगे कि उनके जनप्रतिनिधि विशेषाधिकार का इस्तेमाल उनके ही खिलाफ कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि संसदीय विशेषाधिकार का अभिप्राय यह नहीं है कि एक नया विशेष अभिजात वर्ग बने और उन्हें नागरिकों से उपर अलग से कोई अधिकार प्राप्त हो.

कश्यप ने कहा कि लोकतांत्रिक गणराज्य में कोई विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग हो ही नहीं सकता क्योंकि इसमें सभी नागरिक समान होते हैं. सभी नागरिक को समान अधिकार प्राप्त होते हैं और विधि के शासन में और कानून की नजर में सभी समान हैं और कानून का काम सभी को बिना भेदभाव के बराबर सबको संरक्षण देना है. उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में मालिक जनता है और शासकीय प्रणाली का उद्देश्य जनसेवा है. जरूरी यह है कि विधायक विधि का पालन कर आदर्श प्रस्तुत करें और सही मायनों में विधायक होने के नाते विधि पालन में उनका दायित्व और अधिक हो जाता है.

बात रखने की स्वतंत्रता

कश्यप ने विधायकों और पाषर्दों को उनके संसदीय विशेषाधिकार के बारे में बताते हुए कहा कि उन्हें सदन और समिति के नियमों का पालन करते हुए अपनी बात रखने और मतदान की पूर्ण स्वतंत्रता है. उन्होंने बताया कि सदन के किसी भी सदस्य द्वारा विशेषाधिकार हनन का मामला लाए जाने पर अध्यक्ष या सभापति को उस आशय का प्रश्न उठाने की अनुमति देने का अधिकार प्राप्त होता है, पर इसके लिए उन्हें कम से कम 19 सदस्यों का समर्थन प्राप्त होना आवश्यक है. कश्यप ने कहा कि विशेषाधिकार हनन के किसी भी मामले पर कोई फैसला लिए जाने तथा सजा सुनाने का अधिकार सदन को प्राप्त है, पर विशेषाधिकार का हनन हुआ कि नहीं और इसका दायरा क्या है उसपर निर्णय लेने का अधिकार न्यायालय के पास है. उन्होंने कहा कि सदन में अराजकता पैदा करना या उसके कार्य में बाधा उत्पन्न करना सदन की अवमाना है.

सदन का चलना जरूरी

कश्यप ने कहा कि संसदीय लोकतंत्र में प्रतिपक्ष व्यापक अर्थ में सरकार का अंग माना जाता है पर आज दुर्भाग्यवश हमारे यहां ऐसी संस्कृति बन गयी है कि जो दल प्रतिपक्ष में रहता है वह अपने को दुश्मन और काम नहीं चलने देना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझता हैं. उन्होंने विधानमंडल के सदस्यों से अनुरोध किया कि चाहे वह किसी भी दल या पक्ष की सरकार में हो. जरूरी यह है कि सदन को चलने दिया जाये क्योंकि सदन को नहीं चलने देना सदन की अवमानना है. इससे पूर्व राजग शासनकाल में वित्त मंत्री रहे और बिहार विधान परिषद में प्रतिपक्ष के नेता सुशील कुमार मोदी ने सदस्यों को बजटीय प्रक्रिया से अवगत कराया. बाढ़ विधानसभा क्षेत्र से भाजपा विधायक ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानु के यह पूछे जाने पर कि राज्यसभा या विधान परिषद के सदस्यों के निर्वाचन के समय किसी भी उम्मीदवार को वोट देना सदस्यों का विशेषाधिकार है कि नहीं। ऐसे में मामलों में सदस्यों पर पार्टी का व्हिप लागू होता है या नहीं और ऐसा करने पर किसी भी सदस्य की सदस्यता जाने का निर्णय अध्यक्ष द्वारा दिया जा सकता है, कश्यप ने इसे राजनीतिक विषय बताते हुए कहा कि इसका जवाब बिहार विधानसभा के अध्यक्ष देंगे.

अधिकारी नहीं करते सम्मान तो क्या करें

ज्ञानु के प्रश्न का उत्तर देते हुए बिहार विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि संविधान द्वारा उन्हें प्रदत्त अधिकार उसके दसवीं अनुसूची के प्रावधानों के कारण बाधित होता है और इस बारे में अध्यक्ष के निर्णय कहां तक जायज हैं इस बारे में फैसला करने का अधिकार न्यायालय को है. राजद के भाई वीरेंद्र सहित कई अन्य सदस्यों के यह पूछे जाने पर कि सरकारी अधिकारियों के उनका सम्मान नहीं किया जाना और उनकी बातें नहीं सुना जाना क्या उनके विशेषाधिकार का हनन है, कश्यप ने बताया कि इसमें विशेषाधिकार के हनन का मामला नहीं बनता बल्कि ऐसा अधिकारियों द्वारा करना अनुचित है और इस बारे में वे सरकार के प्रतिनिधि मंत्रियों से इसकी शिकायत कर सकते हैं.

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