पटना : केंद्र में मोदी सरकार की बजट को बिहार के संदर्भ में आर्थिक विशेषज्ञों ने बहुत अच्छा नहीं कहा है, वहीं कुछ विशेषज्ञों ने इस संभावना वाला बजट करार दिया है. इस बजट को विशेषज्ञ साल भर का बजट करार ना देकर इसे एक दीर्घकालीन सुधार वाला बजट मान रहे हैं. एएन सिन्हा समाज अध्ययन संस्थान के पूर्व निदेशक औ आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ डीएम दिवाकर का कहना है कि यह बजट जन शिकायतों को दूर करने वाला और एक मिक्स बजट है. उनका मानना है कि इसमें कुछ ऐसे प्रावधान हैं जो छोटे निवेशकों के लिये हैं जो एक अच्छी बात है. बजट में कुछ ऐसे दीर्घकालीन प्रावधानों की व्यवस्था भी की गयी है जो निवेश आकर्षित करने में सक्षम होगी. यह केंद्र सरकार की एक सकारात्मक पहल मानी जा सकती है.
पूर्व निदेशक बजट के कुछ प्रावधानों को नौजवानों और बेरोजगारों के अलावा छोटे निवेशकों के लिये बेहतर कह रहे हैं. उन्होंने प्रभात खबर.कॉम से बातचीत में कहा कि सरकार के इस बजट से अप्रत्यक्ष रोजगार बढ़ने की संभावना है. उन्होंने कहा कि सबसे खास बात यह है कि इस बजट को एक साल के नजरिये से देखना उचित नहीं होगा. इस बजट के जरिये सरकार ने अगले तीन साल के आर्थिक योजनाओं का खाका सामने रख रही है. हालांकि डीएम दिवाकर किसानों को लेकर चिंतित दिखते हैं और उनका कहना है कि आर्थिक सर्वे की जो रिपोर्ट आयी है उसमें यह बताया गया है कि 17 राज्यों में किसानों की औसत सलाना आमदनी मात्र 20 हजार रुपये है.
अब सवाल उठता है कि आखिर इसे 2022 में जब दोगुना किया जाएगा तो यह 40 हजार तक पहुंचेगी. उन्होंने कहा कि सरकार ने कृषि क्षेत्र और खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की बात कही है जो ठीक नहीं है. क्योंकि ऐसा होने से छोटे किसानों और उद्यमियों को काफी फायदा नहीं होगा और वह बेवजह एक गलाकाट प्रतियोगिता में धकेल दिये जायेंगे. उनके मुताबिक मध्यम वर्ग के लोगों कोटैक्स में छूट नहीं दी गयी है और सेलरी बेस लोगों के लिये यह ठीक नहीं है. रोजागार की संभावनाओं के लिये कोई भी स्पष्ट बात इस बजट में नहीं है. कुछ और आर्थिक विशेषज्ञ मानते हैं कि इस बजट से एग्रो और बिहार में लगने वाले फूड प्रोसेसिंग यूनिटों को भी लाभ नहीं होगा. यह एक ग्रेडिंग के हिसाब से पास मार्क्स वाला बजट है.