पटना में हर साल होगा कविता समारोह
पटना: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि अब हर साल पटना में भारतीय भाषाओं का कविता समारोह होगा. शुक्रवार को तीन दिवसीय भारतीय कविता समारोह का उद्घाटन करते हुए उन्होंने कहा कि साहित्य के बिना समाज की कल्पना नहीं की जा सकती. आज के दौर में सवाल यह नहीं है कि कविता और साहित्य को […]
पटना: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि अब हर साल पटना में भारतीय भाषाओं का कविता समारोह होगा. शुक्रवार को तीन दिवसीय भारतीय कविता समारोह का उद्घाटन करते हुए उन्होंने कहा कि साहित्य के बिना समाज की कल्पना नहीं की जा सकती. आज के दौर में सवाल यह नहीं है कि कविता और साहित्य को सुननेवाले कितने लोग हैं, बल्कि सवाल यह है कि कितने लोग हैं, जो कविता और साहित्य को समझते हैं. समारोह में हिंदी के प्रख्यात साहित्यकार, कवि और समालोचक अशोक वाजपेयी, मलयालम के प्रसिद्ध कवि के सच्चिदानंदन व उर्दू के नामचीन शायर कलीम अजीज भी भाग ले रहे हैं.
हिंदीभाषी ही करें अनुवाद
मुख्यमंत्री ने कहा, बिहार में साहित्य की काफी प्राचीन परंपरा रही है. अब पटना में हर साल दो साहित्योत्सव का आयोजन किया जायेगा. एक हिंदी व दूसरा अन्य भारतीय भाषाओं के लिए. उन्होंने कहा कि कविता संप्रेषण का सबसे सशक्त माध्यम है. मुख्यमंत्री ने कहा कि अन्य भारतीय भाषाओं के साहित्य का हिंदी अनुवाद करनेवाले लोग हिंदी भाषी नहीं होते. अगर हिंदी भाषी लोग अन्य भारतीय भाषाओं का अध्ययन कर उसका अनुवाद खुद हिंदी में करें, तो भारतीय साहित्य का विकास तेजी से हो सकता है. वैसे भी बिहार के लोग साहित्य और गणित में अधिक रुचि लेते हैं. अब यहां साहित्य का वातावरण बनने लगा है. हम चाहते हैं कि यहां साहित्यकारों व कवियों को मंच मिले. उन्होंने कहा कि आप लोग जितना चाहें, राजनीति की आलोचना करें, पर हमारे प्रयासों की सराहना भी जरूर करें. हमने हिंदी के साथ अन्य भारतीय भाषाओं पर जोर देने के लिए ही ऐसे आयोजन का साहस किया है.
साहित्य का मिजाज बदला
हिंदी के ख्याति लब्ध साहित्यकार, कवि और समालोचक अशोक वाजपेयी ने कहा कि साहित्य जगत को बिहार के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए कि यहां देश के सबसे अधिक साहित्य प्रेमी रहते हैं. उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि भारत में कविताओं साहित्य का इतिहास दो भागों में विभक्त है. दरअसल, आजादी से पहले की कविताओं में लोकतंत्र के भाव नहीं दिखते. लेकिन, आजादी मिलने के बाद कविता और साहित्य का मिजाज भी बदला है. लोकतंत्र में कविता और साहित्य की भाषा और शैली मुहावरेदार हो गयी है. जबकि भारत में काव्य परंपरा का इतिहास दुनिया में प्राचीनतम है. उन्होंने कहा कि कवि अल्पसंख्यक होते हैं और सरकार लोकतंत्र में अल्पसंख्यकों का विशेष ख्याल रखती है. सरकार को चाहिए कि वे साहित्य के अल्पसंख्यकों को भी अपना संरक्षण दे. उन्होंने कहा कि हिंदी कविताओं से लोगों की दूरी बढ़ रही है. अन्य भारतीय भाषाओं में लोग कवि को आदर के साथ सुनते हैं, लेकिन ऐसा हिंदी में नहीं है. उन्होंने कहा कि यह सुखद है कि साहित्य में महिलाओं और दलितों की भागीदारी बढ़ रही. हिंदी में ये थोड़ी देर से आये हैं. उन्होंने विषयांतर करते हुए कहा कि केवल साहित्य का सच अधूरा है.
न दामन पर कोई छींट..
पटना के प्रख्यात व वयोवृद्ध उर्दू शायर कलीम अजीज ने ‘न दामन पर कोई छींट न खंजर पर कोई दाग, तुम कत्ल करो हो कि कारामात करो हो’ सुना कर मंत्रमुग्ध कर दिया. मलयालम के प्रसिद्ध कवि के सच्चिदानंदन ने अपनी कई लघु कविताओं का हिंदी अनुवाद सुनाया. अध्यक्षीय भाषण में डॉ रामवचन राय ने कहा कि भारतीय कविता को नोबेल पुरस्कार हासिल होने का यह शताब्दी वर्ष है. अब से सौ साल पूर्व कविगुरु रवींद्रनाथ टैगोर को उनकी रचना ‘गीतांजलि’ के लिए नोबेल पुरस्कार मिला था. उन्होंने कहा कि कविता क्रांति की प्रेरणा तो देती ही है साथ ही शांति का संदेश भी देती है.
चार से जश्न-ए-उर्दू
चार और पांच जनवरी को पटना में उर्दू के जानकारों का बड़ा संगम आयोजित होनेवाला है. कला एवं संस्कृति विभाग की ओर से दो दिनों का ‘जश्न-ए-उर्दू’ कार्यक्रम होगा. इसमें उर्दू भाषा के विकास, उनके दस्तावेज और सुफियाना संगीत के भी कार्यक्रम आयोजित किये गये हैं. फरवरी 2014 में लिटरेरी फेस्टिवल आयोजित की जायेगी. इसमें ठेठ बिहारी साहित्यकारों का जुटान होगा. इसमें हिंदी, उर्दू, भोजपुरी और मगही भाषा क ेसाहित्यकारों को आमंत्रित किया जायेगा.