इतिहास के पन्ने में गुम है फुटबॉलर मेवालाल का नाम

अजय कुमार ajay.kumar@prabhatkhabr.in पटना : यह शायद ही किसी को याद होगा कि 1951 के एशियन गेम में ईरान के खिलाफ विजयी गोल दाग कर किस खिलाड़ी ने देश को गोल्ड मेडल दिलाया था. और तब तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उस खिलाड़ी की पीठ थपथपाते हुए कहा था: तुम्हें यह देश कभी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 20, 2016 7:36 AM
अजय कुमार
ajay.kumar@prabhatkhabr.in
पटना : यह शायद ही किसी को याद होगा कि 1951 के एशियन गेम में ईरान के खिलाफ विजयी गोल दाग कर किस खिलाड़ी ने देश को गोल्ड मेडल दिलाया था. और तब तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उस खिलाड़ी की पीठ थपथपाते हुए कहा था: तुम्हें यह देश कभी नहीं भूलेगा. देश के बारे में पता नहीं, पर बिहार अपने इस अद्वितीय खिलाड़ी को भूल गया लगता है. यह खिलाड़ी थे मेवालाल. वह नवादा जिले के हिसुआ ब्लॉक के दौलतपुर गांव में जन्मे थे.
वह फुटबॉल के बड़े खिलाड़ी थे. लंदन (1948) और हेलसिंकी (1952) ओलंपिक में वह भारतीय फुटबॉल टीम का हिस्सा रहे. प्रथम श्रेणी के मैच में इस खिलाड़ी ने मोहन बगान के खिलाफ हैट्रिक लगाकर सबको चकित कर दिया था. राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में उनके नाम 1032 गोल हैं. स्थानीय टूर्नामेंट में उनके 32 हैट्रिक का रिकॉर्ड आज तक बना हुआ है.
ऐसे हुई मेवालाल की तलाश : यह कहानी भी दिलचस्प है. नवादा में मेवालाल के बारे में कोई पक्की जानकारी नहीं थी. पर वहां के चितरघट्टी पंचायत के मुखिया रहे अभय कुमार को उनके कर्नल भाई निर्भय ने जानकारी दी कि मेवालाल नवादा जिले के रहने वाले थे.
अभय कुमार के साथ दौलतपुर प्राथमिक स्कूल की शिक्षिका पुष्पा कुमारी, राजेश मंझवेकर और नृपेंद्र कुमार ने मेवालाल के बारे में सूचना जुटानी शुरू की. इस क्रम में वे मेवालाल के पुत्र कृष्णा लाल, दामाद कृष्ण कुमार राम और बेटी मीरा लाल की तलाश करने में कामयाब रहे. कृष्णा लाल कोलकाता में रहते हैं, तो कृष्ण कुमार राम कोडरमा में. इसके बाद इतिहास में दफन हो चुके इस नायक को सतह पर लाने का काम शुरू हुआ.
पिता चले गये थे कोलकाता : मेवालाल का जन्म एक जुलाई 1926 को दौलतपुर गांव में हुआ था. उनके पिता महादेव डोम अपनी पत्नी और बच्चे को लेकर कोलकात्ता चले गये. वहां के फोर्ट विलियम में बगान की देखरेख करने का जिम्मा उन्हें मिल गया. यह 1942-45 के आसपास की बात है.
वहां के हेस्टिंग्स ग्राउंड में अंग्रेजी सेना के अफसर फुटबॉल खेला करते थे. किशोर होने पर मेवालाल भी अपने पिता के साथ हेस्टिंग्स जाने लगे. एक दिन संयोग ऐसा रहा कि ग्राउंड के बाहर गयी गेंद पर मेवालाल ने अपना पैर जमाया. सधे हुए किक ने ग्राउंड पर मौजूद अंग्रेज अफसरों को चौंका दिया. उन्होंने उस किशोर को बॉल ब्वॉय की जिम्मेदारी दे दी.
बाइसिकिल शॉट के जन्मदाता : दोनों पैर से फुटबॉल पर समान नियंत्रण मेवालाल का असाधारण कौशल था. 1945 में वह फर्स्ट डिविजन क्लब आर्यन्स से जुड़े और मोहन बगान जैसी सशक्त टीम के खिलाफ हैट्रिक लगायी. क्लब कॅरियर के दौरान उन्होंने 150 गोल दागे, जबकि संतोष ट्राॅफी में बंगाल की ओर से 39 गोल किये.
कलकत्ता फुटबॉल लीग में चार मौकों पर वह सर्वाधिक गोल करने वाले खिलाड़ी थे. प्रतिष्ठित बीएनआर क्लब से भी वह संबद्ध रहे. अपने फुटबॉल कॅरियर के दौरान वह कई यूरोपीय देशों में गये. 1951 के एशियन गेम्स के सभी मैच में उन्होंने गोल दागे थे. फाइनल में तो उनके गोल से ही भारत को गोल्ड मेडल मिला था. हवा में उछलते हुए शॉट लगाने में उन्हें महारत हासिल थी. उसे बाइसिकिल शॉट कहा जाता है.
स्कूल को दे दी थी जमीन : मेवालाल की जड़ों के बारे में पता लगाया जाने लगा, तो जानकारी मिली की सत्तर के दशक में ही उन्होंने दौलतपुर गांव की अपनी पैतृक 81 डिस्मिल जमीन स्कूल के लिए दे दी थी. उनकी ही जमीन पर प्राथमिक स्कूल चल रहा है. शिक्षिका पुष्पा कुमारी और पूर्व मुखिया अभय कुमार कहते हैं: उनके बारे में जब हम जानकारी जुटा रहे थे, तो पता चला कि कई बार वह अपने गांव आये. 2008 के दिसंबर में मेवालाल के निधन के बाद उनकी याद में एक कार्यक्रम दौलतपुर में ही किया गया. अब हर साल यह कार्यक्रम हो रहा है.
नेहरू ने कहा था इस खिलाड़ी को कभी नहीं भूलेगा देश
मेवालाल के बेटे है कृष्णा लाल. वह कोलकाता में दक्षिण-पूर्व रेलवे में नौकरी करते हैं. उनका कहना है: इतने बड़े खिलाड़ी को सम्मान मिलना बाकी है. बिहार उन्हें पश्चिम बंगाल का मानता है और पश्चिम बंगाल उन्हें बिहार का कहता है. कायदे से वह दोनों राज्यों के थे.
24 फरवरी 2010 को हेस्टिंग्स में एक पार्क का नाम मेवालाल उद्यान रखा गया. हम चाहते हैं कि वहां उनकी प्रतिमा लगे. इतिहास के अंधेरे पन्नों से बाहर निकालने वाली टीम के सदस्यों में कोई भी महादलित नहीं है. मेवालाल महादलित थे, इस सवाल पर पूर्व मुखिया अभय कुमार और पुष्पा कुमारी का कहना था: उनकी पहचान जाति से नहीं है. वह महान खिलाड़ी थे.

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