एसिड अटैक पीड़िताओं का तैयार होगा डाटा बेस
एसिड अटैक पीड़िताओं का तैयार होगा डाटा बेस- राज्य महिला आयोग व आइजी कमजोर वर्ग की पहल- पीड़िताओं को न्याय दिलाने में मिलेगी सहायतासंवाददाता4पटना मनेर की चंचल ने बहुत दुख सहे हैं. वह अपने जीवन की काली स्याह वाली रात भूले नहीं भूलती है. 21 अक्तूबर, 2012 उसके जीवन की एेसी घटना है, जिसे वह […]
एसिड अटैक पीड़िताओं का तैयार होगा डाटा बेस- राज्य महिला आयोग व आइजी कमजोर वर्ग की पहल- पीड़िताओं को न्याय दिलाने में मिलेगी सहायतासंवाददाता4पटना मनेर की चंचल ने बहुत दुख सहे हैं. वह अपने जीवन की काली स्याह वाली रात भूले नहीं भूलती है. 21 अक्तूबर, 2012 उसके जीवन की एेसी घटना है, जिसे वह भूलना भी चाहती है, तो भूल नहीं पाती है. एसिड अटैक की घटना न केवल उसे तोड़ चुकी है, बल्कि उससे उसका पूरा परिवार त्रस्त है. चंचल अकेली लड़की नहीं है, जो एसिड अटैक की शिकार है. ऐसे कई मामले हैं, जिसमें पीड़िता को न्याय के कभी थाने, ताे कभी कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं. इसके बाद भी उसे न्याय नहीं मिल पा रहा है. ऐसे में अब एसिड अटैक पीड़िता को न्याय दिलाने की पहल की जा रही है. बिहार राज्य महिला आयोग और आइजी कमजाेर वर्ग की ओर से बिहार भर में एसिड अटैक मामले का डाटा बेस तैयार किया जा रहा है. सभी जिलों के थानों से पांच वर्ष का डेटा लिया जा रहा है. इसमें एसिड अटैक के मामले की सूची थाना और जिला स्तर पर तैयार की जा रही है. विभाग के पास दर्ज मामलों की जानकारी नहींमहिला आयोग की मानें, तो एसिड अटैक के आंकड़े सरकार के पास उपलब्ध नहीं होने के कई कारण है. दरअसल एसिड अटैक कानून 2013 में लाया गया है. इससे पूर्व इससे संबंधित मामले सामान्य हिंसा के तहत दर्ज किये जाते थे. इसके अलावा कई मामलों में पीड़िता थाने तक नहीं पहुंच पाती है. वहीं इस एक्ट में अब तक जो भी मामले दर्ज किये गये हैं, वे 2013 में दर्ज किये गये हैं. लेकिन हकीकत यह भी है कि इस कानून के बाद भी उनके लिए राज्य में कोई ऐसी व्यवस्था नहीं हो पायी है, जिससे पीड़िता को न्याय के लिए भटकना न पड़े. कभी उन्हें थाने, तो कभी अस्पताल का चक्कर लगाना पड़ता है. सबसे दुखद स्थिति यह है कि किन मामलों कार्रवाई हुई और किन में नहीं, इसकी भी जानकारी विभाग के पास नहीं रहती है.नये कानून में पीड़िताओं के लिए कई सुविधाएंक्रिमिनल एमेंडमेंड लॉ के तहत आइपीसी की धारा 326 ए और 326 बी के तहत एसिड अटैक मामले में अभियुक्तों को कम से कम दस साल की सजा सुनिश्चित की गयी है. इसके अलावा 357 बी और सी के तहत कंपनसेशन और नि:शुल्क इलाज की व्यवस्था है. कोट बिहार में आइजी कमजोर वर्ग की ओर डाटा संग्रह का काम किया जा रहा है. जल्द ही डाटा बेस तैयार कर उस पर काम किया जायेगा, ताकि महिलाओं को न्याय के लिए भटकना न पड़े. – अंजुम आरा, अध्यक्ष, बिहार राज्य महिला आयोगएसिड अटैक के मामले में पीड़िता को तत्काल डॉक्टरी सुविधा की जरूरत है, पर ऐसे मामलों में थाने स्तर से ही पीड़िता का संघर्ष शुरू हो जाता है. इससे कई बार पीड़िता की मृत्यु इलाज के अभाव में हो जाती है. ऐसे में सरकार की ओर से ऐसी महिलाओं के डाटा बेस तैयार करने की आवश्यकता है. इससे पीड़िता को न्याय मिल सकेगा. – वर्षा जवलकर, समाज सेवी, परिवर्तन केंद्र\\\\B