परिवार का साथ मिला, तब जाकर छूटी शराब की लत
संगत सही हो, तो रास्ता भी सही मिलता है. कई बार काम करनेवाली जगह ही हमारी बरबादी का कारण बन जाती है. ऐसे में हम चाहते हुए भी खुद को उससे अलग नहीं कर पाते हैं. कुछ ऐसी ही कहानी गाेपालगंज के रहनेवाले आशीष राज (बदला हुआ नाम) की है. आशीष राज ने काफी प्रयास […]
संगत सही हो, तो रास्ता भी सही मिलता है. कई बार काम करनेवाली जगह ही हमारी बरबादी का कारण बन जाती है. ऐसे में हम चाहते हुए भी खुद को उससे अलग नहीं कर पाते हैं.
कुछ ऐसी ही कहानी गाेपालगंज के रहनेवाले आशीष राज (बदला हुआ नाम) की है. आशीष राज ने काफी प्रयास के बाद दो जगहों पर नौकरी ज्वाइन किया, लेकिन वहां के बॉस ने ही उन्हें शराब की लत लगा दी. दोनों ही बार आशीष राज को उनके परिवार ने साथ दिया. तब जाकर लत छूटी.
बॉस ने लगायी लत, परिवार ने दिलायी मुक्ति : मैं जब दूसरों को शराब पीते देखता था, तो बहुत ही बुरा लगता था. पूरी तरह से पैसे की बरबादी थी. लेकिन जब खुद को इसकी आदत लगी, तो आज बहुत ही पछतावा हो रहा है.
मैं साइंस से 12वीं करके 2008 में दुबई चला गया. मेरे पापा सिविल कोर्ट में कार्यरत हैं. दुबई में मैंने आगे की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद वहीं पर नौकरी मिल गयी. नौकरी करने लगा. यहीं से मुझे शराब की आदत भी लग गयी.
पहले ऑफिस में कभी-कभार शराब का सेवन करता था. बाद में रेगुलर पीने लगा. मैं इतना शराब पीने लगा कि मेरी नौकरी चली गयी. परिवार वालों ने पटना बुला लिया. फिर परिवार वालों के सहयोग से मुझे दिशा नशा विमुक्ति केंद्र में भरती किया गया. यहां पर मैं दो महीने रहा. पूरी तरह से शराब छूट गयी. मैं घर वापस आ गया. इसके कुछ दिनों के बाद मैं फिर दुबई गया. एक अच्छी नौकरी मिली और वहां ज्वाइन कर लिया.
कुछ दिनों तक तो ठीक रहा. लेकिन एक दिन बॉस के कई बार कहने पर मैंने शराब पी. धीरे-धीरे बॉस संग इसकी लत गयी. फिर से मेरी पहले वाली हालत हो गयी. जो कमाया, सब शराब में ही गंवा दिया. इसके बाद मैं घर वापस आ गया. फिर दिशा नशा विमुक्ति केंद्र में परिवार वालों ने भरती करवा दिया. अब मैं ठीक हूं. लगभग एक साल से शराब को हाथ नहीं लगाया है.