जब किसान की जिद के आगे झुके गांधी, चंपारण चलने को हुए राजी

भैरव लाल दास निलहों द्वारा चंपारण के किसानों से वसूले जानेवाले गैरकानूनी अबवाब पर ध्यान केंद्रित करते हुए राजकुमार शुक्ल ने जन जागरण अभियान चलाया. नहर के पानी से सिंचाई करने के बदले ‘पइन खर्चा’ का प्रचलन रामनगर क्षेत्र के साठी, चौतरवा और नारायणपुर क्षेत्र तक फैल चुका था. उन गांवों के किसानों से भी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 17, 2016 8:50 AM
भैरव लाल दास
निलहों द्वारा चंपारण के किसानों से वसूले जानेवाले गैरकानूनी अबवाब पर ध्यान केंद्रित करते हुए राजकुमार शुक्ल ने जन जागरण अभियान चलाया. नहर के पानी से सिंचाई करने के बदले ‘पइन खर्चा’ का प्रचलन रामनगर क्षेत्र के साठी, चौतरवा और नारायणपुर क्षेत्र तक फैल चुका था. उन गांवों के किसानों से भी ‘पइन खर्चा’ वसूला जाता जहां नहर नहीं थी.
निलहों के अवैध शोषण का कहीं अंत नहीं था. पिता की मृत्यु पर ‘बपही पुतही’ बच्चों की शादी पर ‘मरबा’, विधवा की शादी पर ‘संगुआरा’, हर सरसों घानी पर ‘ कोल्हुआवन’, तेल या दूध बेचनेवालों से ‘बाटोबहनी’, अनाज बेचनेवालों से ‘बेभाई’ के रूप फैक्टरी को पैसा देना होता था. निलहे को जब हाथी खरीदना होता था तो हर रैयत से ‘हथियही’ वसूली जाती थी और इसी तरह से ‘भैंसही’ तथा ‘घोड़ही’ के लिए भी रैयत को पैसा देना होता था. मोटर खरीदने के लिए ‘मोटरही’ या ‘हवही’ और नाव खरीदने के लिए ‘नवही’ देना होता था. यदि निलहे को घाव हो जाए तो इसके इलाज के लिए रैयतों से ‘घवही’ वसूला जाता था.
आम और कटहल की अच्छी फसल होने पर ‘अमही’ और ‘कटहलही’ देना होता था. गैरकानूनी ढंग से वसूले जाने वाले अबवाबों की सूची बहुत लंबी थी. इनमें सलामी, रसिदावन, फरकावन, दस्‍तूरी, हिसबाना, तहरिर, बिसही, पंडरही, डेरही, चराई, बांध बेहरी, जलकर, चरसा, एकद्दी, बंगलही, हकतलबाना, बेठमाफी आदि थे.
यहां तक कि किसी से अवैध संबंध बनने पर महिला को ‘सिंगार हाट’ देना होता था. शुक्ल जी गांव-गांव घूमकर किसानों से मिल कर उनकी सोच बदली कि निलहे गैर कानूनी ढंग से वसूली कर रहे हैं. 10 अप्रैल, 1914 को बांकीपुर एवं 13 अप्रैल, 1915 को छपरा में हुई बिहार कांग्रेस की बैठक में भी चंपारण पर चर्चा हुई और ब्रजकिशोर प्रसाद एवं शुक्‍ल ने इसमें भाग लिया. कानपुर से निकलनेवाले ‘प्रताप’ के संपादक गणेश शंकर विद्यार्थी थे.
‘प्रताप’ ने आंदोलन के प्रति अधिक सहानुभूति दिखायी. हरबंस सहाय और पीर मुहम्मद मूनिस छद्म नाम से प्रताप के लिए लिखते थे. विद्यार्थी जी चंपारण आंदोलन की बारीकियों से अवगत थे. आर्यसमाजी जमुनानंद ने गांधी को तार भेज कर चंपारण आने का अनुरोध कर दिया. कांग्रेस का 31वां अधिवेशन दिसंबर, 1916 के अंतिम सप्ताह में लखनऊ में हुआ, जिसमें कांग्रेस के दोनों धड़ों के नेताओं सहित मुसलिम लीग ने भी भाग लिया.
बिहार से 81 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल लखनऊ पहुंचा था, जिसमें ब्रजकिशोर प्रसाद, राजकुमार शुक्‍ल, पीर मुहम्मद मूनिस, रामदयाल प्रसाद साहू, हरबंस सहाय आदि थे. इस अधिवेशन में गांधी, नेहरू, तिलक, मालवीय आदि बड़े नेतागण भी थे. कांग्रेस अधिवेशन में बिहार के प्रतिनिधि चंपारण के किसानों के शोषण से संबंधित एक प्रस्ताव लाना चाहते थे और इसके लिए सबसे पहले ये लोग तिलक और मालवीय से मिले. उन्होंने कहा कि अभी इससे भी महत्वपूर्ण विषयों पर विमर्श होना है. हताश होकर ये लोग तंबू में गांधी से मिल कर आग्रह किया कि वह कांग्रेस अधिवेशन में यह प्रस्ताव लाएं. ब्रजकिशोर बाबू के बारे में गांधी के मन में आया कि यह एक चालाक वकील है जो गरीब किसानों और रैयतों को झूठे मुकदमों में उलझा कर उनसे पैसा ऐंठता होगा.
उन्होंने टालने की दृष्टि से कहा कि इस विषय के बारे में मैं बिल्कुल अनजान हूं और मैं यह प्रस्ताव नहीं ला सकता. शुक्ल जी ने गांधी से अनुरोध किया कि वे एक दिन के लिए चंपारण चलें और अपनी आंखों से किसानों की दुर्दशा देख लें. गांधी ने कहा कि अभी तो समय नहीं है, बाद में देखा जायेगा.ब्रजकिशोर बाबू ने कांग्रेस अधिवेशन में चंपारण से संबंधित प्रस्ताव रखा, जिसका समर्थन शुक्लजी ने किया. 28 दिसंबर, 1916 को कांग्रेस द्वारा प्रस्ताव स्वीकृत कर लिया गया कि चंपारण जांच समिति का गठन किया जाये. उधर, अधिवेशन की समाप्ति के बाद गांधी कानपुर गये और शुक्ल जी वहां भी पहुंचे. उन्होंने आग्रह किया कि यहां से चंपारण नजदीक ही है, एक बार चल कर देख लें. गांधी जब वापस अहमदाबाद गये, तो शुक्ल जी वहां भी पहुंचे.
27 फरवरी, 1917 को उन्‍होंने गांधी को पत्र लिखा कि चंपारण की जनता की स्थिति दक्षिण अफ्रीका से भी खराब है, जिस प्रकार राम के चरण स्पर्श से अहिल्या का उद्धार हुआ, आपके चंपारण आने से हम 19 लाख जनता का भी उद्धार हो जायेगा. शुक्ल जी की जिद ने गांधी को जीत लिया था. गांधी चंपारण आने के लिए राजी हो गये.

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