रोजाना 40 से 50 गाड़ियों में लगाये जा रहे डिजिटल लॉक

सभी गाड़ियों के आने-जाने की पूरे रास्ते के दौरान हो रही ट्रैकिंग पटना : राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू होने के बाद से इसकी मॉनीटरिंग बेहद दुरुस्त कर दी गयी है. इसके तहत राज्य की सीमा से होकर किसी भी तरह के उत्पाद सामानों को लेकर गुजरने वाले सभी तरह के वाहनों में डिजिटल लॉक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 6, 2016 6:35 AM
सभी गाड़ियों के आने-जाने की पूरे रास्ते के दौरान हो रही ट्रैकिंग
पटना : राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू होने के बाद से इसकी मॉनीटरिंग बेहद दुरुस्त कर दी गयी है. इसके तहत राज्य की सीमा से होकर किसी भी तरह के उत्पाद सामानों को लेकर गुजरने वाले सभी तरह के वाहनों में डिजिटल लॉक लगाने का काम शुरू हो गया है. रोजाना 40 से 50 गाड़ियों में इस खास किस्म के लॉक को लगाया जाता है. विदेशी शराब, स्पिरिट, छोआ, महुआ, शराब की खाली बोतलें समेत अन्य सभी तरह के उत्पाद सामानों को ढोने वाले वाहनों में इस डिजिटल लॉक को बिहार की सीमा में प्रवेश करने के दौरान लगा दिया जाता है.
फिर दूसरी तरफ जब ये वाहन राज्य की सीमा से बाहर निकलते हैं, तो इन्हें खोल लिया जाता है. जिन गाड़ियों में लॉक लगाया जाता है, उनका रजिस्ट्रेशन भी कराया जाता है. ताकि उत्पाद सामान ढोने वाली गाड़ियों का रिकॉर्ड भी विभाग के पास मौजूद हो.रास्ते में नहीं की जा सकती छेड़छाड़ : इस इलेक्ट्रानिक लॉक से रास्ते में किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है.
एक बार जब इसे वाहन में लगा दिया जाता है, तो फिर इसे कंट्रोल रूम से ऑनलाइन माध्यम से ही खोला जा सकता है. लॉक खोलने और बंद करने का पूरा संचालन उत्पाद विभाग में मौजूद कंट्रोल रूम से ही किया जाता है. डिजिटल लॉक को संचालित करने का पूरा काम का ठेका दिल्ली की एक सॉफ्टवेयर कंपनी को दिया गया है. इसके इंजीनियरों की एक टीम चौबीस घंटे तीन शिफ्ट में पूरा कंट्रोल करने का काम करती है. जिन गाड़ियों में लॉक लगाया जाता है, उनसे रोजाना 400 रुपये की दर से किराया भी वसूला जाता है.
अगर कोई ट्रांसपोर्टर इसे खरीदना चाहते हैं, तो 25 हजार रुपये में हमेशा के लिए खरीद सकते हैं, लेकिन उन्हें संभालकर इसे रखना होगा. जब बिहार की सीमा में प्रवेश करेंगे, तो इसे उत्पाद विभाग लॉक और अनलॉक कर देगा. अब तक करीब दो दर्जन गाड़ियों ने इसे खरीदा भी है.
पूरे रूट की ट्रैकिंग : इस लॉक में सिम कार्ड और जीपीएस (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम) भी लगा होता है. इसकी मदद से जिस गाड़ी में इसे लगाया जाता है, उसके पूरे रूट की जानकारी विभाग को कंप्यूटर के माध्यम से मिलती रहती है.
किस स्थान पर गाड़ी कितनी देर रुकती है और पूरे रास्ते के दौरान कहां-कहां रुकती है. इन तमाम बातों की जानकारी कंप्यूटर के माध्यम से विभाग को मिलती रहती है.

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