ऐसे में कैसे हो ट्रैफिक कंट्रोल!
13 घंटे की ड्यूटी में कड़ी चुनौती – आलोक द्विवेदी – पटना : सुबह 9 बजे से रात के 10 बजे तक ट्रैफिक ड्यूटी, ना तो खाने का ठिकाना और ना ही सोने का वक्त. घर के सारे काम पड़ोसी के भरोसे हैं. फिर भी राइट टाइम अलर्ट होकर ड्यूटी करनी है. बीमार होने पर […]
13 घंटे की ड्यूटी में कड़ी चुनौती
– आलोक द्विवेदी –
पटना : सुबह 9 बजे से रात के 10 बजे तक ट्रैफिक ड्यूटी, ना तो खाने का ठिकाना और ना ही सोने का वक्त. घर के सारे काम पड़ोसी के भरोसे हैं. फिर भी राइट टाइम अलर्ट होकर ड्यूटी करनी है. बीमार होने पर अवकाश के लिए दो पहले हेड क्वार्टर को सूचना देना पड़ता है कि हम बीमार होने वाले हैं.
आंखों में जलन और मानसिक अवसाद संबंधित बीमारी तो आम परेशानी है. घर से निकलते समय बच्चे स्कूल चले जाते हैं और रात के वक्त वे सोये हुए मिलते हैं. पापा शब्द सुने तो महीनों बीत जाते हैं. घर, परिवार और रिश्तेदारों को समय ना देने के कारण खुद मुसीबत में पड़ने पर कोई सहयोग देने मौके पर नहीं पहुंचता है. ये दर्द है ट्रैफिक पुलिस की.
मानसिक अवसाद से ग्रसित : पटना में 26 फीसदी पुलिसकर्मी मानसिक अवसाद से ग्रसित हैं. उक्त जानकारी सोशिएक्ट्रिस कंसल्टेंसी सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड के खुलासे के बाद मिली है. इसके साथ ही विभागीय हेल्थ जांच रिपोर्ट के अनुसार लगभग 68 प्रतिशत ट्रैफिक पुलिसकर्मी आंख की जलन और घुटने के दर्द से परेशान रहते हैं.
जबकि, 46 प्रतिशत ट्रैफिक पुलिस कर्मी कंधे और गर्दन की समस्या से ग्रसित हैं. लगभग 52 प्रतिशत ट्रैफिक पुलिस कर्मी सुनने की समस्या से त्रस्त हैं. साथ ही माइग्रेन व पेट दर्द की आम बीमारी हो गयी है.
आठ हजार में पूरे साल का मेंटनेंस : ट्रैफिक पुलिस के इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारी को पूरे साल के मेटनेंस के लिए सरकार आठ हजार रुपये देती है. जिसमें सौ रुपये प्रतिमाह पैंट-शर्ट की धुलाई के साथ जूते की पॉलिश भी शामिल है.
इसके अतरिक्त चार हजार रुपये प्रति वर्ष गरमी और ठंड के लिए कपड़ों की सिलाई शामिल है. साथ ही, 2800 रुपये अन्य मद में खर्च के लिए दिये जाते हैं. जबकि, सिपाही रैंक के अधिकारी को लगभग 5200 रुपये प्रति वर्ष मिलते हैं.
सुबह 5 बजे से शुरू होता रूटीन : ट्रैफिक पुलिसकर्मियों की दिनचर्या सुबह छह बजे से शुरू हो जाती है. ट्रैफिक इंस्पेक्टर रवि भूषण कुमार का कहना है कि जल्दी उठ कर स्नान और पूजा, पाठ करते-करते कब आठ बज जाता है, पता ही नहीं चलता है. चाय पीने के तत्काल बाद भोजन करना पड़ता है.
लेकिन, घर में छोटे बच्चे होने के कारण समय से भोजन भी उपलब्ध नहीं हो पाता है. ऐसे में कभी-कभी भूंजा और चूड़ा- दही खाकर घर से निकलना पड़ता है. इसका असर शरीर पर पड़ता है. नौ बजते ही निर्धारित स्थान पर उपलब्ध होना आवश्यक है. वरना, विभागीय कार्यवाही होने का डर बना रहता है.
ट्रैफिक कंट्रोल करते समय कार्य अवधि में लगातार खड़े रहना आवश्यक है. रात दस बजे ड्यूटी खत्म होने के बाद घर जाने के लिए ऑटो का इंतजार करना पड़ता है.