425 किलो गांजे की खेप पकड़ायी

पटना : राज्य में पूर्ण शराबबंदी की घोषणा होने के बाद गांजा जैसे मादक पदार्थों की तस्करी काफी बढ़ गयी है. पटना में ही सोमवार को आर्थिक अपराध इकाई (इओयू) की विशेष टीम ने इस वर्ष में अब तक की गांजे की सबसे बड़ी खेप को पकड़ा है. 425 किलो गांजे के एक ट्रक में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 17, 2016 7:01 AM
पटना : राज्य में पूर्ण शराबबंदी की घोषणा होने के बाद गांजा जैसे मादक पदार्थों की तस्करी काफी बढ़ गयी है. पटना में ही सोमवार को आर्थिक अपराध इकाई (इओयू) की विशेष टीम ने इस वर्ष में अब तक की गांजे की सबसे बड़ी खेप को पकड़ा है. 425 किलो गांजे के एक ट्रक में बड़े ही गोपनीय तरीके से छिपा कर ले जाया जा रहा था. इओयू की विशेष टीम ने बिहटा से शिवाला की तरफ जानेवाले रास्ते पर शिवाला मोड़ के पास इस ट्रक को घेर कर पकड़ लिया. ओड़िशा नंबर के इस ट्रक को धर्मेंद्र कुमार रजक चला रहा था. वह भोजपुर जिले के बड़हरा थाना के पंडितपुर गांव का रहने वाला है.
इसके साथ एक अन्य व्यक्ति की भी गिरफ्तारी हुई, जिसका नाम संतोष कुमार महतो उर्फ बली महतो है, जो उसी जिले और थाने के कुईयां गांव का निवासी है. दोनों के गांव आसपास ही हैं. पूछताछ में यह बात सामने आयी कि गांजे यह खेप ओड़िशा के जयपुर से लायी जा रही थी. इसे छत्तीसगढ़, झारखंड होते हुए बिहार लाया गया था. राज्य में इसे कोचस, बक्सर के रास्ते आरा-पटना होते हुए उत्तर बिहार ले जाने की साजिश थी.
ट्रक का मालिक कौन यह नहीं चला है पता इस मामले में गिरफ्तार दोनों लोगों के खिलाफ एनडीपीएस एक्ट के तहत मामला दर्ज करके कार्रवाई की जा रही है. यह ट्रक किसका है, यह पता नहीं चला है. ट्रक मालिक का नाम और पता निकाला जा रहा है. चूंकि ट्रक ओड़िशा का है. इस कारण इसके मालिक भी वहीं के होने की संभावना है. रजिस्ट्रेशन वहीं का होने के कारण इसकी जांच की जा रही है. इसके लिए इओयू की टीम ओड़िशा भी जा सकती है, ताकि पूरे रैकेट का पता चल सके.
84 पैकेट में सुनियोजित तरीके से रखे थे गांजे
425 किलो गांजे को बड़े तरीके से 84 पैकेट में बराबर तरीके से भर कर रखा गया था. इन पैकेटों को ट्रक में ड्राइवर की सीट के केबिन के पीछे बने एक खुफिया चैंबर में बड़े शानदार तरीके से सजाया गया था. बाहर से देखने में यह ट्रक सामान्य ट्रक की तरह ही लगता था. यह चैंबर केबिन का ही हिस्सा लगता था.
इसकी मोटाई भी ज्यादा नहीं थी. इस चैंबर में किसी तरह का गेट या खोलने का स्थान नहीं था. इसे खोलने के लिए इस पर लगी स्टील की चादर को खोल कर पूरा हटाना पड़ता था. इसे बाहर से देखने में कहीं से किसी को कोई शक तक नहीं होता है.

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