बिचौलियों को बाहर करने की योजना ठंडे बस्ते में

लेट-लतीफी : तीन साल पहले बनी ‘आओ बिहार योजना’ पर अब तक अमल नहीं, लोगों को नहीं मिल रही सुविधा पटना : बिचौलियों की भूमिका खत्म करने के लिए प्रशासन ने तीन साल पहले ‘आओ बिहार’ नामक योजना बनायी थी. प्रशासन का लक्ष्य जमीन मालिक व खरीदार के बीच माध्यम बन कर वास्तविक मूल्य सौदा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 24, 2016 6:52 AM
लेट-लतीफी : तीन साल पहले बनी ‘आओ बिहार योजना’ पर अब तक अमल नहीं, लोगों को नहीं मिल रही सुविधा
पटना : बिचौलियों की भूमिका खत्म करने के लिए प्रशासन ने तीन साल पहले ‘आओ बिहार’ नामक योजना बनायी थी. प्रशासन का लक्ष्य जमीन मालिक व खरीदार के बीच माध्यम बन कर वास्तविक मूल्य सौदा कराना था.
तत्कालीन डीएम संजय कुमार सिंह के स्तर पर इसकी रूपरेखा भी तैयार की गयी. लेकिन, तीन साल बाद यह योजना एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकी है. योजना को पूरी तरह ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है.
अच्छी कीमत पर बेच सकते थे जमीन
वर्ष 2013 में योजना की जो रूपरेखा तैयार की गयी थी, उसके तहत जमीन मालिकों को जमीन बेचने के लिए किसी बिचौलिये की जरूरत नहीं पड़ती. वह सीधे सरकार से संपर्क कर अच्छी कीमत पर अपनी जमीन बेच सकता था. यानी, ग्राहक खोजने का काम सरकार करती. इसके लिए सरकार को जमीन खरीदने की भी जरूरत नहीं थी, बल्कि जमीन मालिकों और ग्राहकों के बीच संपर्क कराना था.
एक से बात नहीं बनने पर खोजा जाता दूसरा ग्राहक
ऐसा होने से विक्रेता और खरीदार के बीच कोई बिचौलिया नहीं आ पाता. खरीदने वाले को सीधे विक्रेता के पास भेज दिया जाना था. इसके तहत मामला पटा तो ठीक है और नहीं, तो दूसरे ग्राहक की तलाश की जाती. हर हाल में क्रेता और विक्रेता के हितों की रक्षा होती.
योजना के बारे में मुझे फिलहाल जानकारी नहीं
योजना के बारे में मुझे फिलहाल जानकारी नहीं है. अगर ऐसी कोई ऐसी योजना है तो इसके बारे में देखता हूं. मंगलवार को इस संबंध में जानकारी ली जा सकती है.
संजय कुमार अग्रवाल, डीएम, पटना
योजना के के तहत समय-समय पर जमीन की बढ़ती-घटती कीमतों को भी ध्यान में रखा जाना था. जमीन मालिक समय -समय पर कीमत को घटा और बढ़ा सकते. इससे निवेशकों को आसानी से जमीन और जमीन मालिकों को मुंहमांगी कीमत मिल जाती. योजना के तहत बड़े भूखंडों को प्राथमिकता दी जानी थी, ताकि औद्योगिक
विकास को बढ़ावा मिल सके. जमीन की बढ़ती कीमतों और जमीन अधिग्रहण करने में सरकार को हो रही परेशानी को देखते हुए ऐसा निर्णय लिया गया था.
जिला पदाधिकारी द्वारा नामित कार्यालय में जमीन मालिकों को जमीन का पूरा ब्योरा जमा कर
कीमत बतानी थी. कीमत कितनी अवधि तक मान्य है, इसे भी बताना था. इसके बाद सरकार जमीन की जांच कराती. इसके बाद सरकार की ओर से जमीन का ब्योरा वेबसाइट पर डाला जाता. इसके बाद सरकार विज्ञापन निकाल कर निवेशकों को इसकी जानकारी देती.

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