पटना: सरकार योजना राशि खर्च नहीं करनेवाले विभागों के बजट में कटौती करने जा रही है. इसका पहला मकसद, जो विभाग राशि खर्च करने की स्थिति में हैं, उन्हें अतिरिक्त राशि उपलब्ध कराना.
दूसरा मकसद, केंद्रीय करों में हिस्सेदारी में संभावित 3000 करोड़ की कटौती के मद्देनजर विभागों के बीच बजटीय संतुलन बनाये रखना है. वित्त विभाग ने योजना एवं विकास विभाग को योजना उद्व्यय और खर्च की स्थिति की समीक्षा कर राशि कटौती करने का अनुरोध करने का निर्णय लिया है.
23 हजार करोड़ खर्च करने की चुनौती
योजना एवं विकास विभाग की हाल ही में योजना राशि के खर्च की स्थिति की समीक्षा की थी. समीक्षा के क्रम में यह खुलासा हुआ कि योजना राशि खर्च करने में उद्योग, पिछड़ा/ अत्यंत पिछड़ा वर्ग कल्याण, पर्यावरण एवं वन विभाग, पथ निर्माण, सहकारिता विभाग, शिक्षा, एससी/एसटी कल्याण, विज्ञान एवं प्रावैधिकी विभाग आदि अव्वल रहे हैं, जबकि, श्रम संसाधन, वाणिज्य कर व सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ने खर्च का खाता तक नहीं खोला है. विभाग के आंकड़े के अनुसार 43 हजार करोड़ के योजना आकार में से 31 दिसंबर, 2013 तक 20365.74 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं, जो कुल योजना आकार का 62.30 प्रतिशत है. यानी, तीन माह में 23 हजार करोड़ रुपये खर्च करने की चुनौती है. सरकार ने दिसंबर, 2013 तक 44813.24 करोड़ रुपये की योजनाओं की मंजूरी दी है.
बजट पर पड़ेगा कटौती का असर
वित्त विभाग के प्रधान सचिव रामेश्वर सिंह का कहना है कि केंद्रीय करों में हिस्सेदारी में 3000 करोड़ रुपये की कटौती का असर सरकार के बजट पर पड़ना तय है. बजट की राशि के खर्च का संतुलन बजटीय घाटे को नियंत्रण में रखने के लिए अतिरिक्त योजना उदव्यय में कटौती करना जरूरी है. आवश्यकता पड़ने पर अन्य गैरजरूरी खर्च में भी कटौती करने का निर्णय लिया जा सकता है. अगले सप्ताह योजना एवं विकास व वित्त विभाग के अधिकारियों के बीच बैठक होनी है. उसमें यह तय कर लिया जायेगा कि किस विभाग की कितनी राशि कटौती की जा सकती है.