मैदान में प्रवेश द्वार से ही शुरू हो जाती है मुश्किलों की फेहरिस्त
पटना : ऐतिहासिक यादों को अपनी जेहन में समेट कर रखने वाला गांधी मैदान अब भी उपेक्षित है. करीब साढ़े आठ करोड़ रुपये की लागत से पिछले साल ही इसका जीर्णोद्धार हुआ था.
राशि से मिट्टी भराई से लेकर बाउंड्री, गेट, बेंच व मखमली घास की व्यवस्था की गयी. बावजूद मैदान की सूरत नहीं बदली. सुबह में मॉर्निग वाक करने वाले लोग हो या शाम में फुरसत के क्षण बिताने वाले. कोई भी इस व्यवस्था से संतुष्ट नहीं है. बाहर से आने वाले लोगों की तो बात ही छोड़ दें.
मैदान के चारों मुख्य प्रवेश द्वार पर सामान्य दिनों में अतिक्रमण व गंदगी साफ दिखती है. अंदर की सड़कें भी खराब हैं. सरकार ने इस सड़क पर टाइल्स लगाने का सपना दिखाया था, लेकिन टाइल्स तो दूर, कई जगहों पर सड़क ही नहीं दिखती. इन सड़कों पर मिट्टी जमी है.
अंदरूनी सड़क के किनारे आकर्षक स्टैंड बनाये गये हैं. मैदान के बड़े हिस्से में पार्क का सपना भी सपना बन कर रह गया है. बाउंड्री वाल से समीप दीवार पर बनी क्यारियों में फूल लगाये जाने थे, लेकिन फूल तो दूर पौधे भी नहीं दिखते. मैदान को मखमली घास तो नहीं मिली, पर रैलियों ने जगह-जगह गड्ढे जरूर बना दिये. मैदान में आपको कई मवेशी घूमते मिल जायेंगे. रविवार को ‘ प्रभात खबर ‘ संवाददाता ने गांधी मैदान की वास्तविक स्थिति देखी.
शाम होते ही कब्जा
सुबह में मॉर्निग वॉक करने वाले मैदान की खराब स्थिति से परेशान हैं, तो शाम को अवैध कब्जे से. शाम होते ही मैदान के अलग-अलग हिस्से में असामाजिक तत्वों का कब्जा होने लगता है. नशेड़ी से लेकर अलग-अलग किस्म के लोग जुटने लगते हैं. इस वजह से परिवार के साथ घूमने वाले लोग शाम को मैदान पहुंचने से कतराते हैं. लाइटिंग की व्यवस्था भी सही नहीं है.
अंदर की सड़क पर लगायी गयी कई लाइट टूट गयी है, तो कई के बल्ब खराब पड़े हैं. उन पर किसी की नजर नहीं है. हालांकि गणतंत्र दिवस समारोह की तैयारी को देखते हुए इसकी व्यवस्था करायी जा रही है.