पटना : राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आरक्षण के मुद्दे पर स्थिति स्पष्ट करने के लिए पत्र भेजा है. उन्होंने लिखा है कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय के तीन जून के सर्कुलर में प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर की नियुक्ति में पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों के लिए आरक्षण समाप्त कर दिया गया है. इसको लेकर बहुसंख्यक वर्ग के लोगों में संशय की स्थिति है. यह आशंका है कि केंद्र सरकार बहुसंख्यक वर्ग को नियमों व प्रावधानों की अनदेखी करते हुए हकमारी कर रही है. इस अविश्वास की स्थिति का अंत करने के लिए प्रधानमंत्री स्थिति स्पष्ट करें कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में पिछड़े, दलित व आदिवासी वर्ग के कितने प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर नियुक्त हैं. साथ ही उनकी कुल संख्या उन्हें मिलनेवाले आरक्षण के के अनुपात में है या नहीं.
सरकार का खजाना खत्म है क्या- लालू
लालू ने लिखा है कि कुछ दिनों पहले अनुसूचित जनजाति के विद्यार्थियों को मिलने वाली फेलोशिप को भी यह हवाला देते हुए रोक दिया गया कि इसके लिए धनराशि की कमी है. प्रायः कम धनराशि का हवाला कमजोर वर्ग के लोगों से जुड़ी योजनाओं में ही क्यों दिया जाता है? और वह भी उनकी शिक्षा जैसी महत्वपूर्ण क्षेत्र से जुड़ी योजनाओं के लिए. यह राशि उनके जागरण और उत्थान के लिए आवश्यक है. क्या देश के संसाधन औरखजाने, पिछड़े, दलितों और आदिवासियों की बारी आते आते समाप्त हो जाते हैं?
घोटाला वाले विदेश भाग जाते हैं-लालू
क्या सरकार के पास लगभग 650 आदिवासी छात्रों को उच्च शिक्षा में फेलोशिप देने के लिए 80-85 करोड़ नहीं हैं? वहीं दूसरी ओर सरकार की नाक के नीचे हजारों करोड़ का घाल मेल करके बड़े उद्योगपति आसानी से विदेश भाग जाते हैं. बिहार चुनावों के दौरान आरएसएस प्रमुख ने आरक्षण को हटाने की बात कही थी. मानो उन्हीं के दया दृष्टि के कारण देश के बहुसंख्यक वर्ग को आरक्षण मिला हो.
स्थिति स्पष्ट करें नहीं तो होगा आंदोलन-लालू
लालू ने लिखा है राजस्थान और गुजरात में सबलों को आरक्षण दिया है. हरियाणा और राजस्थान में पंचायती राज संस्थाओं में शिक्षा अनिवार्य कर बहुसंख्यकों को दौड़ से बाहर करने की साजिश की है. बहुसंख्यक वर्ग को आपकी जान नहीं चाहिए, बल्कि यह भरोसा चाहिए कि यह सरकार बहुसंख्यक वर्ग की हकमारी नहीं करेगी. उन्होंने लिखा है कि वे आन्दोलन करते हुए राजनीति में आये हैं. उनके लिए राजनीति आन्दोलन का दूसरा नाम है. मंडल कमीशन को लागू करने के लिए उन्होंने संघर्ष किया, सड़कों पर उतरे. आज भी मंडल कमीशन की कई सिफारिशों को अमली जामा नहीं पहनाया गया है. आरक्षण और मंडल कमीशन के जिन भी प्रावधानों को लागू किया गया है अगर उनपर ही आंच आने लगे, तो सड़कों पर उतरने में क्षण भर भी नहीं सोचेंगे.