पियक्कड़ों की तलाश करेगा उत्पाद विभाग
पटना : राज्य में पूर्ण शराबबंदी की घोषणा हुए तीन महीने से ज्यादा समय हो गये हैं. शराबबंदी के मद्देनजर इसकी लत रखने वाले या शराब के आदी लोगों की आदत छुड़ाने के लिए प्रत्येक जिला में एक-एक नशामुक्ति सह पूनर्वास केंद्र खोले गये. पटना जिले में ऐसे दो केंद्र खोले गये, परंतु तीन महीने […]
पटना : राज्य में पूर्ण शराबबंदी की घोषणा हुए तीन महीने से ज्यादा समय हो गये हैं. शराबबंदी के मद्देनजर इसकी लत रखने वाले या शराब के आदी लोगों की आदत छुड़ाने के लिए प्रत्येक जिला में एक-एक नशामुक्ति सह पूनर्वास केंद्र खोले गये.
पटना जिले में ऐसे दो केंद्र खोले गये, परंतु तीन महीने से ज्यादा समय बीतने के बाद अब उत्पाद एवं मद्य निषेध विभाग यह नहीं समझ पा रहा है कि आखिर शराब के एडिक्ट (लत) लोग अचानक पूरी तरह से सुधर कैसे गये. क्योंकि शराबबंदी के पहले विभागीय स्तर पर हुए एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आयी थी कि पूरे राज्य में करीब 4.50 लाख लोग ऐसे हैं, जो शराब के पूरी तरह से आदी बन चुके हैं. इनके पूनर्वास की सख्त आवश्यकता है. जबकि नशामुक्ति केंद्रों तक पहुंचने वालों की संख्या महज पांच हजार के आसपास ही है. अब विभाग यह पता लगायेगा कि बचे हुए पियक्कड़ गये कहां?
तीन महीने में पहुंचे महज 5 हजार
राज्य की सभी जिलों में चल रहे नशामुक्ति केंद्रों में 5 अप्रैल से 30 जून तक ओपीडी (बाहरी लोग) में 4 हजार 700 और आइपीडी (भर्ती होने वाले) में महज 750 लोगों ने ही इलाज कराया है. जबकि सर्वे के मुताबिक, 4.50 लाख लोगों को राज्यभर में शराब की लत लग चुकी है. सभी जिलों में ऐसे लोगों की संख्या अलग-अलग है. गया, दरभंगा, सीतामढ़ी, शिवहर, पश्चिम चंपारण समेत अन्य जिलों में शराब पीने वालों की संख्या काफी ज्यादा है.
राज्य में प्रति व्यक्ति शराब की खपत करीब 7 से 8 लीटर सालाना थी. वाबजूद इसके पूर्ण शराबबंदी लागू होने के बाद नशामुक्ति केंद्रों में महज पांच हजार लोग ही आये. शराब की लत वाले 4.50 लाख लोगों में एक लाख लोग भी सेंटर तक नहीं पहुंचे. यह काफी बड़ा सवाल है, जिसका जवाब विभाग तलाशना शुरू करेगा. इसके कई अन्य मतलब भी हो सकते हैं. विभाग हर पहलू और बिंदु पर बारीकी से जांच कर रहा है.
कहीं ‘उड़ता पंजाब’ तो नहीं बनेगा बिहार
नशामुक्ति केंद्रों तक लोगों के नहीं पहुंचने का मतलब कहीं यह तो नहीं, उन्हें कहीं से शराब अवैध रूप से मिल रही है या नशा के आदी लोग शराब छोड़ कर अन्य दूसरे तरह के नशाओं को अपनाने लगे हैं. इसमें ड्रग्स या नशीली दवाओं के अलावा गांजा, चरस जैसे अन्य मादक पदार्थ भी हो सकते हैं. इसके मद्देनजर यह आशंका जतायी जा रही है कि कहीं बिहार भी तो नहीं ड्रग्स का शिकार होता जा रहा है. या, नशे के आदी लोगों ने अचानक इसे लेना छोड़ दिया, जो कहीं से भी संभव नहीं दिखता है.
एक बार इसकी गिरफ्त में फंसने के बाद लोग सहज तरीके से इससे निकल नहीं सकते हैं. शराबबंदी के बाद तीन महीने के दौरान राज्य में करीब एक हजार किलो सिर्फ गांजा और 300 किलो चरस की बरामदगी हो चुकी है, जो बेहद खतरनाक संकेत है. शराबबंदी के बाद अन्य मादक पदार्थों की तस्करी बढ़ी है.