पटना : कांग्रेस आलाकमान द्वारा यूपी विधानसभा चुनाव के मैदान ए जंग में उतरने वाले महारथियों के नाम घोषित किये जाने के बाद अब कयासबाजी बिहार लीडरशिप को लेकर की जा रही है. यूपी में प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री पद के दावेदार घोषित कर देने के बाद अब बिहार कांग्रेस में भी सुगबुगाहाट तेज हो गयी है. वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष डॉ अशोक चाैधरी के विरोधी पार्टी नेताओं का मानना है कि जल्द ही आलाकमान बिहार में नेतृत्व परिवर्तन पर फैसला ले लेगा.
इस गुट की नजर में बार प्रदेश अध्यक्ष की कुरसी किसी ब्राह्मण नेता को सौंपे जाने की तैयारी है. अशोक चौधरी के खिलाफ वाले मजबूत धड़े का तर्क एक नेता एक पद विचारधारा को लेकर भी है. हाल के दिनों में सरकार के एक मंत्री समेत कई नेताओं ने इस संबंध में बयान भी दिये हैं. जानकारों के मुताबिक राज्य में 1991 के बाद अब तक कोई ब्रह्मण नेता प्रदेश अध्यक्ष की कुरसी पर नहीं बैठा है.
1991 में डॉ जगन्नाथ मिश्र प्रदेश अध्यक्ष हुए थे. जबकि, अल्पसंख्यक बिरादरी को चार मौका मिल चुका है. 1990 के बाद सरफाराज अहमद के बाद मो हिदायतुल्ला खान, डॉ शकील अहमद और महबूब अली कैसर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं. इसी प्रकार पिछड़े तबके से लहटन चौधरी और दो बार सदानंद सिंह को मौका मिला है. अगड़े में भूमि हार जाति से राम जतन सिन्हा और अनिल शर्मा ने भी प्रदेश अध्यक्ष के पद को सुशोभित किया है.
हालांकि, प्रदेश अध्यक्ष को लेकर अब तक जितने नेताओं की कयासबाजी हो रही है उनमें अधिकतर ब्राह्मण तबके के ही लोग हैं. जबकि, यह भी सत्य है कि अब तक किसी एक नाम पर न तो आलाकमान अपनी सहमति बना पायी है और न ही यहां के नेता एक मत हो पा रहे हैं. जबकि, प्रदेश अध्यक्ष पद को लेकर कई नेता कतार में हैं. इनमें सबसे उपर राजद से कांग्रेस में आये अखिलेश प्रसाद सिंह के नाम हैं.
इनके अलावा मांझी के विधायक और पूर्व मंत्री विजय शंकर दूबे, मधुबनी जिले से आने वाले किशोर कुमार झा, पूर्व मंत्री डॉ अशोक राम, विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार रहे ब्रजेश पांडेय और कांग्रेस की राजनीति कर रहे प्रेमचंद मिश्रा के नाम चर्चा में हैं. महागंठबंधन में चालीस सीटों पर लड़ने वाली कांग्रेस ने पांच ब्राह्मण नेताओं को अपना उम्मीदवार घोषित किया था.
इनमें से चार बक्सर से संजय कुमार तिवारी, बेनीपट्टी से भावना झा, मांझी से विजय शंकर दूबे और बेतिया से मदन मोहन तिवारी चुन कर आये हैं. कांग्रेसियों का मानना है कि यूपी के चुनाव में भाजपा को रोकने के लिए लोकसभा चुनाव में उसके साथ गये ब्राह्मण मतदाताओं को इस बार रोकना जरूरी है. इसके पीछे जहां मुख्यमंत्री पद के लिए शीला दीक्षित के नाम पर मुहर लगायी गयी है.
कांग्रेस की चालीस सीटों में 27 विधायक जीत कर सदन पहुंचे हैं. कांग्रेस के पुराने गढ़ मिथिलांचल, चंपारण और बक्सर में भी उपस्थिति दर्ज हुई है.
बिहारविस चुनाव में ब्राह्मणों ने महागंठबंधन का दिया साथ
इंदिरा गांधी जन्मशती समारोह में बिहार से जिस एक नेता के नाम का चयन हुआ वह पूर्व केंद्रीय मंत्री केके तिवारी के नाम हैं. तिवारी के नाम का चयन के पीछे भी यही मकसद बताये जा रहे हैं. केके तिवारी यूपी से सटे बक्सर जिले से आते हैं. अपने जमाने में उनकी गिनती तेज तर्रार ब्राह्मण नेताओं में होती रही है. ब्राह्मण नेताओं का तर्क है कि इस बार के बिहार विधानसभा चुनाव में ब्राह्मण मतदाताओं ने खुलकर महागंठबंधन का साथ दिया है