नालंदा विश्वविद्यालय के विश्व धरोहर में शामिल होने की कहानी, पढ़ें

पटना / नयी दिल्ली : बिहार के ऐतिहासिक नालंदा विश्वविद्यालय के प्राचीन अवशेषों को यूनेस्को के विश्व धरोहर की सूची में शामिल किये जाने से पहले इसकी राह में कुछ अड़चनें आयी. हालांकि एएसआई ने कहा कि वह इस बात को लेकर आश्वस्त था कि विश्वविद्यालय को यह प्रतिष्ठित दर्जा हासिल होगा. शुक्रवार को प्राचीन […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 17, 2016 5:37 PM

पटना / नयी दिल्ली : बिहार के ऐतिहासिक नालंदा विश्वविद्यालय के प्राचीन अवशेषों को यूनेस्को के विश्व धरोहर की सूची में शामिल किये जाने से पहले इसकी राह में कुछ अड़चनें आयी. हालांकि एएसआई ने कहा कि वह इस बात को लेकर आश्वस्त था कि विश्वविद्यालय को यह प्रतिष्ठित दर्जा हासिल होगा. शुक्रवार को प्राचीन विश्वविद्यालय के पुरातात्विक स्थल को विश्व धरोहर घोषित किया गया लेकिन सूत्रों ने बताया कि इसके लिए केंद्र और बिहार सरकार की तरफ से सभी तरह के प्रयास किये जाने की आवश्यकता थी क्योंकि आईसीओएमओएस ने 200 पृष्ठ के नामांकन डोजियर में कमजोरी की तरफ इशारा किया था.

तुर्की के इस्तांबुल में हुई बैठक

तुर्की के इस्तांबुल में विश्व धरोहर समिति की 40वीं बैठक में नालंदा के अलावा चीन, ईरान और माइक्रोनेशिया के तीन अन्य स्थलों को भी विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया गया. सूत्रों ने बताया कि आईसीओएमओएस ने अपनी अनुशंसाओं में भारत से नामांकित संपत्ति के बारे में गहरा अध्ययन करने के लिए कहा था. उन्होंने बताया कि उसने साथ ही नामांकन की शब्दावली को एक्सकेवेटेड रिमेन्स ऑफ नालंदा महाविहार से बदलकर आर्कियोलॉजिकल साइट ऑफ नालंदा महाविहार’ करने का सुझाव दिया था.

पहले से आश्वस्त थी भारतीय टीम

हालांकि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने कहा है कि वह इस बात को लेकर आश्वस्त था कि नालंदा को यूनेस्को की सूची में शामिल किया जायेगा. एएसआई महानिदेशक राकेश तिवारी ने पीटीआई भाषा को बताया कि पहले दिन से हम इसे हासिल करने को लेकर आश्वस्त थे. हम लोगों का विश्वास था कि हमारा पक्ष मजबूत था और हमारे डोजियर ने इसे हमारे पक्ष में कर दिया. आईसीओएमओएस के सुझाव को लेकर हम लोग बहुत अधिक चिंतित नहीं थे.

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