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बसों के लिए 16 नियम, पर सब ताक पर
पटना: शहर में स्कूल बसों की मनमानी नहीं थम रही हैं. वे बच्चों की सुरक्षा से न केवल खिलवाड़ कर रहे हैं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट और क्षेत्रीय परिवहन प्राधिकार के निर्देशों का भी मखौल उड़ा रहे हैं. अधिकतर बसों में बच्चे ठूंसे जा रहे हैं. उनमें न कोई सुरक्षा के उपकरण हैं और न ही […]
पटना: शहर में स्कूल बसों की मनमानी नहीं थम रही हैं. वे बच्चों की सुरक्षा से न केवल खिलवाड़ कर रहे हैं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट और क्षेत्रीय परिवहन प्राधिकार के निर्देशों का भी मखौल उड़ा रहे हैं. अधिकतर बसों में बच्चे ठूंसे जा रहे हैं. उनमें न कोई सुरक्षा के उपकरण हैं और न ही फर्स्ट एड की सुविधा. बदले में अभिभावकों से मोटी रकम भी वसूली जा रही है. प्रशासन के नाक तले यह सबकुछ हो रहा है और वह आंख बंद किये बैठा है. प्राधिकार ने स्कूल बसों के लिए कुल 16 नियम तय किये गये हैं, लेकिन स्कूल बसें महज दो से तीन नियमों का ही पालन कर रही हैं.
स्कूलों से नहीं करते अनुबंध
बच्चों को स्कूल लाने-ले जाने के लिए कई एजेंसियां कार्यरत हैं. नियमानुसार स्कूलों से अनुबंध के बाद ही वे बच्चे ढो सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है. जिला प्रशासन द्वारा कुछ महीने पहले चलाये गये अभियान के बाद अनुबंध का सिलसिला बढ़ा था, लेकिन जांच के अभाव में इन दिनों यह शिथिल हो गया है.
वैन से ले जाना गैरकानूनी
कानूनन बच्चों को लाने-ले जाने के लिए वैन का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है, लेकिन आज लगभग स्कूल ऐसे वैन का इस्तेमाल कर रहे हैं. इतना ही नहीं, कई एजेंसियां वैन से ही बच्चों को स्कूल पहुंचा रही हैं.
वैन में ठूंसे जा रहे बच्चे
एक मैजिक वैन में आठ बच्चों के बैठने की जगह होती है. लेकिन, इसमें भी 18 से 20 बच्चे बैठाये जा रहे हैं. इतना ही नहीं, गाड़ी की पिछली व आगे की सीटों पर भी तीन से पांच बच्चों को बैठाया जा रहा है. कमोबेश यही स्थिति ऑटो व स्कूल बसों की भी है. सभी में सीट क्षमता से अधिक बच्चे बैठाये जा रहे हैं.
स्कूल नहीं ले रहे जिम्मेदारी
जर्जर बसों का स्कूल बस सर्विस के लिए उपयोग किया जा रहा है. स्कूल ऐसे बसों की जिम्मेदारी लेने से बच रही है. उनका कहना है कि चेकिंग की व्यवस्था सरकारी तंत्र की होती है न कि स्कूलों की.
कोई नहीं देखने वाला, सुप्रीम कोर्ट के इन नियमों की उड़ रहीं धज्जियां
1
वाहन के आगे और पीछे ‘स्कूल बस’ लिखा हो
रियलिटी चेक करीब 50 से 40 फीसदी बसों में ‘स्कूल बस’ नहीं लिखा था. बच्चों को लाने व ले जाने के लिए ऑटो, मारुति व मैजिक गाड़ियों में भी इस तरह के संदेश नहीं दिखे.
2
बस के पीछे स्कूल का नाम व दूरभाष अंकित होे
रियलिटी चेक : कई बसों में न ही स्कूल का नाम लिखा पाया गया और न ही टेलिफोन नंबर.
3
भाड़े वाली बसों पर ‘स्कूल ड्यूटी’ लिखी हो
रियलिटी चेक : यह भी अधिकतर बसों पर नहीं लिखा पाया गया. सवाल किये जाने पर पाटलिपुत्र स्थित एक निजी विद्यालय के बस ड्राइवर ने कहा कि पहले बोर्ड लगाते थे, लेकिन किसी तरह की चेकिंग नहीं होने से इसे बंद कर दिया गया.
4
स्कूल बस का रंग पीला होना चाहिए
रियलिटी चेक : स्कूल सर्विस में लगी राजधानी की अधिकतर मैजिक व मारुति सफेद रंग की हैं.
5
बस पर एक देखभाल करने वाला अटेंडेंट हों
रियलिटी चेक : स्कूल द्वारा चलायी जा रही बसों में अटेंडेंट थे, लेकिन एजेंसियों की गाड़ियों में कोई अटेंडेंट नहीं दिखा.
6
क्षमता से अधिक बच्चे नहीं बिठा सकते
रियलिटी चेक : इसका पालन 90 फीसदी स्कूली वाहन नहीं कर रहे हैं. बच्चे इनमें भेड़-बकरियों की तरह ठूंसे जा रहे हैं.
7
फर्स्ट एड बॉक्स अनिवार्य रूप से उपलब्ध हो
रियलिटी चेक : इसका नामो-निशान किसी में नहीं दिखा. ड्राइवर को यह तक मालूम नहीं है कि फर्स्ट एड बॉक्स क्या होता है.
8
बस में अग्निशमन यंत्र की व्यवस्था हो
रियलिटी चेक : यह सुविधा भी सभी बसों व गाड़ियों से नदारद थी.
सख्त कार्रवाई होगी
स्कूल बसों को मानदंडों को पूरा करने के लिए एक महीने का वक्त भी दिया गया था, जो खत्म हो चुका है. अब सुप्रीम कोर्ट के मानदंडों को पूरा नहीं करने वाले बसों पर सख्त कार्रवाई होगी. उन पर जुर्माना लगाया जायेगा. परमिट रद्द करने के लिए आरटीए को लिखा जायेगा.
सुरेंद्र झा, डीटीओ, पटना
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