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28 साल में 20 हजार केस, दोषी कौन – ग्राहक या फोरम !

पटना : उपभोक्ताओं को अधिकारों की हक के लिए कानून तो बनाये गये हैं, लेकिन लोगों की पहुंच अब भी दूर है. इसका मतलब यह कतई नहीं है, कि लोग ठगे नहीं जाते हैं या फिर उनके साथ किसी प्रकार की चिटिंग नहीं होती है. कुछ लोग या तो फोरम और कोर्ट के नाम से […]

पटना : उपभोक्ताओं को अधिकारों की हक के लिए कानून तो बनाये गये हैं, लेकिन लोगों की पहुंच अब भी दूर है. इसका मतलब यह कतई नहीं है, कि लोग ठगे नहीं जाते हैं या फिर उनके साथ किसी प्रकार की चिटिंग नहीं होती है. कुछ लोग या तो फोरम और कोर्ट के नाम से घबरा जाते हैं या फिर वे उसे नजरअंदाज कर देते हैं.
इससे वे उपभोक्ता फोरम का लाभ लेने से वंचित रह जाते हैं. यही कारण है कि जिला उपभोक्ता फोरम में पिछले 28 वर्षों में मात्र 20,453 मामले ही दर्ज हो सके हैं और वर्षवार इसकी संख्या महज 730 है.सरकार और जिला उपभोक्ता फोरम की आेर से ग्राहकों को जागरूक के लिए न तो कोई कार्यक्रम चलाया जाता है और न ही दुकानों पर इसकी कोई जानकारी दी जाती है. इसके अलावा यदि कोई आवेदक फोरम में पहुंच भी जाता है, तो मामले की सुनवाई के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है.
यानी एक्ट के प्रावधान के तहत 90 दिनों के बदले लोगों न्याय में दो से तीन साल लग जाते हैं. 1988 में फोरम के गठन के समय जितने पद स्वीकृत थे, उनकी संख्या न तो बढ़ायी गयी और न ही सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों के जगह पर नियुक्ति की गयी है. इससे जिला फोरम में नाै कर्मचारियों के जगह चार से ही काम चलाया जा रहा है.
विभाग के आवंटन में भी होती है कटौती :फाेरम का संचालन खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग की ओर से होता है. नियुक्ति प्रक्रिया से लेकर मॉनीटरिंग और कार्यालय व्यय मद का आवंटन भी इसी विभाग से होता है.
लेकिन, मांग के अनुरूप राशि भी नहीं मिल पाती है. वित्तीय वर्ष 2016-17 में फोन और इंटरनेट के लिए 35,000 की जगह मात्र 4,480 रुपये ही मिल सके. इस कारण तीन महीने से फोन भी बंद है. कर्मचारियों की मानें, तो कई बार आवेदक आवेदन पत्र पर सही -सही सूचना दर्ज नहीं कर पाते हैं, तो उन्हें फोन पर संपर्क किया जाता है. इसकी भी व्यवस्था नहीं है. इसके अलावा लेखन सामग्री, स्टांप आदि के लिए भी राशि नहीं मिल पाती है.
इनसे सीखें और करें शिकायत
पटना : निवासी अमित कुमार ने अपने पॉकेट मनी सेइनटेक्स कंपनी का पांच हजार का मोबाइल लिया था. मोबाइल खरीदते वक्त दुकानदार से सर्विस सेंटर और गारंटी व वारंटी की पूरी जानकारी भी ली थी. लेेकिन, कुछ दिनों बाद अमित के मोबाइल में खराबी आ गयी.
जब वह मोबाइल लेकर दुकान गये, तो दुकानदार ने उसे डांट कर भगा दिया. इसके बाद वह जिला उपभोक्ता फोरम में शिकायत करने पहुंचे. यहां उसे यह कह कर आवेदन देने से मना कर दिया कि फाेरम में क्षतिपूर्ति राशि मिल भी जाती है, तो बहुत चक्कर काटने पड़ेंगे. पर अमित ने किसी की नहीं मानी और जिला उपभाेक्ता फोरम में शिकायत की. कोर्ट में सुनवाई चली और अंतत: अमित को जिला जज ने पांच हजार रुपये की क्षतिपूर्ति राशि मिली.
कोर्ट के नाम से ही लगता है डर
बोरिंग रोड निवासी गुड़िया ने तीन साल पहले इमरजेंसी लाइट ली थी. उस पर दो साल की गारंटी दी गयी थी. वह कुछ महीने में ही खराब हो गयी. जब दुकान में दिखाया, तो दुकानदार ने उसे सर्विस सेंटर भेज दिया. यहां बैटरी व कई पार्ट बदलने की सलाह दी गयी.
साथ ही पैसे भी मांगे गये. गुड़िया ने जब गारंटी की बात कह कर दुकानदार से बात की, तो उसने इनकार कर दिया. बाद में गुड़िया ने इसकी शिकायत उपभोक्ता फोरम में करने की सोची. लेकिन कुछ लोगों ने उसे यह समझा कर मना कर दिया कि दो हजार के बदले कोर्ट में कई हजार खर्च करने पड़ेंगे. इससे उसने मामला दर्ज नहीं कराया.
कर्मचारी कम
जिला फोरम में एक महीने से अध्यक्ष छुट्टी पर हैं. अगस्त में अध्यक्ष के आने के बाद मामले की सुनवाई होगी. साथ ही स्टोनोग्राफर और कर्मचारियोंं की कमी बनी हुई है. इससे परेशानी बनी हुई है.
करिश्मा मंडल, सदस्य, जिला उपभोक्ता फोरम

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