पटना : फसल बीमा योजना के नाम को लेकर खींचतान के बाद बिहार सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को प्रयोगिक तौर पर इस खरीफ मौसम में लागू करने की आज घोषणा कर दी है. सहकारिता मंत्री आलोक कुमार मेहता ने आज यहां संवाददाताओं को बताया कि सहयोग्य संघवाद का सम्मान करते हुए राज्य सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को लागू करने का निर्णय लिया है. उन्होंने कहा कि इस फसल बीमा को उसके वर्तमान स्वरूप में प्रायोगिक तौर पर लागू किया जायेगा तथा क्रियान्वयन के क्रम में इसका भी मूल्यांकन किया जायेगा कि इस योजना का व्यापक लाभ राज्य के किसानों को मिलता है या बीमा कंपनी को. यह भी देखा जायेगा कि सरकार एवं किसानों की जो निधि लग रही है उसका कितना हिस्सा किसानों को क्षतिपूर्ति के रूप में मिलता है.
15 अगस्त है अंतिम तिथि
मेहता ने बताया कि इस योजना को लागू करने की अंतिम तिथि आगामी 15 अगस्त है और आवश्यकता पड़ी तो राज्य सरकार इसे बढ़ायेगी. इस अवसर पर सहकारिता विभाग के प्रधान सचिव अमृत लाल मीणा और सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के सचिव तथा मंत्रिमंडल सचिवालय विभाग के प्रधान सचिव ब्रजेश महरोत्रा भी उपस्थित थे. उल्लेखनीय है कि इस योजना का नाम प्रधानमंत्री के नाम पर रखे जाने की हाल में ही बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आलोचना करते हुए कहा था इस योजना का नाम केवल प्रधानमंत्री के नाम पर रखे जाने के बजाय इसका नाम ‘पीएम-सीएम फार्मर इंष्योरेंस स्कीम अथवा केंद्र-राज्य फसल बीमा योजना’ रखा जाना चाहिए क्योंकि इस योजना का भार केंद्र और राज्य दोनों वहन कर रहा है.
योजना के स्वरूप पर सवाल
मेहता ने गत आठ अगस्त को केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने दिल्ली में मुलाकात की थी पर इस मामले का कोई हल नहीं निकल पाया था जिसके बाद केंद्रीय कृषि मंत्री ने मेहता को पत्र लिखकर उनका ध्यान आकृष्ट कराया था कि इससे अंतत: बिहार के किसानों का अहित होगा. भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी और प्रदेश के अन्य दलों ने नीतीश सरकार पर इस योजना के प्रधानमंत्री के नाम पर होने के कारण इसे लागू नहीं किये जाने को लेकर हमला बोला था. मेहता ने कहा कि योजना के स्वरूप के संबंध में राज्य सरकार ने जो समस्याएं उठाई है उसका युक्ति युक्त निराकरण केंद्र सरकार के स्तर से संभव नहीं हो सका है.
राज्य के उठाये बिंदु पर करना होगा विचार-मंत्री
उन्होंने कहा कि बिहार सरकार ने इस योजना को क्रियान्वित करने के उद्देश्य से ही इसकी स्वीकृति मंत्रिपरिषद ने दी थी. अच्छा तो यह होता कि राज्य सरकार द्वारा उठाये गये बिन्दुओं पर केंद्र उचित निर्णय लेता. मेहता ने कहा कि केंद्र सरकार को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की 90 प्रतिशत राशि वहन करने के साथ सभी राज्यों में प्रीमियम दरों में एकरूपता लानी चाहिए ताकि प्रदेश में किसान इस योजना का अधिक से अधिक लाभ उठा सकते.
अन्य राज्यों से बिहार का प्रीमियम ज्यादा
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लिए निकाली गयी निविदा जिसमें छह बीमा कंपनियों ने भाग लिया, बिहार को 14.92 प्रतिशत औसत न्यूनतम प्रीमियम देना पड़ रहा है जबकि पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ, मध्य प्रदेश और झारखंड में क्रमश: 3.25 प्रतिशत, 4.09 प्रतिशत, 4.00 प्रतिशत, 9.55 प्रतिशत, और 13.82 प्रतिशत औसत न्यूनतम प्रीमियम पड़ रहा है. मेहता ने एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कंपनी ऑफ इंडिया लि. जो भारत सरकार की बीमा कंपनी है के द्वारा उत्तर प्रदेश में औसत न्यूनतम प्रीमियम की दर 4.09 प्रतिशत दी गयी है जबकि उसी कंपनी द्वारा बिहार में छह कलस्टर के लिए तय न्यूमतम प्रीमियम की दरें अत्यधिक और अतार्किक हैं.
प्रीमियम 1500 करोड रुपये पड़ेगा
मेहता ने कहा कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के दिशा निर्देशानुसार खरीफ 2016 के लिए बीमित राशि करीब दस हजार रुपये होने की संभावना है और उसका प्रीमियम 1500 करोड रुपये पड़ेगा. उन्होंने कहा कि उक्त 1500 करोड रुपये में से 650 करोड रुपये राज्य सरकार एवं 200 करोड रुपये राज्य के किसान देंगे। इस प्रकार राज्य की ओर से 850 करोड रुपये अर्थात कुल प्रीमियम का 56.66 प्रतिशत राज्य की भागीदारी होगी जो बीमा कंपनी को भुगतान होगा। चूंकि यह केंद्र प्रायोजित योजना है अत: इसमें केंद्र सरकार की भागीदारी अधिक होनी चाहिए थी.
ऋणी किसानों को इस योजना से लाभ नहीं
मेहता ने कहा कि बिहार राज्य में कुल किसानों की संख्या लगभग 1.62 करोड है. स्पष्टत: फसल बीमा योजना में राज्य के कुल किसानों का लगभग 10 प्रतिशतऋणी किसान ही आच्छादित हो पायेंगे। शेष लगभग 90 प्रतिशत गैर ऋणी किसानों को इस योजना से लाभ मिलने की संभावना क्षीण है. उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना में भी किसानों के लिए प्रीमियम दर निर्धारित था एवं काफी कम यथा धान के 2.5 प्रतिशत तथा गेहूं के लिए 1.5 प्रतिशत था. इस योजना में सिर्फ भारत सरकार की कंपनी एआइसी कार्यान्वयन के लिए प्राधिकृत थी. मेहता ने कहा कि उक्त योजना में किसानों से जो प्रीमियम प्राप्त होता था उस राशि तक क्षतिपूर्ति का भुगतान एआइसी द्वारा किया जाता था एवं प्रीमियम से अधिक क्षतिपूर्ति राशि राज्य एवं केंद्र सरकार के बीच 50:50 के अनुपात में वहन होता था. इस प्रकार सिद्धान्तत: सरकार द्वारा किया गया व्यय सीधे किसानों को भुगतान होता था.