पटना : केंद्र सरकार से बिहार अपने अब तक के बकाये 6395 करोड़ रुपये की मांग प्रमुखता से करेगा. ये रुपये 12वीं पंचवर्षीय योजना के हैं. चालू वित्तीय वर्ष इस पंचवर्षीय योजना का आखिरी वर्ष है.अगर इस वित्तीय वर्ष में भी रुपये नहीं मिले, तो यह राशि अटक सकती है. ये बातें विकास आयुक्त शिशिर कुमार सिन्हा और योजना एवं विकास विभाग के प्रधान सचिव डॉ दीपक प्रसाद ने सूचना भवन के सभाकक्ष में गुरुवार को आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहीं.
उन्होंने कहा कि केंद्र ने बिहार के साथ काफी नाइंसाफी की है. रुपये देने में काफी बड़े स्तर पर कटौती करने की वजह से राज्य की कई योजनाएंबाधित या इनकी रफ्तार धीमी पड़ सकती है. 12वीं पंचवर्षीय योजना में पिछले वित्तीय वर्ष भी एक हजार करोड़ रुपये कम मिले थे और 5395 करोड़ रुपये चालू वित्तीय वर्ष के हैं. इनमें 902 करोड़ रुपये ऐसे हैं, जिनके तहत ऊर्जा क्षेत्र की आठ और सड़क की एक योजना को केंद्र ने स्वीकृति भी प्रदान कर दी है, लेकिन केंद्र रुपये नहीं जारी कर रहा है. पटना में बन रहे लोहिया पथ चक्र के लिए भी 1200 करोड़ रुपये केंद्र से मांगे गये हैं.
अधिकारियों ने यह भी बताया कि दो अक्तूबर से राज्य में मुख्यमंत्री निश्चय सहायता भत्ता योजना शुरू हो रही है. इसके तहत बेरोजगार युवाओं को एक हजार रुपये मासिक भत्ता दो वर्ष तक दिया जायेगा. जिला स्तर पर इसकी तैयारी शुरू हो गयी है.
सीएसएस में शेयरिंग पैटर्न बदलने से 4500 करोड़ का बोझ
उन्होंने बताया कि केंद्र प्रायोजित योजनाओं (सीएसएस) में सिर्फ शेयरिंग पैटर्न बदलने से राज्य पर चार हजार 500 करोड़ रुपये का अतिरिक्त आर्थिक बोझ बढ़ा है. इसके अलावा अन्य क्षेत्र में कटौती के कारण भी राज्य को करीब चार हजार करोड़ का नुकसान हुआ है. दूसरी तरफ केंद्र टैक्स शेयर को 32 से बढ़ा कर 42 प्रतिशत करने की बात कह रहा है. इससे राज्य को 10 हजार करोड़ सालाना का अतिरिक्त लाभ मिलने की बात कही जा रही है, जबकि हकीकत में शेयरिंग पैटर्न बदलने से 8500 करोड़ का सीधा नुकसान हुआ है. इस तरह देखा जाये, तो बिहार को महज 2,500 करोड़ का फायदा हुआ है और 8,500 करोड़ का नुकसान हुआ है. राज्य के आंतरिक टैक्स कलेक्शन के स्रोत अच्छा होने की वजह से बिहार 8500 करोड़ का नुकसान उठाने में सक्षम हो सका है.
पिछले साल से योजना आकार 49% बड़ा
बिहार का योजना आकार पिछले साल की तुलना में 49% बढ़ा है. इस बार 78 हजार करोड़ के योजना आकार में अब तक 14.50% खर्च हो चुका है. बरसात के बाद खर्च का प्रतिशत तेजी से बढ़ेगा. इस बार सौ फीसदी योजना आकार खर्च होगा. पिछली बार यह खर्च करीब 98% था.
2004-05 की तुलना में 2016-17 में राज्य के आधारभूत संरचना के योजना आकार में 21 गुना और सामाजिक क्षेत्र के योजना आकार में 27 गुना बढ़ोतरी हुई है. अगर सिर्फ योजना आकार की बात की जाये, तो यह वृद्धि 26 गुना है. दो अक्तूबर से युवाओं के लिए स्वयं सहायता भत्ता, सभी जिलों में तैयारी शुरू
बिहार केंद्र को देगा उचित आंकड़ा, सुधार की मांग
पटना : केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) की ओर से जारी उन प्रारंभिक आंकड़ों पर बिहार सरकार ने आपत्ति जतायी है, जिसमें 2015-16 में राज्य की विकास दर में 5.88% की गिरावट दिखायी गयी है. गुरुवार को सूचना भवन के सभाकक्ष में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में विकास आयुक्त शिशिर कुमार सिन्हा और योजना एवं विकास विभाग के प्रधान सचिव डॉ दीपक प्रसाद ने कहा कि हम राज्य की विकास दर से जुड़े इन आंकड़ों में सुधार करने का प्रस्ताव लेकर जल्द ही दिल्ली जायेंगे. सीएसओ के आंकड़े को खारिज करते हुए विकास आयुक्त ने कहा कि ये प्रारंभिक आंकड़े हैं. अभी अंतिम आंकड़े आने बाकी हैं.
इन आंकड़ों को बिना राज्य से डाटा लिये हुए ही जारी कर दिया गया है. इस वजह से गड़बड़ी हुई है, जबकि कुछ दिन पहले ही सीएसओ ने बिहार की विकास दर 10.59% बतायी थी. मालूम हो कि सीएसओ की ओर से जारी प्रारंभिक आंकड़ों में वर्ष 2015-16 में बिहार की विकास दर 7.14% बतायी गयी है, जबकि वर्ष 2014-15 यह 13.02% थी. विकास आयुक्त ने कहा, सीएसओ की ओर से जारी आंकड़ों में राज्य के सेकेंडरी सेक्टर में ग्रोथ रेट 3.42% से बढ़ कर 10.42% बतायी गयी है. इस सेक्टर में आधारभूत संरचना, गैस उपयोग, पानी सप्लाइ समेत अन्य उपयोगी सेवाएं शामिल हैं. वहीं, तृतीय सेक्टर की विकास दर में भारी गिरावट दिखायी गयी है. इसमें विकार दर 22% से गिर कर 7.40% बतायी गयी है, जो संभव नहीं है.
इस सेक्टर में एयर ट्रांसपोर्ट (4.46% की गिरावट), भंडारण (4.43% की कमी), पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन (3.98% की कमी), व्यापार (16.01% की गिरावट) के अलावा होटल, वाणिज्य समेत अन्य वित्तीय सेक्टर में भी गिरावट बतायी गयी है. इसी सेक्टर में गिरावट की वजह से राज्य के ग्रोथ रेट को कम तर करके बताया जा रहा है, जबकि स्थिति ऐसी नहीं है. राज्य में इन सेक्टरों में काफी अच्छा ग्रोथ हुआ है. इसका विस्तृत ब्योरा जल्द ही एनएसएसओ के सामने प्रस्तुत किया जायेगा. तमाम आंकड़ों को प्रस्तुत कर बिहार की यह कोशिश होगी कि अंतिम रूप से जारी रिपोर्ट में इसे सुधार लिया जाये.
प्राथमिक या प्राइमरी सेक्टर में भी गिरावट बतायी गयी है. हालांकि, यह कमी बेहद मामूली है. इसमें सिर्फ 0.58% की गिरावट आयी है. इस सेक्टर में कृषि, बागवानी समेत ऐसे ही अन्य क्षेत्र शामिल हैं.
फसल बीमा :राज्य सरकार ने केंद्र से 31 अगस्त तक समय बढ़ाने की मांग की
पटना : राज्य में पीएम फसल बीमा योजना लागू करने के निर्णय के बाद राज्य सरकार ने अब बीमा के लिए केंद्र सरकार से समय बढ़ाने की मांग की है. सहकारिता विभाग ने केंद्रीय कृषि मंत्रालय को पत्र लिख कर कहा है कि बीमा कराने के लिए समय काफी कम बचा है. ऐसे में बड़ी संख्या में किसानों को इसका लाभ नहीं मिलेगा. राज्य सरकार ने ऋणी और गैर ऋणी दोनों श्रेणियों के किसानों के लिए समय विस्तार की मांग की है. केंद्र के राज्यों के लिए फसल चक्र संबंधी दस्तावेज का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि बिहार में खरीफ फसल की रोपनी 31 अगस्त तक होती है.
इसलिए बिहार में फसल बीमा के लिए समय का विस्तार 31 अगस्त तक किया जाये, ताकि सभी श्रेणियों के किसानों को बीमा के लिए पूरा समय मिल सके. सहकारिता विभाग के अधिकारी ने बताया कि केंद्र सरकार समय में विस्तार नहीं करेगी, ताे तीन-चार दिनों में पूरे राज्य के किसानों के फसल बीमा करना करना संभव नहीं होगा. राज्य सरकार के पत्र की कर रहा हूं प्रतीक्षा : राधामोहन : वहीं, दूसरी ओर केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने सहकारिता मंत्री आलोक कुमार मेहता को पत्र लिख कर कहा है कि पीएम फसल बीमा पर राज्य सरकार की सहमति और समय बढ़ाने की मांग के बाद से आपके पत्र का 24 घंटे से प्रतीक्षा कर रहा हूं.
इसके बावजूद अवधि विस्तार के लिए अब तक आपका लिखित पत्र नहीं मिला है, जबकि मक्का का बीमा लेने के लिए आखिरी तिथि 10 अगस्त तक ही तय थी और धान की बीमा के लिए आखिरी तिथि 15 अगस्त है. उन्होंने राज्य सरकार से उम्मीद किया है कि समय बढ़ाने के लिए उन्हें लिखित पत्र जल्द शीघ्र मिले.
फोन पर बातचीत में उन्होंने कहा कि राज्य सरकार का पत्र मिलने के बाद जल्द निर्णय लिया जायेगा, लेकिन राज्य सरकार का पत्र तो मिले. मालूम हो कि राज्य में पीएम फसल बीमा में ऋणी और गैर ऋणी किसानों के फसलों का बीमा होगा. केसीसी लेनेवाले 16 लाख किसानों की फसल का बीमा होगा. वहीं, राज्य के 1.26 करोड़ किसानों में से लगभग 1.10 करोड़ किसानों के बीच से गैर ऋणी किसानों को भी बीमा कराने का मौका मिलेगा. खरीफ 2014 में 8651, रबी 14-15 में 51716 और खरीफ 2015 में लगभग 65000 गैर ऋणी किसानों ने फसल बीमा कराया था.