अब शुरुआत विक्रमशिला विवि की होनी चाहिए : नीतीश

संवाददाता. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नालंदा विश्वविद्यालय के पहले दीक्षांत समारोह में कहा कि इस विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने की कोशिश अब मूर्तरूप में प्रकट होने लगी है. इसके बाद अब विक्रमशिला विश्वविद्यालय की शुरुआत होनी चाहिए. इसी तरह तेलहाड़ा में भी नालंदा की तरह बेहद प्राचीन विश्वविद्यालय के अवशेष प्राप्त हुए हैं. उन्होंने कहा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 28, 2016 1:53 AM
संवाददाता. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नालंदा विश्वविद्यालय के पहले दीक्षांत समारोह में कहा कि इस विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने की कोशिश अब मूर्तरूप में प्रकट होने लगी है. इसके बाद अब विक्रमशिला विश्वविद्यालय की शुरुआत होनी चाहिए. इसी तरह तेलहाड़ा में भी नालंदा की तरह बेहद प्राचीन विश्वविद्यालय के अवशेष प्राप्त हुए हैं. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार नालंदा विश्वविद्यालय को पूरी तरह से स्थापित करने के लिए जो भी मदद की जरूरत है, वह पहले से करती आयी है और आगे भी करती रहेगी. जिस विश्वविद्यालय की शुरुआत 2006 में हुई थी 10 साल बाद वह इस रूप में पहुंचा चुका है कि यहां पहला दीक्षांत समारोह आयोजित किया गया है. परंतु सबसे बड़ी बात है कि यह विश्वविद्यालय जल्द ही अपने कैंपस में शिफ्ट हो जाये. अस्थायी व्यवस्था में विश्वविद्यालय को चलाना अच्छी बात नहीं है.

इसका अपना भवन कितने साल में बनकर तैयार हो जायेगा,इसकी जानकारी अभी तक नहीं है. उन्होंने कहा कि आज इस मौके पर केंद्रीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का भी आना तय था, लेकिन किसी कारण से वह नहीं आ सकी. अगर आती, तो यह जरूर पूछते कि यह विश्वविद्यालय आखिर कितने वर्ष में बनकर तैयार हो जायेगा. सीएम ने इस मामले में राष्ट्रपति से अनुरोध किया कि वह अपने स्तर से विदेश मंत्रालय से बात करें और इसका निर्माण कार्य जल्द ही पूरा कराने की पहल करें. बस इसका निर्माण कार्य जल्द पूरा करा लिया जाये, तो बेहतर होगा. उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा कि हम तो इस विवि को अपना समझते हैं और इसे अपना ही अंग मानते हैं. आपलोग हमें अपना हिस्सा समझे या नहीं.

मुख्यमंत्री ने कहा कि बिहार सरकार से इस विश्वविद्यालय को जो जरूरत है, वह देने के लिए तैयार है. वर्तमान में 445 एकड़ जमीन इसे मिली हुई है, जिस पर बाउंडरी भी की हुई है. इसके अलावा 70 एकड़ जमीन विश्वविद्यालय के नाम पर चिन्हित करके पास में ही रख दी गयी है. इसे जब जरूरत पड़े विवि उपयोग कर सकता है. विवि जैसे चाहे वैसे इसका उपयोग कर सकता है. इस जमीन का उपयोग कई तरह के कार्यों को कराने में भी किया जा सकता है, जिससे विवि किसी तरह का आय भी कर सकता है. यह विवि को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने में भी मदद करेगा. विवि के आसपास के दर्जनों गांवों को भी इससे जोड़ते हुए कई तरह की गतिविधि चलाने का प्रस्ताव है. इससे आसपास के लोगों का भी विकास होगा. उन्होंने कहा कि बिहार में विश्व स्तर पर ज्ञान को स्थापित करने वाले कई प्राचीन संस्थान हैं. इनका भी पुरुस्थान करने की जरूरत है. तेलहाड़ा में पहली शताब्दी के अवशेष मिले हैं, जिसे नालंदा विवि से भी पुराना माना जा रहा है. इस स्थल की खुदाई राज्य अपने स्तर से करवा रही है. राज्य का पुराना इतिहास फिर मूर्तरूप लेगा. इसके लिए पहल करने की जरूरत है.
उन्होंने कहा कि जिन लोगों की दिलचस्पी इतिहास में है, वे जानते हैं कि आज का दिन कितना खास है. बिहार ने इस एेतिहासिक विश्वविद्याल का फिर से गठन करने के लिए एक विशेष बिल तैयार किया था. तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के सुझाव के बाद 2006 में बिहार ने इसके लिए एक कानून बनाया. इस बिल का ड्राफ्ट मौजूदा कुलाधिपति जॉर्ज यो के पास भी भेजा गया था. उन्होंने इसमें एक शब्द का सुधार करवाया था. मजकिया लहजे में कहा कि यह संशोधन आज भी राज्य सरकार के पास सुरक्षित रखा हुआ है. इसके बाद केंद्र और अन्य देशों का सहयोग इस विवि को मिलने लगा. फिर भी अभी तक इसका पूरी तरह से विकास नहीं हो सका है. उन्होंने कहा कि आने वाले समय में छात्रों की संख्या यहां काफी बढ़ेगी. इसके मद्देनजर इसे अपने कैंपस में शिफ्ट करना बेहद जरूरी है.
मुख्यमंत्री ने कहा कि यहां से 13 किमी की दूरी पर स्थित नालंदा विवि के एेतिहासिक खंडहर को वर्ल्ड हेरिटेड साइट घोषित होने में इतना समय लग गया. इसके लिए भी काफी संघर्ष करना पड़ा. यूनेस्को में डेस्क पर बैठे लोग न जाने कैसे-कैसे साइट्स को विश्व धरोहर घोषित कर देते हैं, लेकिन इसे धरोहर धोषित करने में काफी समय लग गया. इसके लिए भी वोटिंग करवानी पड़ी. परंतु यह हमारे लिए बेहद गर्व की बात है कि वोटिंग करने के बाद इसे विश्व धरोहर धोषित किया गया. उन्होंने कहा कि नालंदा विश्वविद्यालय के निर्माण में बेहद खास किस्म की ईटों का उपयोग किया जा रहा है. इन ईंटों को पकाया नहीं गया है. इस तरह की ईंटों का उपयोग राज्य सरकार भी अपने भवनों में करेगी.

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