पटना. योग्यता के अभाव में न ज्ञान योग का संपादन हो सकेगा, न भक्ति योग ही उसके लिए फलप्रद हो सकेगा. इसके साथ ही वह शरणागति का भी अवलंबी नहीं बनेगा. ये बातें जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्री रामनरेशाचार्य जी महाराज ने कहीं. उन्होंने कहा कि शरणागति का अधिकारी वही है जिसमें वह इस ज्ञान से भरपूर हो कि मैं मोक्ष के लिए ज्ञान की साधना तथा भक्ति की भी साधना नहीं कर सकता.
मुझे तो केवल भगवत शरणागति के माध्यम से ही अपने जीवन को परम फल मोक्ष से जोड़ना है. हनुमान जी ने अपनी विलक्षण वाक्य पटुता से विभीषण जी के संदेह को दूर किया. उन्होंने समझाया कि प्रभु की शरणागति के लिए किसी जाति, आकार-प्रकार, रूप-रंग तथा ज्ञान-विज्ञान की अपेक्षा नहीं. इनके अभाव की अनुभूति भी शरणागति की साधिका है, बाधिका नहीं.