नहीं निकाला था टेंडर, विकास ने गुजरात की कंपनी को बनाया था मोहरा

पटना. बिहार बोर्ड के प्रिटिंग व टेंडर के फर्जीवाड़े की जांच में पुलिस के हाथ एक और सबूत लगी है. गुजरात के अहमदाबाद की प्रिटिंग कंपनी को उत्तरपुस्तिका की प्रिंटिंग के लिए टेंडर दिये जाने के मामले में बिहार बोर्ड ने यह साफ कर दिया है कि विभाग की तरफ से कोई टेंडर जारी नहीं […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 8, 2016 5:40 AM
पटना. बिहार बोर्ड के प्रिटिंग व टेंडर के फर्जीवाड़े की जांच में पुलिस के हाथ एक और सबूत लगी है. गुजरात के अहमदाबाद की प्रिटिंग कंपनी को उत्तरपुस्तिका की प्रिंटिंग के लिए टेंडर दिये जाने के मामले में बिहार बोर्ड ने यह साफ कर दिया है कि विभाग की तरफ से कोई टेंडर जारी नहीं हुआ था. सारे दस्तावेज फर्जी तैयार किये गये थे और इसके पीछे विकास कुमार का हाथ था. परीक्षा समिति ने एसआइटी को पत्र भेजकर अपना पल्ला झाड़ लिया है. इस जवाब से एसआइटी को विकास पर आरोप साबित करने का एक और हथियार मिल गया है.
दरअसल, एसआइटी को सारे कागजात पहले ही हाथ लग चुके हैं, जिसके आधार पर गुजरात की बिंदिया इंटरप्राइजेज को उत्तरपुस्तिका का टेंडर दिया गया था. साढ़े आठ करोड़ से ज्यादा की इस निविदा के बाद कंपनी ने विकास के कहने पर ट्रक से उत्तरपुस्तिका भेज दी थी. लेकिन, कंपनी को भुगतान नहीं हो पा रहा था. जब यह कंपनी ने पूरा मामला बताया, तो कोतवाली में विकास के खिलाफ टेंडर घोटाला का मामला दर्ज किया गया था. इस प्राथमिकी के बाद रिजल्ट घोटाले में सरकारी गवाह बनाये गये विकास कुमार आरोपित बन गये.
लेकिन, मामले की जांच कर रही एसआइटी को यह लिखित तौर पर पुष्टि करनी थी कि इस टेंडर में परीक्षा समिति का हाथ है या नहीं. इसके लिए एसआइटी ने बिहार बोर्ड को पत्र भेजा था. जिस पर अब जवाब आया है. जवाब में कहा गया है कि टेंडर के लिए फर्जी वेबसाइट का इस्तेमाल किया गया, जिसे विकास ने तैयार किया था. वह बेबसाइट विभाग की नहीं है. टेंडर के लिए विभाग ने कोई आदेश जारी नहीं किया था. टेंडर के सारे दस्तावेज फर्जी हैं. विकास ने फर्जी तरीके से निविदा अामंत्रति की. काॅपियां मंगायी और रद्दी के भाव बेच दिया.
अब विभाग ने खड़े किये हाथ : प्रिटिंग घोटाले में बिहार बोर्ड ने भले ही हाथ खड़े कर लिये हैं और सारा आरोप विकास पर डाल दिया है. पर, सूत्रों कि मानें तो यह खेल विभाग के अाला अधिकारियों के मौखिक आदेश पर ही हुआ था. अगर यह घोटाला उजागर नहीं होता, तो गुजरात की कपंनी का भुगतान बोर्ड द्वारा कमीशन लेकर कर दिया जाता. क्योंकि, अतिरिक्त काॅपियां मंगाने का फैसला कोई एक आदमी नहीं कर सकता.

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