दोबारा ट्यूमर का नहीं होता विकास

सर्वाइकल कैंसर. गायनोकुलर बेहतर तकनीक तीन दिवसीय एगोन इंडिया कॉन्फ्रेंस शुरू पटना : महिलाओं की मौत के कारण साबित हो रहे सर्वाइकल कैंसर के इलाज के लिए वैसे तो कई तकनीक आयी हैं. लेकिन, गायनोकुलर ऐसी तकनीक है, जिससे इस बीमारी का पता तुरंत लगाया जा सकता है. इस तकनीक से इलाज के बाद मरीज […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 15, 2016 5:36 AM
सर्वाइकल कैंसर. गायनोकुलर बेहतर तकनीक
तीन दिवसीय एगोन इंडिया कॉन्फ्रेंस शुरू
पटना : महिलाओं की मौत के कारण साबित हो रहे सर्वाइकल कैंसर के इलाज के लिए वैसे तो कई तकनीक आयी हैं. लेकिन, गायनोकुलर ऐसी तकनीक है, जिससे इस बीमारी का पता तुरंत लगाया जा सकता है. इस तकनीक से इलाज के बाद मरीज को दोबारा कैंसर होने की संभावना खत्म हो जाती है.
ये बातें स्वीडन से आयीं डॉ एलिजाबेथ विक्स्ट्रोम शेमर ने शुक्रवार को आयोजित तीन दिवसीय 7वें एगोन इंडिया के कार्यक्रम में कहीं. इसका उद्घाटन पद्मश्री डॉ जितेंद्र सिंह ने किया. डॉ एलिजाबेथ ने कहा कि गायनोकुलर की तकनीक से सर्वाइकल कैंसर से पीड़ित मरीजों का बेहतर इलाज संभव है. इस तकनीक से मरीज के शरीर के भीतर सर्वाइकल कैंसर के एक-एक सेल की पहचान कर उसे खत्म किया जाता है.
इसमें एक कैमरा लगा होता है, जिसे मोबाइल फोन से कनेक्ट कर कैमरे में कैद बच्चेदानी का पिक्चर को जूम कर डॉक्टर देखते हैं और कौन-सा कैंसर है इसका पता लग जाने के बाद इलाज किया जाता है. एलिजाबेथ का कहना है कि भारत में भी यह तकनीक आ चुकी है. इससे सर्वाइकल कैंसर का इलाज ज्यादा कारगर है. इससे ट्यूमर दोबारा विकसित नहीं होता. उन्होंने कहा कि 23 देशों में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है.
साइंटिफिक सेशन के बाद डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि बच्चेदानी के कैंसर के लिए इन दिनों ह्यूमैन पाॅपुलेमा वायरस (एचपीवी) का टीका लगाया जा रहा है. एक वैक्सीन की कीमत 2000 रुपये है. 9 से 13 साल के बीच अगर टीका लगाया जाता है, तो 90 प्रतिशत बच्चेदानी के कैंसर की संभावना कम हो जाती है. अमेरिका, स्वीडन आदि देशों में वहां की सरकार महिलाओं का नि:शुल्क टीका लगाती है. भारत में भी यह सुविधा शुरू हो, तो काफी फायदा होगा.
कॉल्पोस्काेपी ट्रेनिंग की जरूरत : दिल्ली से आयीं डॉ सरिता श्याम सुंदर व पटना की डॉ प्रज्ञा मिश्रा ने बताया कि कॉल्पोस्कोपी ऐसा उपकरण है जिससे जांच के साथ-साथ चिकित्सा भी की जाती है. इससे खासकर गर्भाशय कैंसर में इसकी भूमिका अहम हो जाती है. गर्भाशय में ट्यूमर के बढ़ने से वह कैंसर मे तब्दील हो जाता है.

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