पढ़ें…बैंकों की मिलीभगत से ब्लैक मनी का होता है ट्रांजेक्शन

कौशिक रंजन पटना : झारखंड की राजधानी रांची में आज से कुछ दिनों पहले एक काफी बड़े व्यवसायी ग्रुप के यहां आयकर विभाग का छापा पड़ा. उसके रांची, पटना समेत कई स्थानों पर मौजूद ठिकानों को एक साथ खंगाला गया. एक दर्जन से ज्यादा बैंक पासबुक जब्त किये गये. इसमें एक जानी-पहचानी निजी बैंक का […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 24, 2016 7:24 AM
कौशिक रंजन
पटना : झारखंड की राजधानी रांची में आज से कुछ दिनों पहले एक काफी बड़े व्यवसायी ग्रुप के यहां आयकर विभाग का छापा पड़ा. उसके रांची, पटना समेत कई स्थानों पर मौजूद ठिकानों को एक साथ खंगाला गया. एक दर्जन से ज्यादा बैंक पासबुक जब्त किये गये. इसमें एक जानी-पहचानी निजी बैंक का एकाउंट भी मिला, जिसमें पिछले 20 दिनों के दौरान करोड़ों रुपये अलग-अलग प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों के खाते से डाले गये थे. इसके अलावा इस एकाउंट से आधा दर्जन कंपनियों के एकाउंट में भी काफी बड़ी राशि का ट्रांजेक्शन हुआ था.
जांच के बाद पता चला कि संबंधित बैंक के मैनेजर ही इस तरह के सभी ट्रांजेक्शन का हिसाब-किताब रखते थे और इस तरह के सभी लेन-देन को अंजाम देते थे. तहकीकात और पूछताछ में यह बड़ा खुलासा हुआ कि ब्लैक मनी के ट्रांजेक्शन में निजी बैंक के मैनेजर की भूमिका भी काफी अहम थी. उसकी जानकारी और बताये तरीके से ही व्यापारी के सभी ब्लैक मनी को रूट किया जाता था. इनकम टैक्स विभाग ने बैंक मैनेजर के खिलाफ संबंधित बैंक के मुख्य प्रबंधन को लिखा. मैनेजर को नौकरी से निकाल दिया गया. और विभागीय कार्रवाई भी चलायी गयी. ऐसा सिर्फ एक मामला नहीं है. पिछले छह महीने में इनकम टैक्स विभाग ने जितनी छापेमारी की है, उनमें करीब एक दर्जन मामले सामने आये हैं. जिनमें बैंकों की मिली भगत से ब्लैक मनी के ट्रांजेक्शन या रूट करने की बात सामने आयी है.
इसमें 95 फीसदी मामले निजी बैंकों से ही जुड़े हुए हैं. निजी बैंकों में ऐसे मामलों की संख्या बहुत ज्यादा है. इसका मुख्य कारण बैंक को निर्धारित बिजनेस टारगेट या इससे ज्यादा प्राप्त करना. ताकि इसकी बदौलत प्रोमोशन तथा सैलरी हाइक के साथ ही अच्छी इंसेंटिव हासिल हो सके. मुख्य रूप से इसी चक्कर में निजी बैंकों के मैनेजर ब्लैक मनी के ‘हैंडलर’ के रूप में काम करने लगते हैं. सिर्फ इनकम टैक्स ही नहीं, इडी और ऐसी अन्य केंद्रीय जांच एजेंसियों की जांच में इस तरह के मामले सामने आये हैं.
जांच में इस तरह के मामले आये सामने
— हाल में इडी (प्रवर्तन निदेशालय) ने झारखंडके गढ़वा विधायक भानु प्रताप शाही की अवैध संपत्ति जब्त की थी, तो उसमें इस तरह का फर्जीवाड़ा सामने आया है. विधायक ने अपने ही ब्लैक मनी को पांच या छह फर्जी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के माध्यम से घूमा कर वापस अपने पास कर्ज के रूप में मंगवा लिया था. इससे बिना हिसाब-किताब वाला यह पैसा कागज पर पूरी तरह से एक नंबर या सही रूप में उनके पास पहुंच जाता था. बिना काम की कंपनी खोलने के इस खेल में शामिल लोगों को ट्रंजेक्शन होने वाले कुल पैसे का 0.5 से 1 प्रतिशत तक कमीशन मिलता था. इस तरह उसने करीब एक दर्जन लोगों से कर्ज ले रखा था.
— नवादा में फर्नीचर के एक बड़े व्यवसायी के यहां छापेमारी हुई, तो इनके एकाउंट में दो दिनों में 19 करोड़ से ज्यादा का ट्रांजेक्शन हुआ था. व्यापारी को इसकी जानकारी ही नहीं थी. जांच में पता चला कि बैंक मैनेजर ने बिना इनकी जानकारी के सेविंग एकाउंट में 19 करोड़ रुपये डाले और दो दिन बार निकाल दिये. दरअसल में 31 मार्च को टारगेट पूरा करने के लिए चक्कर में मैनेजर ने यह रिस्क लिया. परंतु टारगेट तो पूरा हो गया, लेकिन इसके साथ ही इसी दौरान आयकर की छापेमारी व्यवसायी के यहां हो गयी. इस वजह से पूरे मामले का खुलासा हो गया.
— पटना में कुछ समय पहले इडी ने इसी तरह के अपराधी और व्यवसायी के बैंक एकाउंट में चार-पांच कंपनी से पैसे का ट्रांजेक्शन पकड़ा था, जो करीब 10 करोड़ का था. ये रुपये कर्ज के रूप में दिखाये गये थे. परंतु हकीकत में यह बात सामने आयी कि जिन कंपनियों से ये पैसे आये थे, सभी कंपनी फर्जी हैं और इनके एकाउंट भी फर्जी हैं. फर्जी एकाउंट का ऑपरेशन बैंक वालों की मदद से नहीं हो सकता है. इस अपराधी का ही ब्लैक मनी अलग-अलग माध्यम से अनेकों बार करके जमा किया गया था.
— पटना में ही एक व्यापारी के यहां आयकर और इडी की संयुक्त छापेमारी हुई थी. इस दौरान करीब पांच बैंक एकाउंट्स में 15 करोड़ से ज्यादा ब्लैक मनी के ट्रांजेक्शन की बात सामने आयी थी.
जांच में पता चला कि बैंक वालों की जानकारी में पूरा लेन-देन होता था. चूंकि उस व्यापारी का काफी बड़ा रकम बैंक में हमेशा रहता था, तो बिजनेस और टारगेट के चक्कर में बैंक वाले इसमें मदद ही करते थे. रुपये को अलग-अलग प्राइवेट कंपनियों के एकाउंट से रूट करके इनके एकाउंट में पहुंचाया जाता था. सभी फर्जी कंपनियों के एकाउंट इसी बैंक में थे और समय-समय पर इससे पैसे निकाल कर उसमें किया जाता था.
इस तरह देते हैं पूरी गड़बड़ी को अंजाम
कोई एक बड़ा व्यापारी जिसे अपनी ब्लैक मनी व्हाइट करनी होती है. वह पहले अलग-अलग लोगों के नाम से कई प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बनाता है. इसके बाद इन कंपनियों का फरजी एकाउंट एक ही बैंक में या अलग-अलग बैंकों में खोला जाता है. फिर एक बैंक खातों से दूसरे, फिर तीसरे से चौथे और इसी तरह आगे के बैंक खातों में होते हुए यह पैसा अंत में मूल एकाउंट में आता है.
वास्तव में सभी फर्जी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में एक ही व्यक्ति का पैसा लगा होता है. इस काम में बैंक वाले पूरी तरह से मदद करते हैं. इसके अलावा एक अन्य तरीके से में किसी दूसरे पैन या फर्जी प्रूफ के आधार पर बैंक एकाउंट खोल देते हैं. इस फर्जी एकाउंट में पहले पैसे को डाला जाता है, फिर इससे मूल व्यक्ति के एकाउंट में ट्रांसफर कर दिया जाता है. इस तरह के कई फर्जी एकाउंट से रुपये का ट्रांसफर होता है. इस काम में बैंक वालों की मिली भगत होती है.

Next Article

Exit mobile version