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सफलता शराबबंदी की : रोहतास की कहानी, ‘बाप रे बाप, शराब का तो अब नाम भी मत लीजिए’

बाप रे बाप, अब शराब का तो नाम भी मत लीजिए. यह चीज क्या है, अब समझ में आया है. वो भी तब, जब इससे मुक्ति मिली है. अब भोजन भी पचने लगा है. काम करने में थकान भी कम हो रही है. शाम घर में गुजरने लगी है. और भी कई चीजें बदली हैं […]

बाप रे बाप, अब शराब का तो नाम भी मत लीजिए. यह चीज क्या है, अब समझ में आया है. वो भी तब, जब इससे मुक्ति मिली है. अब भोजन भी पचने लगा है. काम करने में थकान भी कम हो रही है. शाम घर में गुजरने लगी है. और भी कई चीजें बदली हैं भैया. सासाराम शहर के काजीपुरा मुहल्ले की एक तंग गली में रहनेवाले मुन्ना चौधरी ने एक ही सांस में इतनी बातें कहते हुए कहा कि बाप-दादे का बनाया अपना घर नहीं होता, तो अब तक शराब ने सड़क पर ही ला दिया होता. पर, अब लगता है कि जिंदगी फिर से पटरी पर आ गयी है.

मुन्ना चौधरी के मुताबिक, उन्होंने पिछले छह माह में शराब को हाथ तक नहीं लगाया है. मिल भी नहीं रही है. अब उनके पैसे बचने लगे हैं. पैसे का सदुपयोग होने लगा है. पहले तो मजदूरी में आयी रकम का आधा हिस्सा शराब में ही खत्म होता था. घर आने पर रोज कलह होती थी. अब मुन्ना चौधरी हर शाम परिवार के साथ चाय पीते हैं, टीवी देखते हैं और बोलते-बतियाते हैं. अब शराबी वाली छवि भी बदल गयी है.

मुन्ना चौधरी की पत्नी ने कहा कि हम तो कहते-कहते थक गये थे. लेकिन, ये मानते ही नहीं थे. शराब के कारण काफी मुश्किल से बेटियों की शादी हुई. थोड़ा सकुचाते हुए उन्होंने कहा कि अब उनके पति घर में चाय पीते हैं, तो यह देख बड़ा अच्छा लगता है. मुन्ना चौधरी की पत्नी के अनुसार, पहले पर्व पर भी पैसे की कमी रहती थी. लेकिन अब ऐसा नहीं है. ‘खैर, जो हुआ, सो हुआ. जब जागा, तभी सवेरा. जानते हैं भैया, सबसे अच्छा तो इ हुआ कि बेटा इनकरे लाइन पर जाने से बच गया. अब हमारे भी दिन अच्छे से गुजर सकेंगे.’

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