कवायद. दिल्ली में प्रदूषण की समस्या के बाद राज्य सावधान
खेत में पुआल अथवा धान के अवशेष जलाने से खेत की उर्वरा शक्ति लंबे समय के लिए खत्म हो जाती है. खेत के सभी उपयोगी जीव मर
जाते हैं.
पटना : धान की फसल कटने के साथ ही राज्य सरकार को खेत में ही धान के अवशेष को जलाने की चिंता सताने लगी है. खासकर जिन इलाकों में कंबाइंड हार्वेस्टर से धान की कटनी होती है, उन इलाकों में ऐसी समस्या बनी हुई है.
खेत में ही धान के पुआल को जलाने से रोकने के लिए कृषि विभाग सभी जिला कृषि पदाधिकारी को निर्देश जारी कर ऐसा करने से रोकने के लिए किसानों में जागरूकता अभियान शुरू करने का निर्देश दिया है. कृषि विभाग से मिली जानकारी के अनुसार राज्य सरकार ने जारी निर्देश में कहा है कि किसानों को यह बताया जाये कि खेत में पुआल अथवा धान के अवशेष जलाने से खेत की उर्वरा शक्ति लंबे समय के लिए खत्म हो जाता है. खेत के सभी उपयोगी जीव मर जाते हैं.
इससे अगली फसल में कम उपज की समस्या का सामना करना पड़ेगा. विभागीय अधिकारी ने बताया कि दिल्ली में प्रदूषण के बाद सरकार ने धान के अवशेष को नहीं जलाने के लिए अभियान शुरू करने का निर्देश दिया है. पंजाब और हरियाणा के किसानों द्वारा भी खेत में ही फसलों के अवशेष जलाने का प्रचलन है. इसके कारण अवशेष के जलने से निकलने वाले धुआं का असर दिल्ली में देखा जा रहा है. अधिकारी ने बताया कि प्रदूषण को रोकने के लिए अन्य प्रयास किये जा सकते हैं, पर किसानों में बिना जागरूकता के ऐसा करने से नहीं रोका जा सकता है.
कृषि अभियंत्रण के एडिशनल डायरेक्टर रवींद्र कुमार वर्मा ने कहा कि लगभग तीन लाख कीमत की इस मशीन की खरीद पर लगभग 50 प्रतिशत अनुदान देने का भी प्रावधान है. विभागीय निदेशक हिमांशु कुमार राय ने कहा कि जिलों के किसानों में जागरूकता अभियान तेज करने का निर्देश दिया गया है. उन्होंने कहा कि खेत में एक बार फसल के अवशेष जलाने से 50 साल के लिए उर्वरा शक्ति खत्म होता है. इसका उपज पर बुरा असर पड़ता है. उन्होंने कहा कि प्रदूषण एक अलग समस्या है पर, यहां तो किसानों की खेती ही चौपट हो जायेगा. राय ने कहा कि कृषि विभाग किसानों को खेत में किसी भी फसल के अवशेष को जलाने से राेकने के लिए लगातार अभियान चलायेगा.
कृषि विभाग के अधिकारी ने बताया कि जिन इलाकों में कंबाइंड हार्वेस्टर से धान या गेहूं की कटनी होती है, उन इलाकों में यह समस्या सबसे अधिक है. दरअसल कंबाइंड हार्वेस्टर से कटनी में फसन का नीचे का लगभग एक फीट का हिस्सा खेत में ही रह जाता है. इसकी सफाई पर होने वाली खर्च से बचने के लिए किसानों द्वारा इसे खेत में ही जला दिया जाता है. यह समस्या रोहतास, कैमूर समेत आसपास के कई जिलों में अधिक देखा जा रहा है. अधिकारी ने बताया कि अब तो राज्य के लगभग सभी हिस्सों में कंबाइंड हार्वेस्टर का उपयोग होने लगा है.
किसान स्ट्रा रिपर का प्रयोग कर सकते हैं
किसान चाहें तो स्ट्रा रिपर मशीन के उपयोग से इस अवशेष को कीमती चारा के रूप में बदल सकते हैं. इस मशीन से इसकी कटनी के साथ ही भूसा में बदल दिया जाता है. इससे खेत में जलाने की नौबत ही नहीं आयेगी.
रवींद्र कुमार वर्मा, एडिशनल डायरेक्टर, कृषि अभियंत्रण