प्रभात रंजन, विजय सिंह/पटना : भगवान सिंह का घर आने का कोई प्लान नहीं था. लेकिन, बेटी के लिए रिश्ता तय करने के लिए वह अचानक पटना आने को तैयार हुए थे. एक रिश्तेदार ने किसी लड़के के बारे में उन्हें जानकारी दी थी. उन्होंने तत्काल में टिकट लिया था और इंदौर-पटना एक्सप्रेस से पटना के लिए चले थे, लेकिन नये रिश्ते बनने से पहले ही भगवान सिंह ट्रेन हादसे के शिकार हो गये. उनके जीवन की डोर ही टूट गयी. भोजपुर जिले के नवादा बेन गांव निवासी भगवान सिंह चार बेटियों के पिता थे. वह इंदौर में पिछले तीन वर्षों से कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम कर रहे थे. तीसरी बेटी का रिश्ता तय करना था. शनिवार को ढाई बजे पत्नी, बेटी और पटना के गोला रोड में रह रहने वाले भाई से मोबाइल पर बात हुई थी, तो परिवार के लोग काफी खुश थे. लेकिन, जैसे ही ट्रेन दुर्घटना की सूचना मिली, परिजन हाल जानने को बेचैन हो गये.
रोते-बिलखते रितेश पहुंचा जंकशन
ट्रेन दुर्घटना होने की सूचना मिलते ही पटना के गोला रोड में रहनेवाला भतीजा रितेश कुमार रोते-बिलखते सुबह 10:15 बजे पटना जंकशन पहुंचा. हेल्प डेस्क पर तैनात अधिकारी से रितेश ने पूछा कि एसी कोच के बी-3 के 25 नंबर बर्थ पर आ रहे भगवान सिंह की क्या स्थिति है, लेकिन हेल्प डेस्क के अधिकारी स्पष्ट जवाब नहीं दे सके. इसके बाद रितेश अपने मोबाइल में चाचा की तसवीर देख कर फफक-फफक कर रोने लगो. रितेश अपने चाचा के मोबाइल नंबर पर बार-बार फोन कर रहा था, इस दौरान उधर से घंटी बज रही थी, लेकिन कोई उठा नहीं रहा था. इससे वह बेचैन हो गया. सुबह 11:00 बजे तक रितेश रोता-बिलखता रहा और बिना कोई सही जानकारी लिये ही घर लौट गया.
शाम 4:30 बजे मिली मौत की सूचना
भगवान सिंह के मोबाइल की घंटी बज रही थी, तो परिवार वालों को थोड़ा-बहुत हौसला मिल रहा था. इसलिए, उनके परिजन लगातार मोबाइल पर फोन कर रहे थे, ताकि एक बार भी बात हो जाये. इसी दौरान शाम 4:30 बजे किसी अनजान व्यक्ति ने फोन उठाया और उसने बताया कि भगवान सिंह की मौत हो चुकी है. मृतक को पोस्टमार्टम के लिए ले जाया जा रहा है. इसके बाद घर का माहौल मातम में बदल गया. सभी चीख-चीख कर रोने लगे.
मां-बेटी की मौत से खत्म हो गयीं शादी की खुशियां
इंदौर-पटना एक्सप्रेस हादसे ने सुबोध सिंह के परिवार को उजाड़ दिया है. पटना में शादी समारोह में भाग लेने आ रहे जीबी नगर थाना, तरवारा के हकमा गांव के सुबोध सिंह की पत्नी व उनकी एक बेटी की मौत हो गयी व दूसरी बेटी लापता है.घायल सुबोध सिंह की हालत चिंताजनक बनी हुई है. पटना में अपने भाई के घर शादी समारोह में आते समय वे ट्रेन हादसे का शिकार हो गये. इस घटना के बाद सुबोध सिंह के पैतृक गांव हकमा व उनके ससुराल सीवान नगर के महादेवा नई बस्ती में शोक का माहौल है.सबकी जुबान पर हादसे के साथ ही तबाह हुए परिवार की चर्चा है. सुबोध सिंह की पत्नी रत्निका सिंह का मायका सीवान शहर के नई बस्ती महादेवा मुहल्ले में है. यहां हादसे की खबर सुबह ही परिजनों को मिली. मृतका रत्निका के भाई बुल्लू सिंह अपने साथियों के साथ तत्काल सड़क मार्ग से कानपुर के लिए रवाना हो गये. परिजनों के मुताबिक, कानपुर में ही सुबोध सिंह का इलाज चल रहा है. उधर, दिल्ली में सुबोध के पिता भगवती शरण सिंह अपने बेटे के साथ रहते हैं, जो खबर पाकर कानपुर के लिए रवाना हो गये. बुल्लू सिंह के मुताबिक, रत्निका ने पटना में शादी समारोह में हिस्सा लेने के बाद घर आने की बात कही थी.
आखिरी सफर बनी तीर्थयात्रा
बिहारशरीफ के सरमेरा प्रखंड के सिंघौल गांव निवासी रामाकांत त्रिवेदी एक सप्ताह पहले तीर्थाटन के लिए उज्जैन गये थे, लेकिन लौट कर घर नहीं आ सके. रविवार की सुबह खबर मिली की इंदौर-पटना ट्रेन हादसे में रामाकांत की मौत हो गयी. इस खबर के बाद परिजनों में कोहराम मच गया.जैसे ही लोगों को ये पता चला पूरे गांव में मातम पसर गया. लोग एक-दूसरे से ट्रेन हादसे के बारे में जानकारी लेने लगे. ट्रेन हादसे की खबर के बाद से रामाकांत के घर में पूरी तरह से सन्नाटा पसरा हुआ है. घर से लेकर गांव वाले लोगों की जुबान पर एक ही बात की यह क्या हो गया. ट्रेन हादसे की खबर से लोग काफी सदमे में हैं. सिंघौल निवासी रामाकांत त्रिवेदी अपनी पत्नी पुष्पा देवी को 13 नवंबर को यह कहकर घर से निकले थे कि बरबीघा के डॉ. भुवनेश्वर के साथ उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर तीर्थ के लिए जा रहे हैं. रामाकांत की चार संतानें हैं. पुत्रों में शिवेन्द्र त्रिवेदी, संतन त्रिवेदी व नंदन त्रिवेदी हैं, जबकि एक पुत्री मधुप्रिया कुमारी हैं. मधुप्रिया ने बताया कि शनिवार को पिताजी से ट्रेन पर चढ़ने से पहले फोन पर बात हुई थी. बाद में फोन करने पर कॉल रिसीव करने वाला खुद को डॉक्टर बताया और कहा कि पोस्टमार्टम हाउस से बोल रहा हूं. इसके बाद से उनका फोन बंद बता रहा है. उनके बड़े पुत्र शिवेन्द्र त्रिवेदी अपने चाचा के राधाकांत त्रिवेदी के साथ पटना घटना की जानकारी लेने को गये हैं.
अधूरी रह गयीं गृह प्रवेश की तैयारियां चौखट पर पसरा गम
होइहि सोइ जो राम रचि राखा… जिस घर में खुशियां हिलोरें मार रही थीं, वहां अब गम का साया है. घर का कोना-कोना रोशन था, सपनों का घरौंदा तैयार था. मेहनत की जमा-पूंजी से कंकड़-पत्थर जोड़कर शिवकुमार (42)ने एक प्यारा से घर बनाया था. इस ख्वाब को पूरा करने में शिवकुमार को 15 साल लग गये.वह इंदौर की एक सुपारी कंपनी में काम करता था. दिन रात मेहनत की, पाई-पाई जोड़ा और जब नये मकान में गृह प्रवेश की बारी आयी तो बुरे वक्त की मार ने उन्हें अपनों से दूर कर दिया. 26 नवंबर को नये मकान का गृह प्रवेश था. शिवकुमार पूरी तैयार के साथ इंदौर से पटना के लिए चला था. घर पर भी भव्य आयोजन की तैयारी थी. नात-रिश्तेदार, गोतिया के साथ गृह प्रवेश की खुशी में पंघत में भोजन करना था. गांव में भी लोग इंतजार कर रहे थे. लेकिन यह क्या हुआ…
इंदौर से चला, तो भाई को किया था फोन
शनिवार को जब शिवकुमार इंदौर स्टेशन पहुंचे तो भाई को फोन करके बताया कि कुछ ही देर में इंदौर-पटना एक्सप्रेस खुलने वाली है. घर से लेकर गांव तक के लोगों में यह बात फैल गयी कि शिवकुमार चल दिये हैं, रविवार को पटना और फिर बेगूसराय आ जायेंगे.पत्नी, बच्चे सब इंतजार में थे. लेकिन ये क्या हुआ. रविवार की सुबह मातमी संदेश लेकर आयी. कानुपर के पास ट्रेन दुर्घटना ग्रस्त हो गयी. मीडिया के माध्यम से न्यूज फलैश होते ही बेगूसराय जिले के नाकोठी थाना क्षेत्र के पनहसारा में हड़कंप मच गया. लोग शिवकुमार के घर पहुंच गये. कुशलक्षेम जानने के लिए पूरा गांव उसके दरवाजे पर पहुंच गया.घरवालों के चेहरे पर हवाईयां उड़ रही थी. हेल्पलाइन पर फोन करने पर पता चला कि शिवकुमार को चोट आयी है. उसका कानपुर में इलाज चल रहा है. दिन भर इलाज चला. इस बीच शिवकुमार के भाई शिवचंद्र पटना जंकशन आ गये थे. उनके साथ विकास और लल्लन भी थे. करीब 2.30 बज रहे थे. इस बीच शिवचंद्र को वह मनहूस खबर मिली जिससे वह चीत्कार उठा. रेलवे की तरफ से बताया गया कि शिवकुमार की मौत हाे गयी है. उम्मीद टूट चूकी थी, भाई का साथ छूट चुका था, खुशियां अब सिसकियों में तब्दील हो गयी थी. शिवचंद्र को लोग संभाल रहे थे और वह दिल में उठ रहे दुख के तूफान को रोक नहीं पा रहा था. यह क्या हुआ, क्यों हुआ, अब क्या होगा.
हादसे के बाद बेपटरी हुई परिवार की गाड़ी
कानपुर के पास पुखराया में इंदौर-पटना रेल हादसे में पटना के फुलवारीशरीफ के परसा बाजार स्थित कुरथौल के न्यू एतवारपुर निवासी युवक रंजन कुमार की मौत की खबर से परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है. बिहार सरकार के पीडब्ल्यूडी में चपरासी से रिटायर गया राम के दो बेटों में छोटा पुत्र रंजन सड़क निर्माण ठेकेदार के साथ प्राइवेट रूप में काम करता था. बेरोजगारी के आलम में वह ठेकेदार के साथ रहने लगा था, जो कुछ थोड़े- बहुत रुपये मिलते थे, उसी से परिवार का खर्चा चल रहा था. रंजन पिछले दस – बारह दिनों से इंदौर के उज्जैन में रह रहा था . वह ठेकेदार के साथ किसी काम के सिलसिले में वहां गया था . रंजन अकेले ही उज्जैन से पटना लौट रहा था, उसके साथ गया ठेकेदार वहीं काम से रुक गया था. रंजन का बड़ा भाई राजेश मेडिकल हॉल में काम करता है. दोनों भाइयों के सहारे परिवार की गाड़ी किसी तरह बमुश्किल चल रही थी. बड़े भाई राजेश को अब भी यकीन नही हो रहा था की उसका भाई अब इस दुनिया में नहीं रहा. मां गीता देवी और पिता सेवानिवृत्त कर्मचारी गया राम को नहीं बताया गया है कि उनका छोटा बेटा रेल हादसे में काल के गाल में समा गया है. पिता गया राम ने बताया कि परसा थाने के सिपाही जी आये थे, बोले कि डीआरएम रेलवे कार्यालय से संपर्क कर लीजिए , आपका कोई लड़का इंदौर से पटना आ रहे ट्रेन दुर्घटना में हादसे का शिकार हुआ है. मां गीता देवी अब भी अपने बेटे की राह ताक रही है, जो अब अपनी मां के पास कभी नहीं आ पायेगा. वह बार- बार बड़े बेटे और उसके दोस्तों से कहती है कि स्टेशन जाहीं न रे, जेक पता लगाव कइसन चोट हुई पिता गया राम टीवी पर चल रहे समाचार से नजरें नहीं हटा पा रहे हैं कि शायद लोगों की भीड़ में उनका बेटा कहीं दिख जाये .