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भागवत के बयान की क्षतिपूर्ति है नित्यानंद को बिहार भाजपा की कमान सौंपना : सुरेंद्र किशोर

सुरेंद्र किशोर, वरिष्ठ पत्रकार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) आलकमान द्वारा बिहार के प्रदेश अध्यक्ष के तौर उजियारपुर संसदीय क्षेत्र के सांसद और युवा नेता नित्यानंद राय को जिम्मेदारी सौंपना विधानसभा चुनाव के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सरसंघचालक मोहन भागवत के आरक्षण पर दिये गये बयान की क्षति-पूर्ति है. राजनीतिक तौर पर समझा यह जा रहा […]

सुरेंद्र किशोर, वरिष्ठ पत्रकार

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) आलकमान द्वारा बिहार के प्रदेश अध्यक्ष के तौर उजियारपुर संसदीय क्षेत्र के सांसद और युवा नेता नित्यानंद राय को जिम्मेदारी सौंपना विधानसभा चुनाव के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सरसंघचालक मोहन भागवत के आरक्षण पर दिये गये बयान की क्षति-पूर्ति है. राजनीतिक तौर पर समझा यह जा रहा है कि बिहार विधानसभा चुनाव में सरसंघचालक मोहन भागवत के आरक्षण पर पुनर्विचार करने वाले बयान से भाजपा को भारी क्षति उठानी पड़ी है.

बिहार में सांगठनिक तौर पर किये गये इस परिवर्तन से तो यह तय ही है कि पार्टी ने प्रदेश में पिछड़ी जाति के लोगों में अपनी पैठ मजबूत करने की दिशा में यह कदम उठाया है. इसका कारण यह है कि भागवत के बयान के बाद पिछड़ी जाति के लोगों ने आक्रोशित होकर राजद, जदयू और अन्य दूसरी पार्टियों की ओर अपना रुख कर दिया. भाजपा के बिहार प्रदेश के नेताओं समेत वरिष्ठ नेताओं को भी यह आभास हो रहा था कि भागवत के बयान के बाद पिछड़ी जाति के आक्रोशित लोगों में दोबारा पैठ बनाने के लिए परिवर्तन करना जरूरी था.

इसे इस रूप में भी देखा जा सकता है कि बिहार विधानसभा चुनाव के संपन्न होने के बाद जब भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा, तो हुकुमदेव नारायण सिंह और डॉ सीपी ठाकुर सरीखे वरिष्ठ नेताओं ने यह टिप्पणी की थी कि मोहन भागवत के द्वारा आरक्षण पर दिये गये बयान के कारण ही पार्टी को भारी नुकसान उठाना पड़ा है. हालांकि, यह बात दीगर है कि इस विधानसभा चुनाव में इन दोनों नेताओं के बेटे भी चुनाव मैदान में अपना भाग्य आजमा रहे थे. हो सकता है कि अपने-अपने बेटों को मिली हार की वजह से भी ये दोनों नेता इस तरह के बयान दे रहे हों, लेकिन सच यह भी है कि पार्टी के आला नेता इस राजनीतिक नुकसान की पूर्ति करने के लिए ही प्रदेश इकाई में परिवर्तन करने जैसा कदम उठाया है.

भाजपा आलाकमान की ओर से किया गया यह परिवर्तन इस मायने में राजनीतिक तौर पर अहम है कि बिहार की पिछड़ी जाति के लोगों में यादव, कुर्मी और कोइरी आदि अगड़ी जातियों की अपनी अलग पहचान और राजनीतिक पैठ है. यहां की राजनीतिक दशा-दिशा तय करने में पिछड़ी जाति के इन‘अगड़ी जाति’के लोगों की भूमिका अहम मानी जाती है. बिहार की राजनीति में जाति फैक्टर मायने रखता है. विधानसभा चुनाव के बाद हुए नुकसान को देखते हुए इस राजद, जदयू समेत अन्य राजनीतिक दलों में चले गये पिछड़ी जाति के इन अगड़ी जाति के लोगों को अपने पक्ष में करने के लिए भी भाजपा की ओर से यह फैसला लिया गया है.

दूसरा यह कि बिहार में प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर भाजपा की ओर से नित्यानंद राय को नियुक्त किया जाना दूसरा राजनीतिक प्रयोग है. इसके पहले भी जब देश में मंडल-कमंडल का दौर था, तब भी बिहार में भाजपा ने राजनीतिक प्रयोग किये थे. उस समय भी मंडल आयोग के फैसलों का विरोध करने पर बिदके पिछड़ी जाति के लोगों को अपने पक्ष में करने के लिए पार्टी ने नंदकिशोर यादव को प्रदेश इकाई की कमान सौंपी थी. इस समय भी भागवत के बयान के बाद दूसरे दलों के दामन थाम चुके पिछड़ी जाति के लोगों को अपने पक्ष में करने के लिए पार्टी आलाकमान ने बिहार में इस समुदाय से दो लोगों को अहम पद पर बैठाने जैसा कदम उठाया है. पार्टी ने इस नुकसान की पूर्ति के लिए विधानसभा चुनाव के बाद ही डॉ प्रेम कुमार को विधानसभा में प्रतिपक्ष का नेता बनाकर डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की थी और अब उसने प्रदेश की कमान नित्यानंद राय के हाथों में सौंपकर एक दूसरा राजनीतिक प्रयोग किया है.

तीसरा और सबसे अहम यह कि भाजपा के आलाकमान के निर्णय के बाद नित्यानंद राय को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी तो गई है, लेकिन उनके सामने चुनौतियां भी हैं. सबसे पहले तो यह कि कम उम्र के होने के कारण नित्यानंद राय को पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का भरोसा कायम करना आसान नहीं होगा. यहां यह कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगी कि नित्यानंद राय राज्य स्तर के नेता नहीं हैं. ऐसे में, राज्यभर के नेताओं को भी अपने पक्ष में करना उनके लिए चुनौती होगी. इसके साथ ही, प्रदेश के युवा कार्यकर्ताओं का भी उन्हें विश्वास जीतना होगा.


(प्रभात खबर डॉट कॉम के लिए विश्वत सेन से बातचीत पर आधारित)

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