नित्यानंद को कमान भागवत के बयान की क्षतिपूर्ति

सुरेंद्र किशोर राजनीतिक िवश्लेषक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) आलकमान द्वारा बिहार के प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर उजियारपुर संसदीय क्षेत्र के सांसद और युवा नेता नित्यानंद राय को जिम्मेदारी सौंपना विधानसभा चुनाव के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सरसंघचालक मोहन भागवत के आरक्षण पर दिये गये बयान की क्षति-पूर्ति है़ राजनीतिक तौर पर समझा यह जा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 1, 2016 7:43 AM
सुरेंद्र किशोर
राजनीतिक िवश्लेषक
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) आलकमान द्वारा बिहार के प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर उजियारपुर संसदीय क्षेत्र के सांसद और युवा नेता नित्यानंद राय को जिम्मेदारी सौंपना विधानसभा चुनाव के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सरसंघचालक मोहन भागवत के आरक्षण पर दिये गये बयान की
क्षति-पूर्ति है़ राजनीतिक तौर पर समझा
यह जा रहा है कि बिहार विधानसभा चुनाव
में सरसंघचालक मोहन भागवत के आरक्षण
पर पुनर्विचार करने वाले बयान से भाजपा को
भारी क्षति उठानी पड़ी. बिहार में सांगठनिक तौर
पर किये गये इस परिवर्तन से तो यह तय ही है
कि पार्टी ने प्रदेश में पिछड़ी जाति के लोगों
में अपनी पैठ मजबूत करने की दिशा में
यह कदम उठाया है़ इसका कारण यह है कि भागवत के बयान के बाद पिछड़ी जाति के अधिकतर लोगों ने नाराज होकर राजद, जदयू और अन्य दूसरी पार्टियों की ओर अपना रुख कर दिया़
भाजपा के बिहार प्रदेश के नेताओं समेत वरिष्ठ नेताओं को भी यह आभास हो रहा था कि भागवत के बयान के बाद पिछड़ी जाति के आक्रोशित लोगों में दोबारा पैठ बनाने के लिए परिवर्तन करना जरूरी था़ इसे इस रूप में भी देखा जा सकता है कि बिहार विधानसभा चुनाव के संपन्न होने के बाद जब भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा, तो हुकुमदेव नारायण यादव और डॉ सीपी ठाकुर सरीखे वरिष्ठ नेताओं ने यह टिप्पणी की थी कि मोहन भागवत के द्वारा आरक्षण पर दिये गये बयान के कारण पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा है़ इन नेताओं के पुत्र भाजपा के उम्मीदवार थे. इसलिए इन्हें सरजमीन की बेहतर जानकारी थी.
भाजपा के कुछ अन्य नेताओं व सहयोगी दल के कुछ नेताओं की भी यही राय थी. साफ लगता है कि भाजपा के आला नेता ने इस राजनीतिक नुकसान की क्षतिपूर्ति के लिए ही प्रदेश इकाई में ऐसा परिवर्तन किया है.
भाजपा आलाकमान की ओर से किया गया यह परिवर्तन इस मायने में राजनीतिक तौर पर अहम है कि बिहार की पिछड़ी जाति के लोगों में
यादव, कुर्मी और कोइरी आदि जातियों की अपनी अलग पहचान और राजनीतिक पैठ है़ यहां की राजनीतिक दशा-दिशा तय करने
में पिछड़ी जाति के इन ताकतवर जमात के लोगों की भूमिका अहम मानी जाती है़ बिहार की राजनीति में जाति फैक्टर मायने रखता
ही है़ गत विधानसभा चुनाव के बाद हुए नुकसान को देखते हुए राजद, जदयू समेत
अन्य राजनीतिक दलों में चले गये पिछड़ी जाति के इन ताकतवर लोगों को अपने पक्ष में करने के लिए भी भाजपा की ओर से यह फैसला महत्वपूर्ण और मौजू है़
दूसरा यह कि बिहार में प्रदेश अध्यक्ष
के तौर पर भाजपा की ओर से नित्यानंद राय
को नियुक्त किया जाना दूसरा राजनीतिक प्रयोग
है़ इससे पहले भी जब देश में मंडल-कमंडल का दौर था, तब भी बिहार में भाजपा ने राजनीतिक प्रयोग किये थे़ उस समय भी मंडल आयोग के फैसले का विरोध करने पर बिदके पिछड़ी जाति के लोगों को अपने पक्ष में करने के लिए पार्टी ने नंदकिशोर यादव को प्रदेश इकाई की कमान सौंपी थी़ इस समय भी भागवत के बयान के बाद दूसरे दलों के दामन थाम चुके पिछड़ी जाति के लोगों को अपने पक्ष में करने के लिए पार्टी आलाकमान ने बिहार में इस समुदाय से दो लोगों को अहम पद पर बैठाने जैसा कदम उठाया है़
पार्टी ने इस नुकसान की पूर्ति के लिए विधानसभा चुनाव के बाद ही कमजोर पिछड़ी जाति से आने वाले डॉ प्रेम कुमार को विधानसभा में प्रतिपक्ष का नेता बनाकर डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की और अब उसने प्रदेश की कमान नित्यानंद राय के हाथों में सौंपकर एक दूसरा राजनीतिक प्रयोग किया है़ हालांकि नित्यानंद राय के सामने चुनौतियां भी हैं.
सबसे पहले तो यह कि कम उम्र के होने के कारण नित्यानंद राय को पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का भरोसा हासिल होगा़ वह काम आसान नहीं होगा़ यहां यह कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगी कि नित्यानंद राय राज्य स्तर के नेता नहीं हैं. ऐसे में, राज्यभर के नेताओं को भी विश्वास में
लेना उनके लिए चुनौती होगी़ इसके साथ ही, प्रदेश के युवा कार्यकर्ताओं का भी उन्हें विश्वास जीतना होगा़

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