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पिछले चार सालों में तीन गुनी बढ़ गयी है गांजा की तस्करी

इओयू ने वर्ष 2012 में 829 किलो गांजा किया था जब्त, 2016 में यह बढ़कर हो गयी 2200 किलो पटना : राज्य में पिछले चार सालों में गांजा तस्करी के मामले में काफी बढ़ोतरी हुई है. शराबबंदी की घोषणा के बाद इसकी तस्करी में तेजी से इजाफा हुआ है. आर्थिक अपराध इकाई (इओयू) से प्राप्त […]

इओयू ने वर्ष 2012 में 829 किलो गांजा किया था जब्त, 2016 में यह बढ़कर हो गयी 2200 किलो
पटना : राज्य में पिछले चार सालों में गांजा तस्करी के मामले में काफी बढ़ोतरी हुई है. शराबबंदी की घोषणा के बाद इसकी तस्करी में तेजी से इजाफा हुआ है. आर्थिक अपराध इकाई (इओयू) से प्राप्त जानकारी के अनुसार, वर्ष 2012 में 829 किलो गांजा ही जब्त किया गया था, वहीं वर्ष 2016 में यह बढ़कर 2200 किलो हो गया. वर्ष 2014 के बाद से इसकी तस्करी के धंधे में चार गुणा की बढ़ोतरी हुई है. इओयू की जांच में यह बात सामने आयी है कि बिहार में गांजा तस्करी के लिए पिछले तीन सालों में तस्करों ने कुछ खास रूट तय कर रखें हैं.
इसके अलावा राज्य में सात जिलों में कुछ कुख्यात तस्करों को भी चिह्वित किया गया है, जिनके जरिये गांजा की तस्करी का पूरा अवैध कारोबार चल रहा है. छानबीन में यह बात भी सामने आयी है कि वर्तमान में राज्य में सबसे ज्यादा गांजा की तस्करी ओडिशा से होती है. इन दिनों एक नया रूट देखने को मिल रहा है, वह नागालैंड से बिहार आने का है. यह रूट पहली बार इस्तेमाल हो रहा है.
पांच से छह गुना मुनाफा का कारोबार : पहले गांजा को संबंधित सात जिलों में बने प्वाइंट तक लाया जाता है. फिर इसकी तस्करी पूरे राज्य में की जाती है. इस गैंग में शामिल लोग अलग-अलग सेंटरों तक छोटे-छोटे पैकेज में सप्लाई करते हैं. गांजा तस्करी के इस कारोबार में पांच से छह गुना का मुनाफा होता है. तस्कर गांजा को 1200 से दो हजार रुपये प्रति किलो की दर से खरीद कर लाते हैं और बाजार में इसे पांच से आठ हजार रुपये किलो की दर से बेचते हैं. ओडिशा, आंध्रप्रदेश, पश्चिम बंगाल के जिन स्थानों से यह गांजा आता है, वह सभी नक्सल प्रभावित क्षेत्र हैं और इनकी खेती नक्सलियों के आर्थिक स्रोत का मुख्य आधार है. गांजा को लाने के लिए काफी लंबा रूट तय किया जाता है, ताकि पकड़ में आने की आशंका कम हो जाये.
इन रूटों के जरिये बिहार आता है गांजा
जयपोर (ओडिशा)- संबलपुर- रायपुर (छत्तीसगढ़)- गुमला (झारखंड)- अंबिकापुर (छत्तीसगढ़)- गढ़वा होते हुए पटना में प्रवेश होता है
जयपोर (ओडिशा)- संबलपुर- रायपुर- गुमला- चतरा- डोभी मोड़- सासाराम- बक्सर- आरा
जयपोर- संबलपुर- रायपुर- गुमला- रांची- बरही- डोभी- गया- जहानाबाद- पटना होते हुए उत्तरी बिहार तक
जयपोर- संबलपुर- रायपुर- रांची- बरही- नवादा- नालंदा-पटना होते हुए उत्तरी बिहार फिर यूपी या नेपाल तक
विशाखापट्टनम या मलकानगिरी- भुवनेश्वर- कटक- जमशेदपुर- बोकारो- गया- पटना- आरा या छपरा
कूच बिहार (पश्चिम बंगाल)- जलपाइगुड़ी- सिल्लीगुड़ी- किशनगंज- सुपौल- मधुबनी- दरभंगा- पटना तक. इसी रूट में अब नागालैंड भी जुड़ रहा है.
सात जिलों में ये गैंग करते हैं तस्करी
आरा- सरोज सिंह गैंग
हाजीपुर, छपरा- सरोज सिंह
लखीसराय- कोई एक गिरोह नहीं
बेतिया और पटना- सभी कुख्यात गिरोह का अपना-अपना नेटवर्क
गोपालगंज- भगत यादव, रामज्ञान यादव, विभूति यादव, हसिन्द्र यादव उर्फ बिहारीजी
इसमें कई तस्कर जेल में हैं या बेल पर छूट चुके हैं. इओयू व स्थानीय जिलों की पुलिस इसके पूरे गैंग को उखाड़ने की जुगत में लगी है. कुछ दिनों पहले ही मुजफ्फरपुर में रामविवेक सिंह के पूरे गैंग का खात्मा किया जा चुका है.

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