अलविदा 2016 : लालकेश्वर, उषा और बच्चा ने किया बिहार का सिर नीचा
बिहार बोर्ड की इंटर परीक्षा में अब तक की सबसे बड़ी धांधली आयी सामने साल, 2016 बिहार को कई अहम उपलब्धियों की सौगात देकर विदा हो रहा है. इस साल जहां राज्य में शराबबंदी लागू होने के बाद गांव-घर-समाज में खुशहाली आयी, वहीं सरकार के सात निश्चय की पहलकदमियों से बेहतर कल की उम्मीद भी […]
बिहार बोर्ड की इंटर परीक्षा में अब तक की सबसे बड़ी धांधली आयी सामने
साल, 2016 बिहार को कई अहम
उपलब्धियों की सौगात देकर विदा हो रहा है. इस साल जहां राज्य में शराबबंदी लागू होने के बाद गांव-घर-समाज में खुशहाली आयी, वहीं सरकार के सात निश्चय की पहलकदमियों से बेहतर कल की उम्मीद भी जगी. हालांकि इस दौरान बिहार विद्यालय परीक्षा समिति में इंटर मेरिट लिस्ट में सबसे बड़ी धांधली के खुलासे ने पूरे देश में बिहार व बिहारी प्रतिभाओं की साख पर बट्टा लगा दिया.
बिहार बोर्ड के इतिहास में यह पहली बार हुआ कि गड़बड़ी और फर्जीवाड़ा के कारण साइंस और आर्ट्स के टॉपरों की पूरी सूची ही बदलनी पड़ी. साल की बहुचर्चित घटनाओं के पुनरावलोकन की पहली कड़ी में आज हम नजर डाल रहे हैं मेरिट घोटाले की पूरी कहानी पर, जो एक सबक के तौर पर शासन व समाज के सामने है. उम्मीद करनी चाहिए कि नये साल में इस तरह की घटना से शर्मसार नहीं होना पड़े.
कौशिक रंजन
पटना : बिहार के लिए वर्ष 2016 कई मायनों में आर्थिक और सामाजिक उन्नति के नाम रहा, तो शिक्षा के क्षेत्र में यह घपले, गड़बड़ी और घोटाले के नाम रहा. साल का सबसे बड़ा घोटाला शिक्षा क्षेत्र से ही जुड़ा हुआ है, वह है बिहार विद्यालय परीक्षा समिति (बीएसइबी) में इंटर (प्लस टू) टॉपर या मेरिट घोटाला. बिहार के शिक्षा जगत में इसे अब तक का सबसे बड़ा घोटाला भी कह सकते हैं. कुछ जानकार इसे चारा घोटाले के बाद सबसे बड़ा घोटाला मान रहे हैं. इसके अलावा मध्य प्रदेश में हुए व्यापमं (व्यावसायिक परीक्षा मंडल) घोटाले के तार सीधे तौर पर बिहार से जुड़े और सीबीआइ ने देश के बड़े घोटालों में शामिल व्यापमं घोटाले मामले में राज्य से कई लोगों को गिरफ्तार भी किया. इन दोनों घोटालों के अलावा राज्य में घोटालों या व्यापक गड़बड़ी से जुड़े तकरीबन सभी मामले शिक्षा के क्षेत्र से ही जुड़े हुए हैं.
बिहार में वर्ष 2016 के इंटर की परीक्षा में व्यापक स्तर पर धांधली उजागर हुई . बीएसइबी के इतिहास में यह पहली बार हुआ कि गड़बड़ी और फर्जीवाड़ा की वजह से साइंस और आर्ट्स के टॉपरों की पूरी सूची ही बदलनी पड़ी. सरकारी कॉलेजों से ज्यादा बेहतर निजी कॉलेजों के रिजल्ट आये, टॉपर भी वहीं के आये. उसमें भी सिर्फ एक-दो कॉलेज के ही रिजल्ट का पूरे परिणाम पर बोलबाला रहा. टॉपरों ने सार्वजनिक रूप से अपने ज्ञान का नमूना क्या पेश किया, परत दर परत पूरे घोटाले की कलई ही खुलती चली गयी. इस घोटाले में बोर्ड के तत्कालीन अध्यक्ष प्रो लालकेश्वर प्रसाद सिंह से लेकर नीचे तक के कर्मचारियों के पूरे नेक्सस का खुलासा हुआ.
आलम यह था कि स्टोर कीपर जैसे चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी विकास कुमार की भूमिका पूरे बोर्ड में सभी तरह के घोटालों में बेहद मुख्य थी. बीएसइबी के अध्यक्ष प्रो लालकेश्वर प्रसाद सिंह ने अपने बेटे के साले विकास चंद्रा उर्फ डब्ल्यू (जो उसका पीए भी था), दामाद विवेक और स्टोरकीपर विकास कुमार के साथ मिलकर पूरे घोटाले को अंजाम दिया था. इनकी तिकड़ी ने ही परीक्षा से लेकर कॉपी खरीद, प्रश्नपत्र छापने से लेकर अन्य सभी तरह के टेंडरों में व्यापक स्तर पर घपलेबाजी और हेरफेर किया था. इनके अलावा मनमाना रिजल्ट बनवाने और अपनी मर्जी के अनुसार टॉपर बनाने के खेल में निजी कॉलेज संचालक बच्चा राय की भूमिका सबसे खास रही.
दो के लालच ने दिया पूरे घोटाले को जन्म
इस घोटाले के मास्टरमाइंड पूर्व अध्यक्ष लालकेश्वर प्रसाद सिंह, उनकी पत्नी पूर्व विधायक उषा सिन्हा और बच्चा राय ही थे. लालकेश्वर दंपती और बच्चा राय की अवैध पैसे कमाने के लालच ने ही पूरे घोटाले को जन्म दिया. पैसे मैडम लेती थीं और साहब अपने हिसाब से नियम-कायदे बनाने का काम करते थे. इस पूरे मामले में अध्यक्ष की पत्नी पैसे के लेन-देन का पूरा डील करती थी. बच्चा राय उन्हें ही मुंहमांगी रकम देकर अपना मनमाना काम करवाता था. मनमाना कीमत देकर बच्चा राय ने वैशाली जिले के किरतपुर स्थित विशुन राय इंटर कॉलेज के छात्रों के लिए टॉपर तक की सीट खरीद ली. अपने कॉलेज के सभी छात्रों को 65 प्रतिशत से ज्यादा अंक दिलाया. आधा से ज्यादा बच्चे 70 प्रतिशत से ज्यादा अंक पाने वाले थे.
इस मनमाना अंक दिलाने के खेल में बीएसइबी के तमाम नियम को ताक पर रखकर धांधली की गयी. विशुन राय इंटर कॉलेज के लिए अलग परीक्षा केंद्र बनाने की सुविधा से लेकर सेंटर मैनेज करके अलग कॉपी जांचने तक की स्पेशल व्यवस्था की गयी थी, जिससे धांधली का पूरा खेल बिना कोई बाधा के चलता रहे. पैसे की बदौलत बच्चा राय ने पूरे बिहार बोर्ड को ही खरीद रखा था. अध्यक्ष तो पॉकेट में थे ही, नीचे तक के सभी मुलाजिम उसकी आवभगत और उसे हर तरह की सुविधा देने में लगे रहते थे. इन तीन लोगों के अलावा इनसे जुड़े अन्य सभी अभियुक्तों ने इस पूरे घोटाले को अंजाम देने में मुख्य सहयोगी की भूमिका निभायी.
एक बेटे का साला, तो दूसरा दामाद
प्रो लालकेश्वर की घपलेबाजी के कुनबे में उसके बड़े बेटे का साला विकास उर्फ डब्ल्यू है, तो विवेक उनका अपना एकलौता दामाद है. सभी तरह के घोटाले में ये लोग शामिल हैं. विवेक ही वह शख्स है, जिसने सर्टिफिकेट और मार्कशीट छापने का पूरा ठेका लिया था. यह काम जिस कंपनी को मिला है, वह है तो बेंगलुरु की. परंतु इसमें विवेक की हिस्सेदारी काफी बड़ी है.
उसने इस कंपनी के नाम पर जम कर पैसा बनाया है. सूत्र यह भी बताते हैं कि सर्टिफिकेट और मार्कशीट में अंक चढ़ाने के नाम पर भी बड़े स्तर पर घपलेबाजी हुई है. टैबलेशन शीट पर अंक को बदलकर इसके आधार पर मार्कशीट में भी अंक बदल दिया जाता है. फिर इसे प्रिंट कर दिया जाता है. प्रिंट होने के बाद इसकी फिर से कॉपी से क्रास वेरिफिकेशन नहीं होने से यह गड़बड़ी सामने नहीं आ पाती है. प्राप्त सूचना के अनुसार, काफी संख्या में लोगों से पैसे लेकर उन्हें फर्स्ट क्लास दे दिया गया . इस पूरे घालमेल का मुख्य सूत्रधार विवेक है. इस पर फिलहाल जांच एजेंसियों की नजर उतनी नहीं है.
पूर्व अध्यक्ष का निजी पीए डब्ल्यू बना हुआ था. जब से अध्यक्ष ने पदभार संभाला था, तब से वह उनके साथ बना हुआ था. डब्ल्यू ही वह व्यक्ति था, जो किसी सेटिंग को अंतिम रूप देता था. इसके बाद ही वह काम अध्यक्ष की तरफ से ओके किया जाता था. स्टोर कीपर विकास की नौकरी अनुकंपा के आधार पर लगी है. परंतु उसकी जितनी तनख्वाह है, उससे कहीं ज्यादा महंगा उसका रहन-सहन है. महंगी घड़ी और गाड़ी हमेशा उसके पास रहती है. ब्रांडेड कपड़े में हमेशा सजा-धजा रहनेवाले विकास को देख कर कोई नहीं कह सकता कि वह इतने साधारण से पद पर काम करने वाला है. इन तीन सूत्रधारों के अलावा भी दो लोग विनोद और पांडेयजी इसमें प्रमुख रूप से शामिल हैं. ये दोनों इनके सहयोगी हैं.
विवेक कुमार मगध विवि के पूर्व वीसी प्रो अरुण कुमार का छोटा बेटा है. मगध विवि में हुए प्राचार्य बहाली घोटाले का मुख्य अभियुक्त प्रो अरुण कुमार हैं. यह मामला फिलहाल कोर्ट में है. निगरानी की जांच में भी उन्हें दोषी ठहराया गया था. इस मामले में निगरानी ने उन्हें गिरफ्तार भी किया था. अपने पिता के समय से ही वह विवि में ठेकेदारी और इस तरह की अन्य धांधलियों में संलिप्त रहा है. इसी अनुभव के आधार पर उसने बोर्ड ऑफिस में भी जम कर धांधली की.
रद्दी बेचने में घोटाला
बीएसइबी में सिर्फ इंटर टॉपर से जुड़े मामले में धांधली नहीं हुई, बल्कि परीक्षा की कॉपी और प्रश्नपत्र छापने, कॉपी की जांच, सर्टिफिकेट और मार्कशीट की गुप्त प्रिंटिंग करने से लेकर पुरानी कॉपी की रद्दी बेचने तक में जम कर धांधली हुई है. पुरानी कॉपी की रद्दी के वजन को कागज पर वास्तविक से कम करके दिखाया जाता और करोड़ों रुपये के वारे-न्यारे किये जाते थे.
इसमें स्टोरकीपर की भूमिका अहम होती थी, लेकिन सभी संबंधित कर्मचारी और सचिव से लेकर अध्यक्ष तक को इसमें शेयर जाता था. इसके अलावा कंप्यूटर, सीसीटीवी कैमरा की खरीद करने से लेकर जितने तरह के टेंडर हुए. सब में धांधली करके अध्यक्ष और उनके सहयोगी के परिचितों ने खूब पैसे बनाये. इन परिचितों सेे पैसे लेकर टेंडर की डील पक्की की जाती थी. इस तरह की तमाम गड़बिड़यों की अलग एफआइआर दर्ज करके जांच चल रही है.
मुख्य अभियुक्त : लालकेश्वर प्रसाद सिंह (बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष), पत्नी उषा सिन्हा (पूर्व विधायक एवं अरविंद महिला कॉलेज की प्रिंसिपल), हरिहरनाथ झा (बोर्ड के पूर्व सचिव), मास्टरमाइंड बच्चा राय (विशुन राय इंटर कॉलेज के प्राचार्य), विकास चंद्रा (पूर्व अध्यक्ष का पीए), विकास कुमार सिंह (स्टोरकीपर).
तलाश रही जारी : एक मुख्य अभियुक्त विवेक कुमार की तलाश अंत तक चलती रही, जो लालकेश्वर प्रसाद सिंह का दामाद है. यह टेंडर घोटाले का मुख्य अभियुक्त है. इसने बाद में कोर्ट से बेल ले लिया था. इस पूरे प्रकरण में विवेक एकमात्र मुख्य अभियुक्त था, जिसे बिना गिरफ्तार हुए ही बेल मिल गया.
अन्य अभियुक्त : शंभूनाथ दास (सेक्शन अफसर), विशेश्वर यादव (प्राचार्य), शैल कुमारी (प्राचार्य), रंजीत मिश्र (क्लर्क), रामभूषण झा (क्लर्क), प्रो. अजित शक्तिमान, अनिल कुमार (पूर्व प्रमुख), प्रभात जायसवाल, संजीव कुमार, संजीव सुमन, निशु, रीता, शकुंतला, नंदिकशोर राय और फर्जी आर्ट्स टॉपर रूबी राय.
10 मई : इंटर साइंस का रिजल्ट आया, 67.06 प्रतिशत छात्र पास, जेइइ पास होने वाले कई छात्र हो गये फेल
28 मई: इंटर आर्ट्स का रिजल्ट आया, 56.73 प्रतिशत छात्र पास
11 मई: बोर्ड कार्यालय में जमकर छात्रों ने किया हंगामा, कॉपी चेकिंग में लापरवाही बरतने से खराब हुआ रिजल्ट
12 मई : रिजल्ट निकलने के दूसरे दिन भी हुआ हंगामा, संशोधन करने की मांग
31 मई : बोर्ड की तरफ से मामले को दबाने और खानापूर्ति के बीच दोनों टॉपरों साइंस के सौरभ श्रेष्ठ तथा आर्ट्स टॉपर रूबी राय का इंटरव्यू आया सामने. इसमें रूबी ने पॉलिटिकल साइंस को खाना बनाने वाले विषय पोडिकल साइंस बताया. जबकि सौरभ पीरियोडिक टेबल में क्रिएक्टव तत्वों के नाम और पानी का रासायनिक सूत्र बताने में विफल रहा. मजाक और बवाल का सिलिसला शुरू हुआ.
1 जून : विशुन राय कॉलेज के ही 222 छात्र आये टॉपर लिस्ट में. बढ़ता गया बवाल. जांच में एक जैसी निकली सभी टॉपरों की हैंडराइटिंग.
2 जून : सौरभ एवं रूबी के रिजल्ट पर लगी रोक. कॉपियों की फिर से जांच करने का बोर्ड ने दिया आदेश. बोर्ड अध्यक्ष ने जांच कराने की घोषणा की.
3 जून : टॉपरों का बंद कमरे में फिर से लिया गया टेस्ट, आर्ट्स टॉपर रूबी राय नहीं आयी. रूबी को बोर्ड में उपस्थित होने का दिया गया फिर से एक मौका. बिहार बोर्ड के इतिहास में पहली बार टॉपर लिस्ट को करना पड़ा प्रूफ.
4 जून : दो टॉपरों रूबी और सौरभ का रिजल्ट रद्द हुआ. बच्चा राय के वीआर कॉलेज की मान्यता निलंबित. कदाचार जांच समिति की रिपोर्ट आयी.
5 जून : बिहार बोर्ड और शिक्षा विभाग ने दो अलग-अलग जांच कमेटी का गठन किया. सीएम ने दिया आदेश, दोषियों पर दर्ज हो एफआइआर, चलेगा आपराधिक मामला.
6 जून : टॉपर घोटाले को लेकर शहर के कोतवाली थाने में एफआइआर हुई दर्ज. पटना एसएसपी नेतृत्व में एसआइटी का गठन.
7 जून : बोर्ड के अध्यक्ष से हुई पूछताछ, कंप्यूटर और लैपटॉप किया गया जब्त. बोर्ड ने माना, टॉपर की कॉपी के साथ हुई थी छेड़छाड़.
8 जून : बोर्ड अध्यक्ष लालकेश्वर प्रसाद सिंह हटाये गये. पटना आयुक्त आनंद किशोर को बोर्ड अध्यक्ष का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया. बड़े खुलासों का सिलिसला शुरू, स्क्रूटनी में बच्चा राय की बेटी को टॉपर बनाने की थी तैयारी. पोल खुलती देख लालकेश्वर और बच्चा राय दोपहर से हो गये फरार.
9 जून : लालकेश्वर एवं बच्चा पर एफआइआर. वीआर कॉलेज में छापा और सील.
10 जून : वैशाली डीइओ हिरासत में, 5 आरोपित भेजे गये जेल. राजदेव राय डिग्री कॉलेज में भी छापेमारी और सील.
11 जून : वैशाली से बच्चा नाटकीय ढंग से हुआ गिरफ्तार. लालकेश्वर के लिए जगह-जगह छापा. इधर, बोर्ड में दूसरी बार भी हाजिर नहीं होने पर 25 जून को आने की दी गयी मोहलत.
12 जून : पूर्व विधायक और लालकेश्वर की पत्नी उषा सिन्हा पर भी एफआइआर. बच्चा समेत 3 भेजे गये जेल. सीएम ने एक कार्यक्र म में ऑपरेशन क्लीन चलाने का किया एलान. स्कूलों में 75 फीसदी हाजिरी की जांच का आदेश . बिहार बोर्ड के दो कर्मचारी गिरफ्तार.
13 जून : बच्चा के 24 बैंक एकाउंट को किया गया फ्रीज. उषा पदस्थापित कॉलेज के क्लर्क को उठाया. हिलसा के पूर्व प्रमुख गिरफ्तार.
14 जून : सभी बीएड और वित्तरिहत कॉलेजों की होगी जांच. लालकेश्वर के बाहर भागने की आयी खबर.
15 जून : लालकेश्वर और उषा पर लुक ऑउट नोटिस जारी. बच्चा के साथ कई बड़े नेताओं की हिस्सेदारी का चला पता.
16 जून : बच्चा राय के घर छापेमारी, भूसा से 20 लाख रुपये, सोने और हीरे के जेवरात बरामद
17 जून : लालकेश्वर के घर चिपकाया इश्तेहार.
18 जून : लालकेश्वर और उषा की तलाश में यूपी, झारखंड और बिहार में कई स्थानों पर छापेमारी.
19 जून : मुजफ्फरपुर के आरबीबीएम कॉलेज की प्राचार्य शकुंतला और एक अन्य महिला मीरा झा गिरफ्तार.
20 जून : उषा एवं लालकेश्वर वाराणसी से अपने बेटे के साढू के घर से गिरफ्तार. रिश्तेदार प्रभात जायसवाल भी गिरफ्त में. इसी के घर छिपे थे दोनों.
21 जून : भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत हुई एफआइआर, लालकेश्वर-उषा समेत सात गये जेल
22 जून : लालकेश्वर-उषा रिमांड पर, मगध विवि के पूर्व कुलपति प्रो. अरुण कुमार के यहां छापेमारी. यह लालकेश्वर के समधी भी हैं.
23 जून : बोर्ड के पूर्व सचिव से भी पूछताछ.
25 जून : आर्ट्स टॉपर रूबी राय का टेस्ट, इसके बाद हुई गिरफ्तार. तीन अन्य टॉपर्स के खिलाफ वारंट जारी.
26 जून: रूबी राय को रिमांड होम के स्थान पर भेज दिया जेल. प्रशासनिक लापरवाही आयी सामने. पूर्व सचिव हरिहरनाथ झा भी हुए गिरफ्तार.
27 जून: पूर्व सचिव हरिहरनाथ झा को भेजा गया जेल. पटना कोतवाली में रखा गया हाजत में
9 दिसंबर: पूर्व अध्यक्ष प्रो. लालकेश्वर प्रसाद सिंह की पत्नी उषा सिन्हा को करीब छह महीने बाद मिली जमानत. इससे पहले दो-तीन अन्य अभियुक्तों को जमानत मिल चुकी है, लेकिन मुख्य अभियुक्तों की सूची में जमानत पाने वाली यह पहली अभियुक्त हैं.
डिग्री बांटने की बड़ी फैक्टरी चलाता था बच्चा
बच्चा राय अपने निजी इंटर कॉलेज के जरिये मनमाना नंबर देकर डिग्री दिलाने की पूरी फैक्ट्री ही चलाता था. जिसे जिस विषय में जितने नंबर चाहिए या इंटर की परीक्षा में सभी विषयों को मिलाकर जितने नंबर चाहिए, उससे उस हिसाब से बच्चा पैसे लेता था. उसकी क्लाइंट लिस्ट में बड़े-बड़े वीवीआइपी तक थे. उसकी सांठगांठ भी कई रसूखदार लोगों से लेकर कई बड़े सफेदपोशों तक से थी. किसी को चुनाव लड़ने के लिए फंडिंग करता था, तो किसी से पैसे लेकर उन्हें एक साल या छह महीने बाद उनके पैसे बढ़ाकर लौटाता था.
उसका सरोकार किसी खास पार्टी के लोगों ने नहीं था, बल्कि जो उसके संपर्क में आया, उसे अपनी फैक्ट्री का किसी ने किसी रूप में हिस्सा बना लेता था. जांच में कई स्थानीय और राज्य स्तरीय नेताओं के नाम भी सामने आये. इनके साथ पैसे की लेन-देन की बात का भी पता चला. डिग्री बांटने की अपनी फैक्ट्री की बदौलत ही उसने सामाजिक और राजनीतिक प्रतिष्ठा भी हासिल कर ली थी. वह किसी पार्टी से टिकट लेकर अपने क्षेत्र से चुनाव लड़ने की तैयारी में भी था. उसके कॉलेज के वार्षिक समारोह में उस समय के शिक्षा मंत्री से लेकर कई बड़े नेताओं के शरीक होने के सबूत भी मिले हैं. कभी बच्चा राय को खाने के लाले पड़े रहते थे, लेकिन इस इंटर कॉलेज की बदौलत वह कुछ ही वर्षों में करोड़पति बन गया.
तलाशे जा रहे बच्चा से जुड़े कई सवालों के जवाब
टॉपर घोटाले की जांच के दौरान यह बात भी सामने आयी थी कि बच्चा राय सिर्फ प्रिंसिपल की भूमिका में नहीं, बल्कि अपने क्षेत्र में तमाम सरकारी और गैर-सरकारी कार्यों में अहम दखलअंदाजी भी करता था. कई नेताओं के रुपये भी उसके कॉलेज में लगे हुए हैं. कुछ बड़े लोगों या सफेदपोशों को वह हर वर्ष अपनी काली कमाई का हिस्सा भी देता था.
हालांकि इन पहलुओं पर अभी जांच जारी है. बच्चा राय से जुड़े सबसे अहम सवाल यह उठता है कि वह किसकी बदौलत पूरा अवैध कारोबार चलाता था. उसके कंसोर्टियम में कई ऐसे लोग भी शामिल हैं या जिससे उसकी सांठगांठ काफी अच्छी थी, वे अब भी पकड़ से बाहर हैं. जांच अधिकारियों का इस मामले में कहना है कि जिन कुछ लोगों के नाम सामने आये हैं, उनसे संबंधित कोई ठोस सबूत नहीं मिले हैं. बच्चा राय की बीएसइबी में सिर्फ पैसे की बदौलत नहीं, बल्कि कुछ राजनीतिक संबंधों की बदौलत भी तूती बोलती थी. प्रो. लालकेश्वर प्रसाद सिंह से पहले भी उसने अपनी सांठगांठ की बदौलत ही अपने इंटर कॉलेज का प्रदर्शन सर्वश्रेष्ठ करवाया था. 2015 और इससे पिछले वर्षों में भी उसके कॉलेज का प्रदर्शन अच्छा ही था. इन पहलुओं पर जांच नहीं हो पायी है. इन सवालों के जवाब अब भी तलाशे जा रहे हैं.
बिहार तक पहुंची व्यापमं घोटाले की आंच
मध्य प्रदेश में हुए व्यापमं घोटाले के तार बिहार से भी जुड़े मिले. यहां से कई लोगों को सीबीआइ की टीम ने गिरफ्तार किया. ये वैसे आरोपित थे, जिन्होंने पैसे की बदौलत गलत तरीके से नौकरी प्राप्त की है.
बिहार के 100 से ज्यादा छात्रों का नामांकन एमपी के कई मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों में कराया गया था और वहां के विभिन्न सरकारी महकमों में गलत तरीके से नौकरी लगायी गयी थी. कइयों ने इस पूरे घोटालेबाजी में सेटर की भी भूमिका निभायी है. इन्होंने यहां लोगों को एमपी में नौकरी दिलाने के नाम पर जमकर लेन-देन किया था. इस मामले की जांच सीबीआइ कर रही है. इसके तहत भोपाल में दो एफआइआर दर्ज की गयी है, जिसमें 10 लोगों को नामजद अभियुक्त बनाया गया है. इनकी गिरफ्तारी भी हो चुकी है. इन 10 अभियुक्तों में पांच बिहार के हैं. इनके बारे में पूछताछ करने और कई संबंधित लोगों से इस मामले के बारे में कई लोगों से पूछताछ और कई पहलू पर जांच करने के लिए सीबीआइ की टीम कई बार पटना भी आ चुकी है.
अन्य चर्चित घोटाले
सीवान : सोलर लाइट खरीद घोटाला
सीवान में नगर परिषद में सोलर लाइट खरीद में 3.85 लाख का घोटाला उजागर हुआ. इस मामले में निगरानी की टीम जांच कर रही है. इसमें प्रशासनिक जांच में तत्कालीन कार्यपालक पदाधिकारी राजीव रंजन प्रकाश को आरोपित किया गया है. वर्ष 2012 के घोटाले का वर्ष 2016 के अप्रैल माह में खुलासा हुआ.
गोपालगंज : पैक्स में 50 लाख का घोटाला
मानिकपुर पैक्स बैंक में ग्राहकों के 50 लाख रुपये का घोटाला कर लिया गया. पैक्स के द्वारा भुगतान नहीं किये जाने पर ग्राहकों ने घोटाला को लेकर डीसीओ को आवेदन दिया. जिस पर मामला खुल कर सामने आया. इसके बाद पांच पैक्स में करोड़ों रुपये का घोटाला किये जाने का मामला सामने आया.
बक्सर : सवा करोड़ का नजारत घोटाला
बक्सर जिले का सबसे बड़ा घोटाले के रूप में नजारत घोटाला रहा है. इसमें लगभग सवा करोड़ रुपये का घोटाला नजारत के कर्मचारी पंकज कुमार द्वारा किया गया था. जिलाधिकारी के आदेश के बाद कर्मचारी पर प्राथमिकी दर्ज करायी गयी थी. पुलिस की दबिश के कारण पंकज ने कोर्ट में सरेंडर कर दिया था. जहां से उसे जेल भेज दिया गया.