बड़ा सवाल : एक तरह के आरोप में सेना और नेता के बीच भेदभाव क्यों?
सुरेंद्र किशोर राजनीतिक विश्लेषक वर्ष 1971 में तुलमोहन राम बिहार के अररिया से कांग्रेसी सांसद थे. वह चर्चित पांडिचेरी लाइसेंस कांड में फंस गये. उन्हें अदालत से सजा हो गयी. सजा काट कर लौटने पर अस्सी के दशक में उनसे मेरी मुलाकात हुई. बिहार विधानसभा के स्पीकर शिवचंद्र झा के चेंबर में उनके सामने ही […]
सुरेंद्र किशोर
राजनीतिक विश्लेषक
वर्ष 1971 में तुलमोहन राम बिहार के अररिया से कांग्रेसी सांसद थे. वह चर्चित पांडिचेरी लाइसेंस कांड में फंस गये. उन्हें अदालत से सजा हो गयी. सजा काट कर लौटने पर अस्सी के दशक में उनसे मेरी मुलाकात हुई. बिहार विधानसभा के स्पीकर शिवचंद्र झा के चेंबर में उनके सामने ही बातचीत हो रही थी. तुल मोहन बौद्ध भिक्षु की पोशाक में थे.
कुरदने पर वह उबल पड़े. उन्होंने एक केंद्रीय मंत्री सहित कई प्रभावशाली नेताओं के नाम लेते हुए कहा कि सबने घोटाला किया और मुझे फंसा दिया. बाकी बच गये क्योंकि वे बड़े प्रभावशाली थे. मैं उनसे यह नहीं पूछ सका कि वे बौद्ध कब और क्यों बने? बलि का बकरा बनाये जाने से बाद या पहले? अब जब मैंने एसपी.त्यागी को लेकर मौजूदा वायुसेना प्रमुख का बयान पढ़ा तो तुल मोहन का चेहरा याद आ गया. आप पूर्व वायुसेनाध्यक्ष त्यागी को भी फिलहाल बेचारा ही कह सकते हैं. हालांकि कोई उन्हें निर्दोष नहीं कह रहा. मौजूदा सेनाध्यक्ष अरूप राहा ने कहा है कि अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकाॅप्टर सौदे को अकेले त्यागी ने अंजाम नहीं दिया. तत्कालीन पीएमओ से लेकर एसपीजी तक उसमें शामिल था. राहा ने ठीक ही कहा है कि त्यागी वायुसेना परिवार के हिस्सा हैं और उन पर आरोप साबित होने तक हम उनके साथ रहेंगे. राहा का यह व्यवहार एक बहादुर सैनिक की तरह ही है. उन नेताओं और अफसरों की तरह नहीं जिन्होंने तुलमोहन को अकेले कष्ट झेलने दिया.
अगस्ता घोटाले में भी तो अनेक बहुत बड़े नेताओं के नाम आ रहे हैं! : मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल में अन्य अनेक महाघोटाले भी हुए. कुछ मंत्री और अफसर भी जेल गये.
पर पीएमओ पर आंच तक नहीं आयी. यहां तक कि जो फैसले प्रधानमंत्री स्तर पर हुए, उनको लेकर भी मनमोहन सिंह से सीबीआइ ने पूछताछ तक नहीं की. इस दोहरे मापदंड को देश ने महसूस किया. परिणामस्वरूप आज मनमोहन प्रधानमंत्री नहीं हैं. याद रहे कि त्यागी की गिरफ्तारी के बाद एक भाजपा नेता ने कहा था कि हम उम्मीद करते हैं कि अगस्ता घोटाले से जो नेतागण लाभान्वित हुए हैं, उन्हें भी एक दिन अदालत तक पहुंचाया जाएगा. पर ऐसा अब तक नहीं हुआ. पूरे प्रकरण में यह संदेश छिपा है कि इस देश के सत्ताधारी नेतागण इस बात का ध्यान रखें कि गलती यदि कई पक्षों से हुई हो तो मुकदमे भी सभी पर चले. यदि बाकी को छोड़कर सिर्फ फौजियों को प्रताड़ित किया जायेगा तो वह देश के लिए ठीक नहीं होगा.
सबके जानने योग्य एक आंकड़ा
केंद्र सरकार का सालाना खर्च करीब 20 लाख करोड़ रुपये है. आय सिर्फ 16 लाख करोड़ रुपये. खर्च चलाने के लिए बाकी चार लाख करोड़ रुपये सरकार उधार लेती है. यानी भारत सरकार को एक घर मानें तो वह भारी घाटे में है. यदि कोई घर इस तरह घाटे में होेगा तो उसके मालिक का क्या हाल होगा? वह कंजूसी से खर्च करेगा. आय बढ़ाएगा.
जहां भी फिजूलखर्ची या चोरी के छेद होंगे, उन्हें अति शीघ्र भर देने में जी जान लगा देगा. पर क्या भारत सरकार के मंत्री, अफसर तथा अन्य कर्मचारी भी कंजूसी से अपना जीवन यापन कर रहे हैं? क्या राजस्व की चोरी के प्रति हमारी सरकारी व्यवस्था सावधान है? क्या टैक्स चोरों को सजा देने-दिलाने की पक्की व्यवस्था की जा रही है? जवाब सब जानते हैं. अपवादों को छोड़े दें तो जो जहां है, वहीं सरकारी धन की चोरी कर रहा है. कर्ज का बोझ अगली पीढ़ियों के सिर पर बढ़ता जा रहा है.
आखिर यह सब देश कैसे बर्दाश्त करता है? यदि इस बीच कोई मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री कुछ बेहतर करना चाहता है तो काली शक्तियां हाथ धोकर उसके पीछे पड़ जाती हैं.
मिट्टी मकान यानी एयर कंडीशनर और हीटर दोनों : भागलपुर के एक प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र ने मिट्टी का मकान भी बनवाया है. तपोवर्धन प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र ने एडोब तकनीकी से मिट्टी का काॅटेज बनाया है.
सामान्य तकनीकी से बने मिट्टी के मकान तेज वर्षा सह नहीं पाते. चिकित्सा केंद्र के निदेशक डॉ.जेता सिंह ने बताया कि मिट्टी के मकान का अलग चिकित्सीय महत्व है. उसमें रखकर इलाज करने पर आधे समय में ही रोगी का मर्ज चला जाता है. मेरे गांव में पहले मिट्टी और ईंट दोनों से मकान बनते थे. बचपन में मैं जब मिट्टी के घर में सोता था तो गर्मी के दिनों में अच्छा लगता है. डॉक्टर बताते हैं कि मिट्टी के घर में रहने वालों की आखों पर जल्दी चश्मा नहीं चढ़ता.
पार्किंग नहीं तो नयी गाड़ी नहीं
केंद्र सरकार एक नया नियम लागू करने जा रही है, जिसके पास पार्किंग का स्थान उपलब्ध नहीं होगा, उसकी नयी गाड़ी का निबंधन नहीं होगा. यह बहुत अच्छी पहल है.
महानगरों में कौन कहे, अब तो मझोले नगरों में भी रात में भी लोगबाग सड़कों पर अपनी गाडियां पार्क करते हैं. इसके साथ ही राज्य सरकारोंं को एक और नियम लागू करना चाहिए. जो व्यक्ति पार्किंग स्पेस में दुकान खोले उसे न तो बिजली का कनेक्शन मिलना चाहिए और न ही उनका बिक्री कर कार्यालय में निबंधन होना चाहिए. इनके अलावा भी सरकार से जो सुविधाएं मिलती हैं,वे बंद हो जानी चाहिए. पटना के मुख्य मार्गों पर हम रोज देखते हैं. बहुमंजिली इमारतों के ग्राउंड फ्लाॅर में पार्किंग के बदले दुकानें खुली हुई हैं. दुकानदारों और ग्राहकों की कारें सड़कों पर रहती हैं जो रोड जाम करती हैं.
प्रधानमंत्री की चिंता
पिछले साल शिक्षक दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात पर अफसोस जाहिर किया था कि अच्छे लोग अच्छी संख्या में सक्रिय राजनीति में नहीं आ रहे हैं. संसद का जो सत्र अभी समाप्त हुआ, उसमें हमारे सांसदों ने कैसा आचरण किया? हंगामा और शोरगुल के कारण उनलोगों ने लोकसभा के 92 घंटे यूं ही बर्बाद कर दिये.
इसे देखकर भला कौन नौजवान राजनीति में जायेगा? हां, राजनीति जिन्हें विरासत में मिलती है,उनकी बात अलग है. हंगामा करने के लिए पार्टी की तरफ से निर्देश मिलता है. हंगामे के लिए हर तरह के शर्म-हया को त्याग कर देना पड़ता है. अब भला बताइए कि किस शरीफ घर का लड़का या लड़की ऐसे काम में जायेगा जहां काम से अधिक उधम मचाना जरूरी होता है? हां, काले धन पर अंकुश लगाने की कोशिश में लगे प्रधानमंत्री यदि संसद के भीतर के ऐसी काली करतूतों को लोहे के हाथों से कड़ाई से रोकने की कोशिश करें और स्पीकर की मदद से संसद की गरिमा पुन:स्थापित करें तो शरीफ लोग राजनीति में सक्रिय होने पर विचार कर सकते हैं.
और अंत में
गुरु गोबिंद सिंह के करीब 500 भक्तगण हाथी-घोड़े पर सवार होकर अमृतसर से पटना आये. पंद्रह सौ किलोमीटर की यात्रा तय करने में उन्हें दो महीने लगे. कुछ लोग पैदल भी आये हैं. उन्हें तो और भी अधिक समय लगा. इनकी अगाध भक्ति तो देखिए! अपने गुरु और उनके जन्मस्थल के प्रति अगाध श्रद्धा! क्या इन लोगों की भक्ति के पीछे की जो भावना है, उसका ध्यान पटना सिटी के लोग भविष्य में करेंगे? क्या उन भक्तों का ध्यान रखते हुए गुरु के जन्मस्थान को आगे भी साफ-सुथरा और अतिक्रमण मुक्त बनाये रखेंगे?
अभी तो पूरा प्रशासन लगा हुआ है. इसलिए सब कुछ ठीकठाक लग रहा है. पर बाद में भी ऐसा ही साफ सुथरा रह पाएगा? क्या पुलिस और दूसरे संबंधित महकमों के अफसरगण अब अतिक्रमणकारियों से रिश्वत लेना बंद करेंगे? पटना सिटी की जाम और गंदगी का सबसे बड़ा कारण स्थानीय अफसरों व कर्मचारियों की रिश्वतखोरी है. वहां तो यह सब मत करो! अरे भई, डायन भी एक घर बख्श देती है!