पटना : बिहार की राजधानी पटना सिटी के तख्त श्री हरमंदिर जी पटना साहिब से थोड़ी दूर हरमंदिर गली में स्थित बाललीला मैनी संगत गुरुद्वारा है. बाल लीला गुरुद्वारा प्रमुख बाबा गुरु गोबिंदर सिंह, बाबा सुखविंदर सिंह, प्रबंधक कमेटी के सचिव सरदार राजा सिंह ने बताया कि बचपन में गुरु महाराज ने यहां चमत्कार किया था. बताया जाता है कि दरअसल, फतह चंद मैनी बड़े जमींदार थे, उनको राजा का खिताब मिला था. पत्नी रानी विश्वंभरा देवी थी. राजा दंपति को संतान का सुख नहीं मिला था. बचपन के गोबिंद राय (श्री गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज) साथियों के साथ के साथ वहां खेलने आते थे. रानी विश्वंभरा देवी गोबिंद राय जैसे बालक का संकल्प कर रोज प्रभु से प्रार्थना करती थी. अंतर्यामी गोबिंद राय एक दिन रानी की गोद में बैठ गये और मां कह कर पुकारा, रानी खुश हुई और धर्म पुत्र स्वीकार कर लिया. धर्म पुत्र स्वीकार करने की स्थिति में फतहचंद मैनी परिवार ने अमरदान कर दिया. हालांकि, बाद में रानी को चार पुत्र हुए. बालाप्रीतम गोबिंद राय बाग में खेलते व पौधों को पानी देते थे. तब से यह स्थान बाललीला गुरुद्वारा बन गया.
गंगा-जमुनी तहजीब की है मिसाल
बताया जाता है कि गुरुनानक देव जी के दो पुत्र थे. एक श्रीचण बाबा और दूसरे लक्ष्मीचंद्र बाबा. श्रीचण बाबा ने मुंगेर प्रवास के दौरान ही इस गुरुद्वारा की नींव रखी थी. संत बाबा परदेशी रामजी उदासीन द्वारा निर्मित प्राचीन संगत 1934 में आये विनाशकारी भूकंप में पूरी तरह से ध्वस्त हो गया था. इसके बाद 1935 के बसंत पंचमी में महंत रामदास जी संत उदासीन ने फिर से इस गुरुद्वारे का निर्माण कराया. संगत प्रबंधन की मानें तो यहां समाधि की पूजा होती है. इसके साथ हिंदू धर्म के सभी देवी-देवताओं की भी पूजा-अर्चना की जाती है.
गुरुद्वारा में स्थित है समाधि
गुरुद्वारे में गुरु व चेले की दो समाधियां आज भी अवस्थित हैं, जिनकी पूजा-अर्चना की जाती है. इस गुरुद्वारों में गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल दिखती है. लोग यहां काफी श्रद्धा के साथ आते हैं और अरदास लगाते हैं. प्रकाशोत्सव के दौरान सभी गुरुद्वारे जगमगा रहे हैं. चारों ओर रौशनी बिखरी पड़ी है.