नाव हादसा : पटना प्रशासन की 10 बड़ी गलतियां, जिसने ली 24 की जान

पटना : पटना में हुए नाव हादसे में के बाद सुरक्षा व्यवस्था को लेकर एक बार फिर सवाल उठने लगे हैं. आखिर प्रशासनिक चूक क्या हुई और कैसे हुई? इतने बड़े आयोजन करने वाला पर्यटन विभाग व्यवस्था में कहां चूक गया? इस घटना ने अपने पीछे लापरवाही और बदइंतजामी के कई सवाल छोड़ गये हैं. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 16, 2017 8:38 AM

पटना : पटना में हुए नाव हादसे में के बाद सुरक्षा व्यवस्था को लेकर एक बार फिर सवाल उठने लगे हैं. आखिर प्रशासनिक चूक क्या हुई और कैसे हुई? इतने बड़े आयोजन करने वाला पर्यटन विभाग व्यवस्था में कहां चूक गया? इस घटना ने अपने पीछे लापरवाही और बदइंतजामी के कई सवाल छोड़ गये हैं. एक ओर पर्यटन निगम की पोल खुल गयी है, वहीं दूसरी ओर प्रशासनिक तंत्र के आपसी कम्यूनिकेशन गैप की बात भी सामने आयी है. लोगों को विज्ञापन देकर बुलाया गया और दो दर्जन लोग काल के गाल में समा गये. आइए जानते हैं पटना प्रशासन की दस बड़ी गलतियां.

1. लोगों को पतंगबाजी के लिये विज्ञापन देकर बुलाया गया. दियारा में आने और जाने के लिये विशेष और मुफ्त व्यवस्था की बात कही गयी. उत्सव को पर्यटन अधिकारी छोटा मानकर भूल कर बैठे. कार्यक्रम में सुरक्षा के लिये तैनात अधिकारी सेल्फी खींचा रहे थे. वहीं प्रधान सचिव पतंग उड़ाने में व्यस्त. गंगा पार गये लोगों को लाने के लिये नाव की व्यवस्था नहीं की गयी. जब शाम होने लगी तो अफरा-तफरी में लोग सब्जी वाली नाव पर सवार होने लगे.

2. घाट पर पर्याप्त संख्या में सुरक्षा बल नहीं थे, जो लोगों को सब्जी वाली नाव में जाने से रोकते. कई पुलिस अधिकारी वहां धूप सेंकने में मशगूल दिखे. 22 फिट लंबी और 6 फिट चौड़ी नाव में क्षमता से अधिक लोग सवार हो गये. कई लोग जबरदस्ती नाव में सवार हुए. वहां कोई भी प्रशासनिक अधिकारी मौजूद नहीं था. गंगा दियारा में कोई भी गोताखोर ड्यूटी पर तैनात नहीं किया गया था.

3. इस तरह के किसी भी आयोजन में पूर्व की व्यवस्था और मॉनेटरिंग के अलावा अधिकारियों की तैनाती मायने रखती है. कितने लोग आये, कैसे आये और उनके जाने की व्यवस्था क्या है. कोई देखने वाला नहीं था. लोगों के लौटने वाले विंदु पर विचार नहीं किया गया.

4. इतना बड़ा आयोजन और सारी तैयारी हवा में. आयोजन से पहले एनआइटी घाट से संचालित होनेवाली नावों की हालत चेक नहीं की गयी. ऐसी कई नाव शनिवार को गंगा में चक्कर लगा रही थीं, जिनकी हालत जर्जर थी. नाव की क्षमता पर भी ध्यान नहीं दिया गया. कोई उसे चेक करनेवाला नहीं था कि 25 की क्षमतावाली नाव पर दोनों तरफ से अनवरत 50 से अधिक लोग कैसे आ और जा रहे हैं. यह प्रशासन की बुनियादी चूक है, जिसने इतने बड़े हादसे को न्योता दिया.

5. कहने के लिए मकर संक्रांति के दिन पर्यटन विभाग, पुलिस के जवान, आपदा प्रबंधन, एसडीआरएफ की टीम की एनआइटी घाट से लेकर उस पार गंगा दियारा तक तैनाती की गयी थी. लेकिन यह तैनाती किस काम की, जब पूरे दिन सभी नावें ओवरलोड दौड़ती रहीं, पर किसी ने ध्यान नहीं दिया. अगर पूरे दिन का सीसीटीवी फुटेज खंगाला जाये, तो साफ हो जायेगा कि जिम्मेदार अधिकारी किस तरह से अपनी सेवा दे रहे थे. हादसा तो अंतिम क्षण में हुआ, लेकिन जोखिम तो पूरे दिन बना हुआ था. नाव पर चढ़ने को लेकर भीड़ पर किसी का नियंत्रण नहीं था.

6.एनआइटी घाट से कुल 28 नावों का संचालन होता है. सभी नावें अलग-अलग क्षमता की हैं. ये सभी निजी हैं और प्रशासन की अनुमति से चलती हैं. नावों की क्षमता 25 से लेकर 35 लोगों की ही है, लेकिन शनिवार को मकर संक्रांति के मौके पर दियारा में आयोजित पतंग उत्सव में भाग लेने के लिए सभी नावों पर 50 से 80 लोग चढ़े देखे जा सकते थे. इन 28 नावों से 50 हजार से अधिक लोगों ने गंगा पार किया. जिम्मेवार अधिकारी सेल्फी लेने, मौज काटने में मशगूल थे. अगर अधिकारी मुस्तैद होते तो इतना बड़ा हादसा टाला जा सकता था.

7.पर्यटन विभाग की तरफ से नाव के लिए मुफ्त सेवा का एनाउंसमेंट किया गया था, लेकिन तैयारी नदारद थी. उस पार नाव के ठहराव स्थल के लिए बनायी गयी बांस की चचरी दोपहर तक नहीं चली और टूट गयी. चचरी टूटने से सरकारी नाव को बंद कर दिया गया. अब 150 की क्षमतावाली नाव ने लोगों को दियारा तक पहुंचा तो दिया, लेकिन वापसी के दौरान हाथ खड़े कर दिये. अतिरिक्त नाव की व्यवस्था भी नहीं की गयी. इससे दियारा से लौटने वालों की संख्या बढ़ने लगी. लोग दिन ढलता देख कर आनन-फानन में नाव की क्षमता भूलकर उस पर सवार होने लगे.

8.प्रशासन की तरफ से सबसे बड़ी चूक तब हुई, जब दोपहर बाद पर्यटन विभाग की नाव का परिचालन बंद कर दिया गया और इसकी सूचना प्रसारित की गयी. यह कहा गया कि दियारा में मौजूद लोग वापसी करें पर्यटन विभाग की नाव बंद हो गयी है. इससे लोगों में अचानक से अफरा-तफरी मच गयी. इस आपाधापी में जैसे ही कोई नाव एनआइटी घाट से दियारा पहुंचती लोग लपक कर चढ़ जाते. कितने लोग चढ़ रहे हैं कोई देखनेवाला नहीं. महिलाएं, बच्चे सब सवार हो रहे थे. भीड़ जिस तेजी से वापसी कर रही थी, उसी तेजी से एनआइटी घाट से लोग दियारा भी जा रहे थे.

9. शाम के चार बजे से दियारा में हालात बेकाबू होने लगे. लोग वापसी के लिए हड़बड़ाये थे. इस बीच पुलिस जवानों को आदेश दिया गया कि दियारा में घूम रहे लोगों को जल्दी वापसी कराइए. इस पर पुलिस के जवान लोगों को जबरदस्ती वापसी के लिए घाट की तरफ भेजने लगे. भीड़ चूंकि खुले मैदान में फैली हुई थी इसलिए पुलिस ने लाठी भी भांजनी शुरू कर दी. हॉस्टल के कुछ छात्रों को पुलिस की लाठी भी खानी पड़ी. इसके बाद पूरा दियारा खाली होने लगा और लोग घाट पर जमा हो गये.

10. विभागों में सुरक्षा व्यवस्था को लेकर आपसी सामंजस्य का घोर अभाव दिखा. पटना प्रशासन और पर्यटन विभाग में आपसी तालमेल का अभाव था. जल्दी गोताखोर और एनडीआरएफ के ज्यादा जवान और नावें समय पर नहीं आयीं. जिसकी वजह से मरने वालों की संख्या में बढ़ोतरी हुई.

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