Loading election data...

चंपारण सत्याग्रह के 100 साल : गुम हो गये बिहार में गांधी के कदमों के पहले निशां

कनुलाल भवन : लोग बताते हैं कि बुद्धा प्लाजा मार्केटिंग कॉम्पलेक्स के इसी भवन की जगह पर पहले कनुलाल का वह मकान था, जहां डॉ राजेंद्र प्रसाद के किराये के मकान में गांधी जी गये थे. दोनों भवन निजी थे, संभवतः इसलिए सरकार उसे संरक्षित करने के लिए कुछ कर नहीं पायी. वैसे भी हमारा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 24, 2017 7:04 AM

कनुलाल भवन : लोग बताते हैं कि बुद्धा प्लाजा मार्केटिंग कॉम्पलेक्स के इसी भवन की जगह पर पहले कनुलाल का वह मकान था, जहां डॉ राजेंद्र प्रसाद के किराये के मकान में गांधी जी गये थे.

दोनों भवन निजी थे, संभवतः इसलिए सरकार उसे संरक्षित करने के लिए कुछ कर नहीं पायी. वैसे भी हमारा फोकस चंपारण के इलाके में है. इससे संबंधित ज्यादातर आयोजन वहीं होंगे. विनोदानंद झा, जन शिक्षा निदेशक, शिक्षा विभाग एवं चंपारण सत्याग्रह शताब्दी आयोजन के संयोजक

पुष्यमित्र
पटना : चंपारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष समारोह को लेकर बिहार सरकार उन तमाम गांवों की पहचान कर उन्हें खास सुविधाएं दे रही है, जहां-जहां उस साल गांधी के चरण पड़े थे. मगर बिहार में जिस जगह गांधी के पहले कदम पड़े थे, उस भवन का कोई अता-पता नहीं है. सरकार से लेकर गांधीवादियों तक कोई यह पुष्ट करने की स्थिति में नहीं है कि डॉ राजेंद्र प्रसाद का वह मकान कहां है, जहां गांधी जी उस वक्त गये थे, जब वह 10 अप्रैल, 1917 को पहली दफा बिहार आये थे. यहां तक कि मौलाना मजहरूल हक के आवास सिकंदर मंजिल का वह ड्राइंग रूम भी ध्वस्त हो चुका है, जहां गांधी जी उसी दिन दोपहर के वक्त गये थे.

राजेंद्र बाबू के मकान पर गये थे पहली बार
इतिहास के पन्नों में यह बात दर्ज है कि महात्मा गांधी पहली दफा बिहार 10 अप्रैल, 1917 को आये थे. वह राजकुमार शुक्ल के साथ पटना उतरे थे और वहां से पैदल ही डॉ राजेंद्र प्रसाद के उस आवास पर गये थे, जो उन्होंने कनुलाल नामक व्यक्ति से किराये पर लिया था. डॉ राजेंद्र प्रसाद उस वक्त शहर से बाहर थे, उनके नौकरों ने गांधी जी का समुचित सम्मान नहीं किया. फिर गांधी जी ने अपने मित्र मौलाना मजहरूल हक को चिट्ठी भिजवायी. हक साहब यह खबर सुन कर कार से भागे-भागे राजेंद्र प्रसाद के आवास पर पहुंचे और वहां से उन्हें अपने आवास फ्रेजर रोड स्थित सिकंदर मंजिल ले गये. गांधी जी वहां उनके ड्राइंग रूम में कुछ देर बैठे और फिर शाम के वक्त मुजफ्फरपुर निकल गये.

किसी को नहीं पता कनुलाल का वह मकान

मगर दुभार्ग्यवश किसी को इस बात की सही खबर नहीं है कि कनुलाल का वह मकान कहां है, जहां राजेंद्र प्रसाद रहते थे. सिकंदर मंजिल तो आज भी फ्रेजर रोड पर स्थित है, मगर उसका वह ड्राइंग रूम ध्वस्त हो गया है. डॉ राजेंद्र प्रसाद के मकान के बारे में लोगों की अलग-अलग राय है.प्रसिद्ध गांधीवादी और गांधी संग्रहालय के सचिव रजी अहमद कहते हैं कि कनुलाल का वह मकान बिहार टेक्स्टबुक कॉरपोरेशन के पीछे था, मगर वह भवन काफी पहले तोड़ कर हटा दिया गया है. चम्पारण सत्याग्रह पर लगातार शोध करने वाले एवं राजकुमार शुक्ल की डायरी का प्रकाशन करने वाले भैरव लाल दास कहते हैं, संभवतः सेन लेबोरेटरी वाला भवन ही कनुलाल जी का वह मकान है, जहां राजेंद्र बाबू रहते थे.

हालांकि सेन लेबोरेटरी वाले मकान के मालिक इस बात से साफ इनकार करते हैं और कहते हैं कि 1913 से यह भवन उनके पास है और इस भवन में डॉ राजेंद्र प्रसाद कभी नहीं रहे. वे कहते हैं कि अशोक सिनेमा के पास मल्टीस्टोरीज पार्किंग से पहले जो बुद्धा प्लाजा नामक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स है, उसी जगह पहले कनुलाल का मकान था. संभवतः राजेंद्र बाबू वहीं रहते होंगे. कुछ लोग यह भी बताते हैं कि संभवतः वह मकान बैंक रोड में था.

ध्वस्त हो गया है सिकंदर मंजिल का वह ऐतिहासिक ड्राइंग रूम
हालांकि फ्रेजर रोड में स्थित मौलाना मजहरूल हक का आवास सिकंदर मंजिल आज भी मौजूद है, मगर उसे किसी अन्य व्यक्त ने काफी पहले खरीद लिया था. अब उस भवन में उस व्यक्ति का भरा-पूरा परिवार रहता है औरग्राउंड फ्लोर पर कई दुकानें खुल गयी हैं. इस बीच रेनोवेशन के नाम पर या कुछ और बनाने के इरादे से उस ड्राइंग रूम को ध्वस्त कर दिया गया है, जहां गांधी हक साहब के साथ काफी देर बैठे थे. किस्सा यह है कि गांधी जब वहां पहुंचे, तो हक साहब सिगार लेने ऊपर चले गये. यह देख कर गांधी उस ड्राइंग रूम क फर्श पर ही बैठ गये और वे तब उठे जब हक साहब ने वादा किया कि आज के बाद वे सिगार नहीं पियेंगे.

मगर वह ऐतिहासिक ड्राइंग रूम भी आज कबाड़े में बदल चुका है. ऐसे में जब सरकार चंपारण शताब्दी वर्ष के मौके पर गांधी के कदमों के निशान तलाश कर वहां अलग-अलग तरह के आयोजन और संसाधनों को उपलब्ध करा रही है. गांधी के बिहार में पहले कदमों के निशां का ही गायब हो जाना यह जाहिर करता है कि हमलोग अपनी विरासत केप्रति कितने लापरवाह हैं.

Next Article

Exit mobile version