पटना : बिहार देश के सबसे तेज विकास दर वाले राज्यों में एक है. राष्ट्रीय स्तर पर कृषि और उत्पादन क्षेत्र में गिरावट का असर यहां भी दोनों क्षेत्रों में देखने को मिला. इसके बावजूद राज्य की अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है. चालू वित्तीय वर्ष में बिहार की विकास दर 7.6प्रतिशत है, जो राष्ट्रीय विकास दर 6.8प्रतिशत से कहीं ज्यादा है.
वित्त मंत्री अब्दुल बारी सिद्दीकी ने गुरुवार को विधानमंडल में आर्थिक सर्वेक्षण, 2016-17 पेश किया. इसके अनुसार विनिर्माण, बिजली, गैस और जलापूर्ति, व्यापार, मरम्मत, होटल-रेस्टोरेंट, परिवहन, भंडारण और संचार में विकास की रफ्तार दो अंकों में रही है. वहीं, राजस्व प्राप्ति में 17.7 हजार करोड़ की बढ़ोतरी हुई है, जबकि प्रति व्यक्ति आय 26,801 रुपये से बढ़ कर 36,964 रुपये हो गयी है. हालांकि, राष्ट्रीय औसत से अब भी यह काफी कम है. वहीं, पिछले पांच वर्षों में वाहन रजिस्ट्रेशन में वृिद्ध में प. बंगाल (24.2 प्रतिशत) के बाद बिहार (15.4 प्रतिशत) पूरे देश में दूसरे नंबर पर है.
सदन में आर्थिक सर्वेक्षण पेश करने के बाद विधानसभा एनेक्सी में आयोजित प्रेस वार्ता में वित्त मंत्री ने इसके बारे में मीडिया को जानकारी दी. इस दौरान 2005-06 से 2015-16 तक राज्य की विकास दर के दो अंकों रहने के मद्देनजर जब विकास दर में गिरावट को लेकर सवाल किया गया, तो सिद्दीकी ने विकास दर में कमी की बात को सिरे से खारिज कर दिया. कहा कि तुलनात्मक रूप से यह कमी इसलिए दिख रही है कि राष्ट्रीय और राज्यों दोनों की आय गणना के लिए आधार वर्ष बदल दिया गया है. अब 2011-12 को आधार वर्ष के तौर पर उपयोग करने हुए केंद्रीय सांख्यिकी संगठन ने जीएसडीपी के अनुमानों की नयी सीरीज जारी की है. वर्ष 2015-16 में भी राज्य की विकास दर सात प्रतिशत के आसपास ही रही थी. राज्य के जीएसडीपी के अनुपात में ऋण या कर्ज की अदायगी में बिहार देश के टॉप-5 राज्य में है. राज्य का ऋण और जीएसडीपी रेशियो 23प्रतिशत है.
14वें वित्त आयोग की अनुशंसा के अनुसार यह 25प्रतिशत से कम रहना चाहिए. वर्ष 2015-16 में बकाया ऋण 88,829 करोड़ था, जिससे ऋण और जीएसडीपी के बीच का अनुपात 21.5प्रतिशत तक रहा. राजस्व प्राप्त के साथ ब्याज भुगतान का अनुपात 2011-12 में 9.3प्रतिशत था, जो 2015-16 में घट कर 8.5प्रतिशत रह गया. यह भी 14वें वित्त आयोग की अनुशंसा 10प्रतिशत से कम ही रहा. बिहार की मुद्रास्फीति दर 2.52प्रतिशत है, जबकि राष्ट्रीय दर 4.31प्रतिशत है.
प्रति व्यक्ति अनुपात में हुई बढ़ोतरी
वर्ष 2015-16 में राज्य का सकल घरेलू उत्पाद 3.27 लाख करोड़ था, जो 2016-17 में बढ़ कर 4.14 लाख करोड़ हो गया. राज्य में प्रति व्यक्ति आय वर्ष 2015-16 में 26,801 रुपये और वर्ष 2014-15 में 25,400 रुपये थी, जो वर्तमान में बढ़ कर 36,964 है. अभी राज्य में प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत का लगभग 35 प्रतिशत है, जबकि करीब 10 साल पहले यह 33प्रतिशत हुआ करता था. हालांकि, राष्ट्रीय प्रति व्यक्ति आय 77 हजार 435 रुपये की तुलना में बिहार की में यह आधी से कम है. पड़ोसी राज्य झारखंड में भी प्रति व्यक्ति आय बिहार से ज्यादा 54,140 रुपये है.
पटना, मुंगेर और बेगूसराय सबसे समृद्ध
प्रति व्यक्ति आय के मामले में जिलावार काफी विभिन्नता या असमानता पायी गयी है. पटना, मुंगेर और बेगूसराय सबसे समृद्ध जिले हैं, जबकि मधेपुरा, सुपौल और शिवहर के लोग सबसे गरीब हैं. अगर पटना को छोड़ दिया जाये, तो मुंगेर में प्रति व्यक्ति सबसे ज्यादा है. मुंगेर में प्रति व्यक्ति आय शिवहर से तीन गुना ज्यादा है. वहीं, शिवहर जिले में प्रति व्यक्ति आय राज्य में सबसे कम है.
प्राथमिकी क्षेत्र का योगदान जीएसडीपी में घटा
कृषि में विकास दर घटने से राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में प्राथमिक क्षेत्र की हिस्सेदारी में पिछले वर्षों की तुलना में गिरावट आयी है. वर्ष 2015-16 में प्राथमिक की हिस्सेदारी जीएसडीपी में 19.6प्रतिशत से घट कर 18.1 प्रतिशत रह गयी. वहीं, सेकेंडरी सेक्टर (द्वितीयक) की हिस्सेदारी 17.1 प्रतिशत बढ़ कर 18.1प्रतिशत हो गयी है.
टरसियरी (तृतीयक) सेक्टर की हिस्सेदारी तकरीबन बराबर रही. तृतीयक क्षेत्र की हिस्सेदारी 2014-15 मेें 59.8प्रतिशत की तुलना में 2015-16 में 59.9प्रतिशत रही. वर्ष 2011-12 से 2015-16 की तुलना की जाये, तो प्राथमिक क्षेत्र में 7प्रतिशत की गिरावट और तृतीयक क्षेत्र में 6प्रतिशत की उछाल आयी है. राज्य में निर्माण के क्षेत्र में तरक्की नहीं हुई, लेकिन सर्विस सेक्टर में ग्रोथ होने से यह बढ़ोतरी दर्ज की गयी है.
इस तरह मजबूत हुई राज्य की वित्तीय सेहत
– राजस्व अधिशेष 2011-12 के 4,820 करोड़ से बढ़कर 2015-16 में 12,507 करोड़ हुआ. यह अब तक का सर्वोच्च स्तर है. इससे पूंजीगत व्यय या विभिन्न योजनाओं में 5,800 करोड़ अतिरिक्त खर्च करने की क्षमता मिली.
– राजस्व प्राप्ति में 17,706 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई, जिसमें 16,659 करोड़ (94 प्रतिशत) की वृद्धि अकेले कर राजस्व बढ़ने से हुई है.
– केंद्रीय अनुदान में पिछली बार की तुलना में मात्र 420 करोड़ की ही बढ़ोतरी हुई, जबकि राज्य के आंतरिक टैक्स कलेक्शन में 628 करोड़ की बढ़ोतरी हुई है.
– वित्तीय वर्ष 2011-12 से 2015-16 तक पांच वर्षों में राज्य के अपने राजस्व में 19% की वृद्धि दर्ज की गयी. यह 12 हजार 612 करोड़ से बढ़ कर 25 हजार 449 करोड़ हो गया.
– इसी तरह राजस्व व्यय में भी वित्तीय वर्ष 2014-15 की तुलना में 2015-16 के दौरान में 11 हजार 46 करोड़ की वृद्धि हुई है. इस खर्च में सामाजिक सेवाओं में 4230 करोड़ (38 प्रतिशत), आर्थिक सेवाओं में 5,251 करोड़ (48प्रतिशत) और सामान्य सेवाओं में 4564 करोड़ (14 प्रतिशत) की हिस्सेदारी है.
– सामाजिक विकास में खर्च 2011-12 के 19 हजार 536 करोड़ से बढ़ कर 38 हजार 684 करोड़ हो गया. इससे जन कल्याणकारी योजनाओं में राज्य सरकार की तरफ से विशेष ध्यान देने की बात सामने आती है
आर्थिक प्रबंधन के मामले में सरकार ने बेहतर काम किया है. सरप्लस राजस्व हासिल करने में कामयाबी मिली. खर्च का प्रबंधन दृढ़ता से किया गया. गैर उत्पादक खर्चों में कटौती की गयी. परिसंपत्तियों के निर्माण पर जोर दिया गया. इससे अर्थव्यवस्था सकारात्मक दिशा में जाती हुई दिख रही है. जीएसडीपी में कृषि की हिस्सेदारी कम हो रही है, यह विकास के लिहाज से अच्छा संकेत है. (शैबाल गुप्ता, अर्थशास्त्री)
इन क्षेत्रों में 10प्रतिशत से अधिक वृद्धि
17.7% विनिर्माण क्षेत्र में दर्ज की गयी
15.2% बिजली, गैस और जलापूर्ति में
14.6% व्यापार, मरम्मत, होटल व रेस्टोरेंट में
12.6% परिवहन, भंडारण और संचार में
टाॅप और फिसड्डी जिले
मानदंड टॉप थ्री बॉटम थ्री
प्रति व्यक्ति आय (पटना, मुंगेर, बेगूसराय) (शिवहर, सुपौल, मधेपुरा)
पेट्रोल खपत (पटना, मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण) (शिवहर, अरवल, शेखपुरा )
डीजल खपत (पटना, पूर्वी चंपारण, मुजफ्फरपुर) (शिवहर, अरवल, शेखपुरा)
एलपीजी उपयोग (पटना, मुजफ्फरपुर, पूर्वी शेखपुरा) (शिवहर, अरवल, चंपारण)
छोटी बचत (पटना, सारण, नालंदा) (प चंपारण, सीतामढ़ी, अररिया)