एक जांच, फीस अलग-अलग

बढ़ता मर्ज. शहर के प्राइवेट अस्पतालों में जांच की अलग-अलग रेट आनंद तिवारी पटना : शहर के प्राइवेट अस्पतालों में एक ही तरह की जांच और इलाज के लिए मरीजों को अलग-अलग फीस चुकानी पड़ती है. कुछ अस्पतालों ने जांच की रेट लिस्ट भी लगा रखी है. मरीजों से मनमाना दाम वसूले जाने का खुलासा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 10, 2017 8:15 AM
बढ़ता मर्ज. शहर के प्राइवेट अस्पतालों में जांच की अलग-अलग रेट
आनंद तिवारी
पटना : शहर के प्राइवेट अस्पतालों में एक ही तरह की जांच और इलाज के लिए मरीजों को अलग-अलग फीस चुकानी पड़ती है. कुछ अस्पतालों ने जांच की रेट लिस्ट भी लगा रखी है. मरीजों से मनमाना दाम वसूले जाने का खुलासा तब हुआ, जब गुरुवार को प्रभात खबर की टीम ने शहर के एक दर्जन से अधिक प्राइवेट अस्पतालों में मरीजों से जांच के लिए ली जा रही फीस की जानकारी ली. महंगी जांच में हजार से दो हजार तक के अंतर पाये गये. इसके बाद भी स्वास्थ्य विभाग इन अस्पतालों पर कार्रवाई नहीं कर रहा है.
प्राइवेट अस्पतालों में जेनरल, रेगुलर प्राइवेट और डीलक्स के नाम पर मरीजों से लूट हो रही है. सभी अस्पतालों में अलग-अलग वार्ड हैं. इनके चार्ज भी सुविधा के हिसाब से अलग हैं. डीलक्स और रेगुलर वार्ड के चार्ज अधिक होने के कारण आम लोगों को जमीन से लेकर जेवर तक गिरवी रखना पड़ता है. वहीं, सुविधा के नाम पर अस्पतालों में पर्सनल रूम की भी व्यवस्था दी जा रही है. इसमें लग्जरी होटलों की तरह मरीजों को रूम के साथ-साथ छोटा किचन स्पेस, ड्राइंग रूम, सेपरेट बाथरूम और बॉलकनी आदि उपलब्ध करायी जाती है. इसके लिए खास शुल्क लिये जाते हैं.
पहले जमा कराया जाता है एडवांस : अस्पताल में मरीज भरती होता है. उसके बाद उसका क्या इलाज हो रहा उसकी जानकारी परिजनों को नहीं मिल पाती है. बस डॉक्टर आते हैं, इलाज करते हैं, जांच लिखते हैं और चले जाते हैं. बाद में मरीजों को रिपोर्ट के साथ बिल थमा दिया जाता है. कुछ कॉरपोरेट अस्पतालों में मरीज को भरती करने से पूर्व ही एडवांस पैसे ले लिये जाते हैं. ताकि बाद में पैसे का झंझट न रहे.
कम कीमत के नहीं बनाये जाते वार्ड व रूम : मरीजों को बेहतर सुविधा कितनी अधिक मिल रही है, इसका अंदाजा पटना के अस्पतालों के बढ़ते दामों को देख कर लगाया जा सकता है. सरकारी अस्पतालों में फ्री और कम रेट के वार्ड उपलब्ध होते हैं, पर यह पटना तक सीमित है. और यहां भी मानक के अनुरूप सुविधा नहीं है. ज्यादातर दवाएं मरीजों को खरीद कर लानी पड़ती हैं. सीनियर डॉक्टर मनमर्जी से आते हैं.
क्लिनिकल एक्ट की उड़ रहीं धज्जियां : सेंट्रल क्लीनिकल स्टैब्लिशमेंट एक्ट के तहत लागू एक बीमारी के इलाज के लिए एक फीस के नियम की शहर में खुलेआम धज्जियां उड़ायी जा रही हैं. प्रदेश में यह एक्ट भले ही सितंबर, 2013 से लागू है, लेकिन प्राइवेट अस्पताल इसे नहीं मानते. इन्हीं कारणों से पटना में चलनेवाले नर्सिंग होम में जांच व इलाज के रेट में काफी अंतर है.
…तो खत्म हो सकती है मान्यता :
क्लीनिकल स्टैब्लिशमेंट एक्ट के उल्लंघन पर प्राइवेट अस्पतालों की मान्यता भी रद्द की जा सकती है. दरअसल, इनको मान्यता देते वक्त डॉक्टर की डिग्री, एक समान रेट, साफ-सफाई आदि सामान्य चीजें देखी जाती हैं. जांच में यदि नर्सिंग होम तय रेट से अधिक लेते पाये गये, या फिर गंदे स्थान में पाये जाता हैं, तो उनके ऊपर नियमानुसार कार्रवाई की जा सकती है.
हमें सूचना दें
यदि आप भी इलाज के दौरान परेशानी के शिकार हुए हैं, तो सबूत के साथ हमें patna@prabhatkhabar.in पर मेल करें, आप हमें वाट्सएप नंबर 7979700490 पर भी सूचना दे सकते हैं.
ठोस कदम उठाने की जरूरत
एक तरह की जांच और इलाज का एक समान रेट होना चाहिए. अगर ऐसा होता है, तो मरीजों को काफी राहत मिलेगी. मैं इस मुद्दे को स्वास्थ्य विभाग की बैठक में उठाऊंगा. वहां से निर्णय आते ही उचित कदम उठाया जायेगा.
डॉ जीएस सिंह, सिविल सर्जन

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