20 सप्ताह का गर्भ गिराया जा सकता है या नहीं : कोर्ट

पटना : पटना उच्च न्यायालय ने सोमवार को इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (आइजीआइएमएस) को एक मेडिकल बोर्ड गठित कर यह निर्णय लेने का आदेश दिया कि क्या 20 हफ्ते से ज्यादा समय से गर्भावस्था में पहुंच गयी एचआइवी संक्रमित महिला का गर्भ गिराया जा सकता है या नहीं. यह आदेश जस्टिस दिनेश सिंह […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 11, 2017 6:56 AM

पटना : पटना उच्च न्यायालय ने सोमवार को इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (आइजीआइएमएस) को एक मेडिकल बोर्ड गठित कर यह निर्णय लेने का आदेश दिया कि क्या 20 हफ्ते से ज्यादा समय से गर्भावस्था में पहुंच गयी एचआइवी संक्रमित महिला का गर्भ गिराया जा सकता है या नहीं. यह आदेश जस्टिस दिनेश सिंह की एकल पीठ ने उक्त महिला की ओर से दायर याचिका की सुनवाई के बाद दिया. कोर्ट को बताया गया कि बलात्कार की शिकार महिला का इलाज के दौरान 17 हफ्ते का गर्भ पाया गया. इस दौरान यह भी पाया गया कि वह एचआइवी संक्रमित है.

टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की शोध छात्रा की पहल पर पीड़िता से याचिका दायर करवाई गयी. याचिका की सुनवाई तक महिला 20 हफ्ते की गर्भावस्था में पहुंच गयी. केस की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील अंशुल ने सर्वोच्च न्यायालय के तीन आदेशों में जो रुलिंग (कानून) बन चुकी है, को पढ़ कर सुनाया और इस आधार पर कोर्ट से फैसले का अनुरोध किया. अधिवक्ता अंशुल ने कहा कि एचआइवी पीड़ित का बच्चा भी एचआइवी पीड़ित जन्म ले सकता है.
इसलिए, ऐसे गर्भ को गिरा देना ही उचित है. गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय की रूलिंग यह कि 24 हफ्ते की गर्भावस्था में गर्भ कमजोर होने के कारण बच्चा मृत पैदा ले सकता था. इसलिए गर्भ गिरने की प्रार्थना को सर्वोच्च न्यायालय ने स्वीकार किया.
वकीलों की नियुक्ति से संबंधित अवमानना वाद हुआ खारिज
पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और जस्टिस सुधीर सिंह ने सोमवार को राज्य सरकार के खिलाफ उस अवमानना याचिका को खारिज किया, जिसमें राज्य सरकार के द्वारा नियुक्त उसके पांच अधिवक्ताओं की नियुक्ति एवं अपने पद पर बने रहने देने को न्यायालय की अवमानना बताया गया था.
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दिनेश ने कहा कि अभी हाल में ही सर्वोच्च न्यायालय ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में पंजाब सरकार को बिना उच्च न्यायालय के मशविरे से सरकारी वकीलों की नियुक्ति को गलत बताया था. ऐसा बिहार में भी हुआ जो सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का अवमानना था. प्रधान अतिरक्ति महाधिवक्ता चितरंजन सिन्हा एवं अतिरक्ति महाधिवक्ता पुष्कर नारायण साही ने कहा कि बिहार में राज्य लिटिगेशन पॉलिसी है जिसके तहत सरकारी अधिवक्ताओं की बहाली होती है. इसके लिए उच्च न्यायालय से परामर्श की आवश्यकता नहीं है.
दोनों पक्ष तैयार हो, तो गरमी छुट्टी में भी सुनवाई
पटना उच्च न्यायालय में गरमी की छुट्टी में केस की सुनवाई के लिए दोनों पक्ष तैयार होंगे तो संबंधित मामले का उस दौरान निबटारा किया जायेगा. सोमवार को पटना उच्च न्यायालय के उच्च न्यायाधीश तथा वरीय न्यायमूर्तियों की एक बैठक हुई. बैठक में उच्च न्यायालय के तीनों अधिवक्ता संघों के अध्यक्ष भी उपस्थित हुए. यह निर्णय हुआ कि किसी भी केस में अगर दोनों पार्टी तैयार हों कि ग्रीष्मावकाश में उनके केस को सुना जाये, तो इस तरह भी उनके केस निपटारा किया जा सकेगा. इस बैठक में न्यायमूर्ति समरेंद्र प्रताप सिंह, न्यायमूर्ति अजय कुमार त्रिपाठी, महाधिवक्ता रामबालक महतो, प्रधान अतिरक्ति महाधिवक्ता ललित किशोर, अधिवक्ता एसोसिएशन के अध्यक्ष योगेश चंद्र वर्मा, बार एसोसिएशसन के अध्यक्ष पुष्कर नारायण साही एवं लॉयर्स ऐसोसिएशन के उमाशंकर मौजूद थे.
कैंसर दवा की बिक्री घोटाला में जवाब दे आइजीआइएमएस पटना. पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन एवं न्यायमूर्ती सुधीर सिंह की खंडपीठ ने सोमवार को इंदिरा गांधी आयुर्वज्ञिान संस्थान (आइजीआइएमएस) को कैंसर की दवा की बिक्री के कथित घोटाले के विषय में जवाब देने के लिये कहा है. कोर्ट ने यह आदेश प्रज्ञा भारती की जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान दिया.

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