ऐसी बने नगर सरकार : 37 वार्डों में होते थे 52 प्रतिनिधि

अमिताभ श्रीवास्तव पटना सिटी : अतीत में निगम के समृद्ध इतिहास को याद कर उस समय वार्ड संख्या 29 के पूर्व पार्षद रहे अवधेश कुमार सिन्हा कहते हैं कि भले ही पूरा पटना शहर 37 वार्ड में समाया था. लेकिन, उस समय 52 लोगों की टोली होती थी, जिनको पार्षद जैसा अधिकार प्राप्त था. यह […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 14, 2017 7:00 AM
अमिताभ श्रीवास्तव
पटना सिटी : अतीत में निगम के समृद्ध इतिहास को याद कर उस समय वार्ड संख्या 29 के पूर्व पार्षद रहे अवधेश कुमार सिन्हा कहते हैं कि भले ही पूरा पटना शहर 37 वार्ड में समाया था. लेकिन, उस समय 52 लोगों की टोली होती थी, जिनको पार्षद जैसा अधिकार प्राप्त था. यह व्यवस्था 2002 से बंद हो गयी.
वार्ड संख्या 29 का 1984 से 2000 तक यानी 18 वर्षों तक प्रतिनिधित्व करनेवाले पूर्व पार्षद अवधेश कुमार सिन्हा 52 के गणित को समझाते हुए कहते हैं कि चुनाव में जीत कर 37 जनप्रतिनिधि आते थे. इसके अलावा सरकार के दो पदाधिकारी लोक स्वास्थ्य विभाग के मुख्य अभियंता व नगर विकास विभाग के आयुक्त जो सरकारी पदाधिकारी होते हैं, उनको भी सदन में मतदान का अधिकार प्राप्त था.
जबकि, तीन प्रतिनिधि संगठन के होते थे. इसमें चैंबर ऑफ कॉमर्स, ट्रेड यूनियन व स्नातक वर्ग से एक-एक प्रतिनिधि होते थे, जबकि सरकार की ओर से पांच को मनोनीत किया जाता था. इस तरह 47 लोगों की टोली पांच सदस्यों को कॉप्शन के माध्यम से चुनती थी. इसमें एक अनुसूचित जाति का सदस्य होता था, जबकि चार सदस्य सामान्य वर्ग के. इस तरह 52 लोगों की टोली शहर के विकास में लगी रहती थी.
वर्ष 2000 से यह प्रथा सरकार ने बंद कर दी. साथ ही पार्षद के आंतरिक अधिकार की कटौती की गयी. उस समय केएन सहाय, कृष्ण बहादुर, देवता प्रसाद सिंह चौधरी, जमुना प्रसाद व श्याम बाबू राय सरीखे महापौर होते थे, जिससे निगम की गरिमा बढ़ती थी. अब तो स्थिति यह है कि महापौर व अधिकारी की आपस में नहीं बनती. उप महापौर कौन होगा, इसके लिए न्यायालय का शरण लेना पड़ता है. अतीत को याद करते हुए वे बताते हैं कि शहर के विकास के लिए निगम के अलावा गंदी बस्ती सुधार योजना, पटना क्षेत्रीय विकास प्राधिकार व जिला योजना की राशि से भी वार्ड का विकास होता था. अब यह प्रथा भी खत्म हो गयी.
इसी प्रकार निगम का विद्युत अभियंत्रण विभाग बंद होने से विद्युुत विभाग पर आश्रित होना, पटना जल पर्षद जो एक इकाई के तौर पर कार्य करता था, वह अब बिहार राज्य जल पर्षद के अधीन है. नतीजतन स्थिति यह है कि निगम सेवा की मूल आत्मा से पार्षदों को वंचित कर दिया गया है.
अवधेश कुमार सिन्हा
पूर्व पार्षद

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