नौ प्रत्याशी, आठ राउंड की वोटिंग, तब बने उपमहापौर
यादों के झरोखे से बोर्ड के आय स्रोत को बढ़ाने का दायित्व भी होता था पार्षदों पर. अब तो महापौर और अधिकारी में नहीं बनती. उप महापौर कौन होगा, इसके लिए कोर्ट जाना पड़ता है. अमिताभ श्रीवास्तव पटना सिटी : अतीत में निगम के समृद्ध इतिहास को याद कर पूर्व उप महापौर जिया उल्ला खां […]
यादों के झरोखे से
बोर्ड के आय स्रोत को बढ़ाने का दायित्व भी होता था पार्षदों पर. अब तो महापौर और अधिकारी में नहीं बनती. उप महापौर कौन होगा, इसके लिए कोर्ट जाना पड़ता है.
अमिताभ श्रीवास्तव
पटना सिटी : अतीत में निगम के समृद्ध इतिहास को याद कर पूर्व उप महापौर जिया उल्ला खां कहते हैं कि उपमहापौर के चुनाव में नौ प्रत्याशी मैदान मे थे. आठ राउंड की वोटिंग के बाद वो नरेश महतो को हरा कर 1990 में उप महापौर बने थे.
पार्षद कहते हैं कि निगम बोर्ड का अतीत इतना समृद्ध था कि पार्षदों का दायित्व हंगामा करना नहीं, विकास करना होता था. निगम बोर्ड के आय-स्रोत को बढ़ाने का दायित्व भी पार्षदों पर होता था. वार्ड के विकास के साथ आय का स्रोत बढ़े, इस पर पार्षद राय देते थे. पार्षदों की राय महापौर से लेकर निगम के अधिकारी तक सुनते थे, उसे अमल में भी लाते थे. अब तो महापौर के आदेश भी अधिकारी नहीं मानते. तीन दशक 1977 से लेकर 2007 तक वार्ड संख्या 31, जो बाद में वार्ड संख्या 50 फिर 64 हुआ, का प्रतिनिधित्व करनेवाले पूर्व उपमहापौर बताते हैं कि उस समय मधुसुदन यादव महापौर हुआ करते थे. मिल बैठ कर निगम के आय स्रोत को बढ़ाने के उपाय पर चर्चा होती थी. अब तो निगम को केंद्र और राज्य सरकार से भी फंड आता है. फिर भी शहर का विकास और बुनियादी समस्याओं का समाधान नहीं हो पा रहा है.
इसकी मूल वजह यह है कि पार्षदों का मकसद पक्ष-विपक्ष में बंट कर हंगामा करना होता है. शालीनता तो जैसे समाप्त हो गयी है. 30 वर्षों तक स्टैंडिंग कमेटी के सदस्य रहे पूर्व उप महापौर का मानना है कि घर-घर कचरा उठाने के एवज में पैसे वसूलते हैं, वो न्यायोचित नहीं है. क्योंकि, जनता पहले से ही मकान के टैक्स में सफाई की राशि दे रही है. अब तो स्थिति यह है कि महापौर और अधिकारी की आपस में नहीं बनती. उप महापौर कौन होगा, इसके लिए कोर्ट का शरण लेना पड़ता है.