बिहार कर्मचारी चयन आयोग : सीके अनिल ने खुद को बताया बेकसूर, शीर्ष लोगों पर फंसाने का आरोप

पटना : बिहार कर्मचारी चयन आयोग (बीएसएससी) के ओएसडी सीके अनिल ने मीडिया में एक पत्र जारी कर अपने को पूरी तरह से बेकसूर बताया है. पत्र के अंत में सीके अनिल ने पूरे मामले में उन्हें गलत तरीके से फंसाने और एसआइटी पर भेदभाव करने का आरोप लगाया है. उन्होंने शीर्ष नेता, उनके प्रधान […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 21, 2017 6:37 AM

पटना : बिहार कर्मचारी चयन आयोग (बीएसएससी) के ओएसडी सीके अनिल ने मीडिया में एक पत्र जारी कर अपने को पूरी तरह से बेकसूर बताया है. पत्र के अंत में सीके अनिल ने पूरे मामले में उन्हें गलत तरीके से फंसाने और एसआइटी पर भेदभाव करने का आरोप लगाया है. उन्होंने शीर्ष नेता, उनके प्रधान सचिव के अलावा मुख्य सचिव, विकास आयुक्त, गृह सचिव समेत अन्य पर षड्यंत्र करने का आरोप भी लगाया है. उन्होंने पत्र के माध्यम से यह भी कहा है कि वह फरार नहीं हैं, बल्कि स्पाइन में तकलीफ से चलने में दिक्कत होती है.

इसलिए तीन महीने की मेडिकल लीव पर हैं. इसकी सूचना उन्होंने बकायदा मुख्य सचिव समेत अन्य संबंधित अधिकारियों को दे दी है. उन्होंने पत्र में राज्य के शीर्ष राजनेता और उनके प्रधान सचिव पर फंसाने का आरोप लगाते हुए कहा है कि इनके इशारे पर ही एसआइटी सारा तमाशा कर रही है. इनके दबाव में ही उन्हें इस पेपर लीक कांड में जबरन फंसाया जा रहा है. उस ‘प्रधान सचिव’ को 25 वर्ष के सर्विस काल को पूरा किये बिना ही समय से पहले अगस्त 2016 में ही प्रधान सचिव रैंक में प्रोन्नति दे दी गयी थी.
केंद्रीय कार्मिक नियमावली के अनुसार यह पूरी तरह से गलत है. उस दौरान इस मुद्दे को उन्होंने मजबूती से उठाने का काम किया था. इसी वजह से एसआइटी के जरिये इस मामले में उन्हें फंसाया जा रहा है. अनिल ने पत्र में यह भी जिक्र किया है कि उन्हें कई बार धमकी मिल चुकी है और उनकी जान को खतरा है. इसका जिक्र करते हुए पेपर लीक कांड की जांच सीबीआइ से कराने के लिए वे तीन बार राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और केंद्रीय कार्मिक मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह को पत्र लिख चुके हैं, लेकिन अभी तक इस मामले में कोई सुनवाई नहीं हुई है. इससे परेशान होकर वे यह पत्र मीडिया में जारी कर रहे हैं. ताकि वे अपनी बात कह सकें.
दावा : किसी अवैध छुट्टी पर नहीं, बल्कि मेडिकल लीव पर हैं
उन्होंने अपनी फरारी की बात को खारिज करते हुए इसका विस्तृत स्पष्टीकरण दिया है. लिखा है कि उनके स्पाइन में काफी तकलीफ है, जिसका इलाज कराने के लिए वह नई दिल्ली के सफदरगंज अस्पताल के स्पोर्ट इंज्यूरी सेंटर के डॉक्टर से संपर्क किया और फिर राम मनोहर लोहिया हॉस्पिटल में हड्डी रोग विभाग के डॉक्टर से मिले.
इस संबंध में उन्होंने राज्य के मुख्य सचिव को रजिस्टर डाक से तीन महीने की मेडिकल लीव लेने के लिए आवेदन भी पहले से ही भेज रखा है. वह वर्तमान में किसी अवैध छुट्टी पर नहीं, बल्कि मेडिकल छुट्टी पर चल रहे हैं. उन्होंने इस बात का भी खंडन किया है कि उन्होंने तत्कालीन अध्यक्ष सुधीर कुमार के आवेदन पर हस्ताक्षर किया है. इस मामले में स्पष्टीकरण देते हुए 17 मार्च 2017 को मुख्य सचिव को तमाम साक्ष्यों के साथ पत्र भी लिख चुके हैं.
बीएसएससी में कोई काम ही आवंटित नहीं था फिर वह इस पूरी धांधली में कैसे शामिल
सीके अनिल ने लिखा है कि वे सच्चाई के लिए लड़ रहे हैं. उनके जीवन को खतरा है. अगर ऐसे में मीडिया इस मुद्दे को नहीं उठायेगी, तो कौन उठायेगा. पूरा सिस्टम राजनीति, न्यायपालिका और कार्यपालिका इस मामले में संलिप्त हैं. उन्होंने आगे कहा है कि पेपर लीक कांड के तीन प्रमुख अभियुक्त आनंद प्रीत सिंह बरार, विनित अग्रवाल और उस व्यक्ति को भी नहीं जानते हैं, जिसने प्रश्न-पत्र सेट किया है.
प्रश्न-पत्र छापने वालों के यहां विजिट करने के लिए बीएसएससी के अध्यक्ष सुधीर कुमार ने स्वयं सामान्य प्रशासन विभाग को पत्र लिखा था. इस वजह से उनका कभी इन लोगों से कोई संपर्क कभी हुआ ही नहीं. उनके पास बीएसएससी में किसी ऑफिस आदेश के माध्यम से कोई काम ही आवंटित नहीं था. फिर वह इस पूरी धांधली में कैसे शामिल हो सकते हैं.
मीडिया में बयान देने के बाद भी दफ्तर नहीं आये सीके अनिल
एक अंगरेजी अखबार को दिये गये इंटरव्यू के बाद भी आइएएस सीके अनिल दफ्तर नहीं आये. इंटरव्यू के अनुसार उनका कहना था कि वे अब सामने आयेंगे, लेकिन गुरुवार को पूरे दिन दफ्तर में उनका इंतजार होता रहा और अनिल दफ्तर में नहीं आ सके. वे बतौर विशेष कार्य पदाधिकारी बीएसएससी में तैनात हैं. चेयरमैन संजीव कुमार सिन्हा को भी न तो इसकी कोई जानकारी है और न ही दफ्तर के किसी अन्य कर्मचारी को ही इसका पता है.
22 फरवरी को उनको अंतिम बार बीएसएससी में देखा गया था. उसके बाद वे इस कार्यालय में नहीं आये हैं. आयोग में आइएएस सीके अनिल के अलावा दो और ओएसडी बिहार प्रशासनिक सेवा से नियुक्त थे. अगस्त 2015 के बाद एक ओएसडी को ट्रांसफर कर दिया गया. अब मनोज कुमार यहां पर दूसरे ओएसडी के रूप में तैनात हैं.

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