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यादों के झरोखे से : एक वर्ष की कुरसी, पांच वर्ष तक राज किया

अनिकेत त्रिवेदी पटना : नगर निगम का इतिहास कई उतार-चढ़ाव से भरा पड़ा है. मेयर व उपमेयर की कुरसी के खेल में कई गहरी चालें नगर निगम के इतिहास में नजीर बन गयी हैं. 2002 में निगम नेताओं को एक वर्ष के लिए मेयर व उप मेयर की कुरसी मिली थी, मगर लोगों ने नियमों […]

अनिकेत त्रिवेदी
पटना : नगर निगम का इतिहास कई उतार-चढ़ाव से भरा पड़ा है. मेयर व उपमेयर की कुरसी के खेल में कई गहरी चालें नगर निगम के इतिहास में नजीर बन गयी हैं. 2002 में निगम नेताओं को एक वर्ष के लिए मेयर व उप मेयर की कुरसी मिली थी, मगर लोगों ने नियमों का एेसा पेच फंसाया कि कुरसी पर पांच वर्ष के लिए कब्जा बन गया. यहां 2002 के मेयर कृष्ण कुमारी यादव व उप मेयर संतोष मेहता के समय की बात हो रही है.
उस समय निगम में एक वर्ष के लिए इन पदों का चुनाव किया जाता था, वहीं पार्षद पांच वर्ष के लिए बनते थे. पूर्व उप महापौर संतोष मेहता बताते हैं कि 1952 से लेकर 2002 तक मेयर व उप मेयर एक वर्ष के लिए होते थे. वर्ष 2002 में भी चुनाव एक वर्ष के लिए किया गया था, लेकिन इस समय बिहार नगरपालिका अधिनियम बदल चुके थे, मगर उस का बाॅयलाज नहीं आया था, इस कारण एक वर्ष बाद यानी 2003 में कुरसी छोड़नी थी, लेकिन अब लोग कोर्ट चले गये.
हाइकोर्ट में केस किया, फिर नये नियम के आधार पर पांच वर्ष के लिए कुरसी मिल गयी
बतौर संतोष मेहता जब हम लोगों का कार्यकाल 2003 के मार्च में पूरा होने वाला था, तो विपक्ष में पार्षदों ने नगर आयुक्त का चुनाव नये सिरे से कराने के लिए पत्र लिखा. हमारा तर्क था कि जब पार्षद का चुनाव पांच वर्ष के लिए होता है, तो मेयर व उप मेयर का चुनाव एक वर्ष के लिए क्यों किया जाये. इस आधार पर हाइकोर्ट में केस कर दिया. कोर्ट ने इस तर्क के आधार पर नये चुनाव पर रोक लगा दी और हम लोगों को पद नहीं छोड़ना पड़ा और फिर लगातार 2007 तक मेयर व उप मेयर बने रहे.
कोई भी अविश्वास प्रस्ताव नहीं आने के कारण वे निर्बाध रूप से सरकार चलाते रहे.चूंकि कोर्ट के आदेश से पांच वर्ष तक चुनाव नहीं होना थे और बिहार नगरपालिका अधिनियम 2007 की स्थिति भी स्पष्ट नहीं थी. उस समय यह तय नहीं हुआ था कि पांच वर्ष में कितने वर्ष बाद मेयर व उपमेयर पर अविश्वास प्रस्ताव आयेगा और बोर्ड की बैठक वर्ष में कितनी बार होगी. इसलिए 2002 से 2007 के बीच मेयर व उपमेयर पर कोई अविश्वास प्रस्ताव नहीं आया और दोनों निर्बाध रूप से नगर सरकार चलाते रहे.

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