पटना : कहते हैं कि सियासत में परिस्थितियां हर पल बदलती हैं. राजनीतिक रसूख एक जगह टिकता नहीं और गाहे-बगाहे किसी भी पार्टी और किसी भी नेता को हासिये पर धकेल देता है. बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद का कद काफी बड़ा है. बिहार विधानसभा चुनाव 2015 के बाद इस कद में थोड़ा इजाफा ही हुआ. चारा घोटाले के झंझावातों को झेलते हुए लालू की सियासी गाड़ी आज भी सरपट दौड़ रही है. सरपट दौड़ती इस सियासी गाड़ी को पहला ब्रेक तब लगा जब चारा घोटाले में आठ मई को सुप्रीम कोर्ट ने लालू प्रसाद को आपराधिक साजिश रचने के लिए मुकदमा चलाने का आदेश दिया. इससे पूर्व कथित बेनामी संपत्ति के आरोपों को झेल रहे लालू मंगलवार को चारों तरफ से घिरे दिखे, जब यह खबर आयी कि उनसे जुड़े ठिकानों पर आयकर विभाग की छापेमारी चल रही है. सवाल, उठना लाजमी है कि ऐसी खबर आने के बाद राजनीतिक कयासबाजी का दौर शुरू हो गया और बिहार में चल रही महागठबंधन की सरकार को लेकर तमाम तरह की अटकलबाजी शुरू हो गयी.
तसवीर के हैं कई पहलू
सही मायने में देखा जाये, तो मंगलवार को कांग्रेसी नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम और उनके बेटे कार्ती चिदंबरम के साथ बिहार में महागठबंधन के प्रमुख घटक दल आरजेडी के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के ठिकानों पर आयकर और सीबीआई के छापे की कार्रवाई को राष्ट्रपति चुनाव में हो रही विपक्ष की गोलबंदी का भी असर है. राजनीतिक विश्लेषकों की मानें, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के तीन साल के कार्यकाल पूरे करने को लेकर मंगलवार को कांग्रेस की ओर से प्रेसवार्ता करके सरकार की नाकामियों पर प्रहार करना था. दूसरे, जुलाई में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव को लेकर यूपीए या विपक्ष के घटक दलों की गोलबंदी भी शुरू हो गयी है. उनका कहना है कि राष्ट्रपति चुनाव में यूपीए की ओर से साझा उम्मीदवार उतारने को लेकर की जारी विपक्ष की इस गोलबंदी पर प्रहार करने के लिए भी सरकार की ओर से छापेमारी की कार्रवाई को अंजाम दिया गया है.
क्या संघ खेल रहा है खेल ?
वहीं, भाजपा और संघ से ताल्लुक रखने वाले अहम सूत्रों का यह भी कहना है कि दरअसल, सरकार की ओर से भ्रष्टाचार को लेकर विपक्षी दलों के नेताओं के ठिकानों पर आयकर और सीबीआई के छापे की कार्रवाई इसलिए भी की जा रही है, क्योंकि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भाजपा यह चाहते हैं कि जुलाई में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में उनकी ओर से जो उम्मीदवार उतारा जाये, उसे निर्विरोध चुन लिया जाये. सूत्रों का कहना है कि राष्ट्रपति चुनाव को निर्विरोध करने के उद्देश्य से ही भाजपा और संघ की ओर से राजनीति के ध्रुवीकरण किया जा रहा है.
लालू ने नहीं झुकने का दिया संदेश
छापेमारी की खबर के बीच लालू द्वारा एक के बाद एक किये गये ट्वीट ने तहलका मचा दिया. लालू ने ट्वीट कर कहा कि बीजेपी को नए एलायंस मुबारक हों. लालू प्रसाद झुकने और डरने वाला नहीं है. जब तक आखिरी सांस है फासीवादी ताकतों के खिलाफ लडता रहूंगा. उन्होंने अपने अगले ट्वीट में कहा कि बीजेपी में हिम्मत नहीं कि लालू की आवाज को दबा सके. लालू की आवाज दबाएंगे तो देशभर में करोडों लालू खड़े हो जाएंगे. मैं गीदड भभकी से डरने वाला नहीं हूं. लालू ने अपने ठिकानों पर आयकर की छापेमारी की खबरें मीडिया में आने पर कहा कि पढ़े लिखे अनपढ़ों यह तो बताओ कि कौन से 22 ठिकानों पर छापेमारी हुई. बीजेपी समर्थित मीडिया और उसके सहयोगी घटकों, सरकारी तोतों, से लालू नहीं डरता. उन्होंने अपने ट्वीट में आगे कहा कि ज्यादा लार मत टपकाओ. गटबंधन अटूट है. अभी तो समान विचारधारा के और दलों को जोडना है. मैं बीजेपी के सरकारी तंत्र और सरकारी सहयोगियों से नहीं डरता. लालू ने कहा कि आरएसएस और भाजपा को लालू के नाम से कंपकंपी छूटती है. इनको पता है कि लालू इनके झूठ, लूट और जुमले के कारोबार को ध्वस्त कर रहा है तो दबाव बनाओ.
लालू के समर्थकों में एकजुटता
लालू के इस बयान से उनके आगे की रणनीति साफ पता चलती है. लालू ने साफ कहा कि अहंकारी और फासीवादी भाजपा नेताओं से सावधान. लालू को धमकी देने से पहले आईने में अपना चेहरा देखें. बिहार में लाखों लालू हैं. लालू प्रसाद को पता है कि वह जिस किस्म की राजनीति करते हैं और उनके साथ समर्थकों का जो तबका है, वह इस तरह की कार्रवाई को बदले की कार्रवाई के रूप में लेगा. लालू को पता है कि उनके समर्थक उनकी बात पर अगाध विश्वास करते हैं. उनका यही विश्वास उन्हें राजनीति में आज भी माहिर खिलाड़ी बनाये रखे हुए है. लालू ने अपने बयान से समर्थकों के साथ केंद्र सरकार को भी कड़ा संदेश दिया, जिसमें साफ दिखता है कि उनके खिलाफ जो भी कार्रवाई हो रही है, वह राजनीतिक दुर्भावना का परिणाम है. अब लालू अपने समर्थकों को एकमत रखने की रणनीति के साथ केंद्र पर हमलावर होने की रणनीति पर काम करेंगे, यह पूरी तरह स्पष्ट है.
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