प्रभात खबर संगोष्ठी : जात, धर्म, रिश्तेदारी परे रख कर चुनें अपना पार्षद
– यारपुर स्थित अक्षत सेवा सदन में हुई प्रभात संगोष्ठी– डीएम पटना व नालंदा खुला विवि के कुलपति प्रो. आरके सिन्हा सहित वक्ताओं ने रखे अपने विचार पटना (संवाददाता) : प्रभात खबर द्वारा चलाये जा रहे ‘ऐसी बने नगर सरकार, शहर को कर दे शानदार’ अभियान की कड़ी में शुक्रवार को प्रभात संगोष्ठी का आयोजन […]
– यारपुर स्थित अक्षत सेवा सदन में हुई प्रभात संगोष्ठी
– डीएम पटना व नालंदा खुला विवि के कुलपति प्रो. आरके सिन्हा सहित वक्ताओं ने रखे अपने विचार
पटना (संवाददाता) : प्रभात खबर द्वारा चलाये जा रहे ‘ऐसी बने नगर सरकार, शहर को कर दे शानदार’ अभियान की कड़ी में शुक्रवार को प्रभात संगोष्ठी का आयोजन किया गया. यारपुर स्थित अक्षत सेवा सदन में आयोजित इस संगोष्ठी में पटना डीएम संजय कुमार अग्रवाल, नालंदा खुला विवि के कुलपति पद्मश्री प्रो आरके सिन्हा, मशहूर कवि आलोक धन्वा, लेखिका सह शिक्षिका ममता मेहरोत्रा, लायंस क्लब ऑफ पाटलिपुत्रा की लॉयन वीणा गुप्ता, बिहार पुलिस एसोसिएशन के अध्यक्ष मृत्युंजय कुमार सिंह, आर्थोपेडिक विशेषज्ञ डॉ अमूल्य कुमार सिंह व महावीर कैंसर संस्थान की सहायक निदेशक डॉ मनीषा सिंह सहित कई लोगों ने अपने विचार रखे.
स्थानीय व आम लोगों की बड़ी उपस्थित में पटना डीएम संजय कुमार अग्रवाल ने स्वच्छता का महत्व समझाते हुए बताया कि किस तरह हम गंदगी को लेकर अभ्यस्त हो चुके हैं और इससे बाहर निकलने का प्रयत्न ही नहीं करना चाहते. उन्होंने सफाई के लिए बड़े शहरों की तर्ज पर सिविल सोसाइटी बनाने की सलाह दी. डीएम ने कहा कि पार्षद के लिए सही व्यक्ति का चुनाव जरूरी है और इसके लिए मतदान के दिन जात, धर्म व रिश्तेदारी को परे रखना होगा.
वहीं, पद्मश्री प्रो आरके सिन्हा ने दूसरे देशों के बड़े शहरों में सफाई व्यवस्था का हवाला देते हुए बताया कि किस तरह लोगों की लापरवाही के चलते हमारे शहर की हवा-पानी प्रदूषित हो गयी है. उन्होंने कहा कि सामान्य गंदगी ही नहीं, बल्कि मेडिकल वेस्ट के मामले में भी हम बहुत आगे हैं, जिसके दुष्परिणाम भविष्य में देखने को मिल सकते हैं. उन्होंने कहा कि मुहल्लों की स्थिति नारकीय हो गयी है. लेकिन अगर हर व्यक्ति ठान ले तो स्थिति बदल भी सकती है. लेकिन इसके लिए शुरुआत खुद से करनी होगी, जैसा कि गांधीजी ने किया था. प्रभात खबर के स्थानीय संपादक रंजन राजन ने विषय प्रवेश कराते हुए संगोष्ठी का महत्व बताया.
शहर में गंदगी, जिम्मेदार कौन : निगम, पार्षद या हम
हमारे वार्ड पार्षद यदि बेहतर काम नहीं कर रहे हैं तो जिम्मेदार कौन है. निकम्मे जन प्रतिनिधि, जो चुनाव जीतने के बाद दुबारा मुंह दिखाने को नहीं आये या हम जो चुनाव के समय जाति, धर्म और नाते-रिश्तों की डोर में ऐसे उलझ कर रह कर सही उम्मीदवार का चयन ही नहीं कर पाये. शहर गंदा है तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है यहां के नागरिक जो शहर को साफ रखने में जरा भी सहयोग नहीं करते या फिर नगर निगम जिस पर शहर को साफ रखने की जिम्मेदारी है. नगर निगम चुनाव के समय आयोजित प्रभात संगोष्ठी के दौरान ऐसे कई ज्वलंत प्रश्न सामने आएं आैर उपस्थित आम और खास लोगों ने उनका जवाब ढूंढ़ने का प्रयास किया.
संगोष्ठी में निकल कर आये पांच बड़े मुद्दे :
सफाई की कमी- सड़कों पर सफाई की बुरी स्थिति एक बड़े मुद्दे के रुप में सामने आयी. प्रो. आरके सिन्हा समेत कई वक्ताओं ने इसके लिए नगर निगम की लचर व्यवस्था को कोसा.
सीवरेज व कचरा निष्पादन – सीवरेज को बिना निष्पादन ही गंगा में गिराने व कचरा निष्पादन की समुचित व्यवस्था की कमी के कारण बाइपास किनारे कचरा डंप करने का मुद्दा भी उठा.
बदहाल कूड़ा प्वाइंट – कूड़ा प्वाइंट की सही सफाई नहीं होने और डस्टबिन के इर्द गिर्द अधिक गंदगी फैली होने के कारण उनके इस्तेमाल में आनेवाली कठिनाइयां भी सामने आयी.
पॉलीथिन व पर्यावरण- बैग व कागज के पैकेट की जगह नॉन बायोडिग्रेडेबल पॉलीथिन का चलन , उसके कारण सीवरेज जाम और पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव की भी कई बार चर्चा हुई.
स्वप्रयास की जरूरत – नगर को साफ रखने में नागरिकों की महत्वपूर्ण भूमिका और उसमें लोगों के द्वारा की जानेवाली कोताही की चर्चा भी कमोबेश हर वक्ता ने की चाहे वह आम हो या खास.
इनका रहा सहयोग :
प्रभात संगोष्ठी को सफल बनाने में स्वच्छ यारपुर, निर्मल यारपुर संस्था, लायंस क्लब और अक्षत सेवा सदन का महत्वपूर्ण योगदान रहा.
आप भी जुड़े :
बेहतर नगर सरकार चुनने के लिए प्रभात खबर द्वारा चलाये जा रहे अभियान में आम लोग भी जुड़ सकते हैं. अगर आपके पास इससे संबंधित कोई भी सुझाव, समस्या या शिकायत है तो आप हमें वाट्सअप नंबर (7979700490) व इ-मेल आइडी (sumit.kumar@prabhatkhabar.in) पर जानकारी दे सकते हैं. बेहतर सुझाव व शिकायत प्रभात खबर के अगले अंकों में प्रकाशित किये जायेंगे.
गलत आदमी चुना गया तो पांच साल तक झेलना पड़ेगा : संजय कुमार अग्रवाल, डीएम, पटना
गंदगी हमारे जीवन का अंग बन गया है. इसे हम महसूस ही नहीं करते हैं.कुछ दिन पहले मैंने एक नया ऑफिस बनवाया. बड़े ही मन से उसको बनवाया गया था और हरेक जरूरी सुविधा का ध्यान रखा गया था. स्वच्छता को बनाये रखने के लिए नया पुश ओपेन डस्टबिन भी मैंने वहां रखवाया था. परसो जब मैं वहां दोबारा गया तो गंदगी का अंबार लगा हुआ था. डस्टबिन के आसपास इतनी गंदगी थी कि उसे पुश करने में भी व्यक्ति को परहेज हो. मैंने वहां के अधिकारी से पूछा कि ये सब क्या है तो वो समझ ही नहीं पाये. उल्टा पूछा कि क्या सर, सब तो ठीक है.
बाद में जब मैंने दार्शनिक बन कर मुद्दे को समझने का प्रयास किया तो सामने आया कि हमलोग गंदगी को इतना आत्मसात कर चुके हैं कि यह हमें दीखती ही नहीं है. परफ्यूम के गंध की तरह कचरे के बदबू के प्रति भी हमारी नाक अभ्यस्त हो चुकी है. गांधी जी के बुरा मत देखो ,बुरा मत कहो और बुरा मत सुनों के तर्ज पर हम न तो किसी के इधर उधर कचरा फेंकने पर ध्यान देते हैं और न ही उनसे इस संदर्भ में कुछ पूछते या उन्हें मना करते हैं. जब तक हमारे नाक को गंदगी के बदबू की चुभन महसूस नहीं होगी, कुछ नहीं होगा.
दिल्ली जैसे बड़े शहरों में जैसी सिविल सोसायटी है, वैसी हमारे यहां नहीं है. मुझसे हर दिन 100-50 लोग मिलते हैं. लेकिन हर व्यक्ति अपनी ही बात करता है, समाज की बात कोई नहीं करता. यहां तक कि नये चुने जानेवाले पार्षद को भी जल्द ही एहसास हो जाता है कि पब्लिक को सफाई और स्वच्छता जैसी बातों से अधिक मतलब नहीं है. लिहाजा उसपर से भी दबाव हट जाता है. आज सरकार के पास रिसोर्स है, लेकिन वही वार्ड पार्षद इसका इस्तेमाल कर पाता है, जो एक्टिव है. इसलिए सही व्यक्ति का चुनाव जरूरी है. जब चुनाव होता है तो हमलोग जात, धर्म और रिश्तेदारी देखने लगते हैं जबकि ऐसे मौको पर केवल आदमी को देखना चाहिए. व्यक्ति को समझना चाहिए कि जिनसे रिश्तेदारी है, आगे भी रहेगी पर गलत आदमी चुना गया तो पांच साल तक झेलना पड़ेगा.
शुरुआत खुद से करनी होगी जैसा गांधी ने किया : प्रो आरके सिन्हा, कुलपति, नालंदा खुला विवि
पिछले 47 वर्षों से पटना में रह रहा हूं लेकिन पहले पटना इतनी गंदी नहीं थी, जितनी अभी है. हमलोग जब विदेश जाते हैं तो नियम नहीं तोड़ते. मैनचेस्टर में खांसी आ जाये तो समझ में नहीं आता कि कहां थूके. यूएस में भी गंदगी फैलाने पर हजार डॉलर का फाइन है. लेकिन जब अपने यहां होते हैं तो परहेज नहीं होता. चीन में मैंने देखा कि बुजुर्ग डॉक्टर , इंजीनियर और प्रोफेसर सुबह चार बजे से शहर की सफाई में लगे हुए थे जबकि अपने यहां दस तल्ले पर रहनेवाले लोग भी झाड़ू बहार कर उसे नीचे सड़क पर फेंकने से परहेज नहीं करते, भले ही वह आने-जाने वाले के सिर पर पड़ जाये. सामान्य गंदगी ही नहीं बल्कि मेडिकल वेस्ट के मामले में भी हम सबसे आगे हैं.
मैंने यहां के स्लम और सीवरेज पर अध्ययन किया तो पाया कि उसमें बैक्टिरिया रोधी दवाओं व अन्य औषधीय रासायनों की उपस्थिति सबसे अधिक थी. गंगा में पटना से डायमंड हार्बर तक किये गये अनुसंधान से पता चलता है कि यहां पाये जानेवाले कई बैक्टिरिया में एंटीबायोटिक रेसिस्टेंस बहुत अधिक है. मल्टी ड्रग रेसिस्टेंट बैक्टिरिया से उत्पन्न बीमारियों से पीड़ित का बचना भी मुश्किल होता है क्योंकि उन पर एंटी बायोटिक दवाओं का असर नहीं होता है. डीडीटी का प्रचलन देश के कई अन्य राज्यों में बंद हो गया है लेकिन हमारे यहां अभी भी जारी है जो कैंसर की वजह बन रहा है. श्रीलंका में नियम है कि जब तक व्यक्ति चार पेड़ नहीं लगा ले, घर बनाने की इजाजत नहीं मिलती है.
इसके विपरीत, हमारे यहां शहर में जिनके पास तीन-चार कट्टा जमीन है, वे घास-फूल लगाने की बजाए सीमेंट लगाकर कैंपस को पक्का कर देते हैं. इससे बरसात का जल नीचे तक नहीं पहुंच पाता और भूमिगत जल रिचार्ज नहीं हो पा रहा है. हमारे यहां कि प्रशासनिक व्यवस्था लचर है. पिछले ढेड़-दो महीना से अखबारों में जैसी रिपोर्ट प्रकाशित हुई है, उससे पता चलता है कि शहर के हर मुहल्ले की स्थिति नारकीय है. हर व्यक्ति ठान ले तो स्थिति ठीक हो सकता है लेकिन इसकी शुरूआत खुद से करनी होगी जैसा गांधी ने किया, अन्यथा कोई फर्क नहीं पड़ेगा.
करें बेहतर से बेहतर उम्मीदवार की तलाश : मृत्युंजय कुमार सिंह, अध्यक्ष, बिहार पुलिस एसोसिएशन
नगर निगम का चुनाव सामने हैं इसलिए यह प्रश्न महत्वपूर्ण बन गया है कि हमारे जनप्रतिनिधि कैसे होने चाहिए. इसका जवाब इससे भी जुड़ा है कि हमारे गांव, गली, मुहल्लों की स्थिति कैसी है. हम अपने मत का सोच समझकर इस्तेमाल करें. ऐसे जनप्रतिनिधि चुनें जो हमारे गली-मुहल्लों को स्वच्छ रखें. जब हम अपने बुद्धि -विवेक से मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे, तभी स्थिति बदलेगी. पिछले दिनों भारत सरकार की ओर से जारी किये गये स्वच्छता रेटिंग में पटना का स्थान काफी नीचे आया है.
मेरा मानना है कि इन सब तरह के रेटिंग से कुछ हासिल नहीं होगा. जब तक हम अपने आपको नहीं बदलेंगे और बेहतर से बेहतर उम्मीदवार की तलाश नहीं करेंगे, कुछ नहीं होगा. कई उम्मीदवार एक बार वोट लेने के बाद दुबारा दर्शन भी नहीं देते. ऐसे उम्मीदवारों से बचना चाहिए और ऐसे उम्मीदवारों का चयन होना चाहिए, जहां तक जरूरत पड़ने पर व्यक्ति पहुंच सके और अपनी बात रख सके.
कैंसर पीड़ित बच्चों को स्वच्छता का महत्व बताते : डॉ मनीषा सिंह, महावीर कैंसर संस्थान
हर व्यक्ति की स्वच्छता को बनाये रखने में अपनी एक खास भूमिका होती है ओर उसे अपने तरह से योगदान देने का प्रयास करना चाहिए. अधिक व्यस्तता के कारण हमलोग स्वच्छता अभियान में सीधे तौर पर भाग नहीं ले पाते हैं और न ही उस पर अधिक समय दे पाते हैं लेकिन लोगों को स्वच्छता के महत्व के बारे में शिक्षित करने का प्रयास करते हैं. हमारे हाॅस्पिटल महावीर कैंसर संस्थान में भी बच्चों का पेडियाट्रिक वार्ड है. वहां 60-70 कैंसर पीड़ित बच्चे हर समय होते हैं. इनमें छह महीने से पांच-सात साल तक के बच्चे होते हैं. उनको खुद नहीं मालूम होता है कि वे कैसे रहे. उन्हें स्वच्छता का महत्व बताने के लिए हमने हाॅस्पिटल में वन रूम स्कूल खोला है. वहां एक शिक्षक बच्चों को सफाई पूर्वक रहने का तरीका बताते हैं और ऐसा नहीं करने पर होने वाले नुकसान की जानकारी भी देते हैं.
सड़कों के साथ दिमाग भी हो साफ : आलोक धन्वा, साहित्यकार
गांधी ने स्वाधीनता का अभियान चलाया, जिसमें स्वच्छता भी शामिल था. उनके स्वच्छता का सिद्धांत नरेंद्र मोदी ने ले लिया, लेकिन वह आंशिक है. हमारे सामने सबसे महत्वपूर्ण है कि समाज में भाईचारा हो. सड़कें तो जरूर साफ की जायें पर उससे भी जरूरी है कि दिमाग साफ हो. गंगा की अविरलता पर कुछ दिनों पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चिंता प्रकट की. मैं उनसे सहमत हूं कि गंगा की अविरलता को फरक्का का गाद बाधित कर रहा है. यह देश संतों और त्यागियों का देश है.
यारपुर की स्वच्छता के लिए जिस तरह से यहां के लोग प्रयास कर रहे हैं, यह सराहनीय है. बगीचे व पेड़ तेजी से नष्ट हो रहे हैं. दीघा में कई बगीचे थे. अब केवल दो ही बचे हैं, बाकी नष्ट हो गये. पीपल का पौधा सबसे अधिक आॅक्सीजन देता है पर वह भी नष्ट हो रहा है. जितना संभव हो आप पेड़ लगायें. अपनी आदतों को मानवीय बनाये और प्रयास करें कि एक स्वस्थ दिमाग, स्वस्थ नागरिकता और प्रकृति से भरा पूरा परिवार हो.
समय आ गया है सही उम्मीदवार के चयन का : लॉयन, वीणा गुप्ता
छठ में पटना की सफाई के बारे में और पॉलिथिन की समस्या के बारे में पहले के वक्ताओं ने जो कहा, वह नि:सन्देह गौर करने लायक है. मैं पश्चिम बंगाल गयी थी. वहां कहीं भी मुझे पॉलिथिन नहीं मिला. मैंने चेक करने के लिए जब पॉलिथीन मांगी तो दुकानदारों ने यह कह कर इनकार कर दिया कि उन्हें पेनाल्टी लग जायेगा. हमारे लायंस क्लब इंटरनेशनल की तरफ से भी सफाई अभियान चलाया जा रहा है.
पॉलीथिन के विरोध का अभियान भी हमने खूब जोरशोर से शुरू किया था, लेकिन हमें सहयोग नहीं मिला. अब सही समय आ गया है. नगर निगम का चुनाव सामने है. हम इसमें सही उम्मीदवार आ चयन करेंगे तो वह सही ढंग से काम करेगा और स्वच्छता अभियान को बेहतर मुकाम तक पहुंचाया जा सकेगा. मैं करूं तुम करो कुछ हो नहीं सकता, मिल कर हम करे तो क्या हो नहीं सकता.
बच्चों में आदत डालें कि वे गंदगी फैलाने से बचें : ममता मेहरोत्रा, शिक्षिका सह लेखिका
स्वच्छता पर यह जो मुहिम शुरू की गयी है, बहुत बेहतर है. बिहार और यूपी में आम चलन है कि लोग सड़क पर थूक देते हैं. कई लोगों को तो मैंने बसों और ट्रेनों में भी अपनी सीट के आसपास थूकते हुए देखा है. इस पर रोक लगाने की जरूरत है. जहां तक संभव हो, हम अपने छोटे छोटे बच्चों में यह आदत डालें कि वे इनसे बचे. जिस तरह का अभियान प्रभात खबर व स्थानीय लोगों के सहयोग से यहां चल रहा है, वैसे अभियान और चलाये जाने चाहिए. इसके लिए अन्य मीडिया हाउस को भी आगे आना चाहिए और स्कूलों में बच्चों के ऐसे कार्यक्रम आयोजित किये जाने चाहिए. नयी पीढ़ी को यदि हम इसके बारे में ठीक से शिक्षित कर सके तो आगे आने वाले समय में महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिलेंगे और गंदगी की समस्या बहुत हद तक दूर हो जायेगी.
लोग आगे आयेंगे तो सरकार पर भी दबाव बनेगा : डॉ अमूल्य कुमार सिंह, आर्थोपेडिक चिकित्सक
स्वच्छता और सफाई एक बड़ा काम है, जिसमें बहुत अधिक श्रम और संसाधन की जरूरत है. यह केवल सरकारी प्रयास से नहीं हो सकता बल्कि इसके लिए लोगों के भी सहयोग की पूरी जरूरत है. शहर को स्वच्छ रखने के लिए हमें अपनी सोच और जीवन शैली को बदलना होगा. जब तक हम अपने घर के सामने की सड़क को भी अपना नहीं मानेंगे और घर की तरह ही उसको साफ-सुथरा रखने पर भी ध्यान नहीं देंगे, तब तक स्थिति में कोई बड़ा और मूलभूत बदलाव संभव नहीं है. जब लोग खुद आगे आयेंगे और सफाई के लिए आपस में गोलबंद होने लगेंगे तो नगर निगम और वहां के पार्षदों और अधिकारियों पर भी काम को बेहतर ढंग से संपन्न करने का दबाव होगा. सरकार भी उनकी मदद के लिए सामने आ जायेगी और आगे का रास्ता खुलता ही चला जायेगा.