आयुर्वेद पढ़ रहे 40 में 10 छात्र ही पहुंचते हैं फाइनल इयर में

पटना : राज्य में देसी चिकित्सा की स्थिति नाजुक है. आयुर्वेद में वह संजीवनी नहीं बची जो वैद्यों की संख्या को बढ़ा सके. इसकी बानगी है राज्य के एकमात्र मान्यता प्राप्त राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज, पटना. यहां पर पढ़नेवाले एक-चौथाई विद्यार्थी फाइनल इयर तक आते-आते कॉलेज छोड़ देते हैं. हर साल यहां 40 विद्यार्थियों का नामांकन […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 21, 2017 7:27 AM
पटना : राज्य में देसी चिकित्सा की स्थिति नाजुक है. आयुर्वेद में वह संजीवनी नहीं बची जो वैद्यों की संख्या को बढ़ा सके. इसकी बानगी है राज्य के एकमात्र मान्यता प्राप्त राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज, पटना. यहां पर पढ़नेवाले एक-चौथाई विद्यार्थी फाइनल इयर तक आते-आते कॉलेज छोड़ देते हैं.
हर साल यहां 40 विद्यार्थियों का नामांकन पहले सत्र में होता. अंतिम सत्र तक आते-आते औसतन 10 या उससे भी कम विद्यार्थी रहते हैं. एक-चौथाई विद्यार्थी अपना कोर्स पूरा करते हैं. 2015-16 के शैक्षणिक सत्र में 40 विद्यार्थियों ने नामांकन लिया था.
महज दो सालों में इसकी संख्या घटकर 33 रह गयी है. कॉलेज को चिंता है कि नीट परीक्षा के बाद इसकी संख्या और कम हो जायेगी. आयुर्वेदिक कॉलेज को संचालित करने के लिए हर माह एक-डेढ़ करोड़ सरकार द्वारा वेतन मद पर खर्च किया जा रहा है. राज्य में आयुर्वेदिक चिकित्सा शिक्षा की हालत निरंतर खराब होता जा रही है. वर्ष 2004 से यहां एक-एक कर आयुर्वेदिक कॉलेज बंद होते चले गये. राज्य में अब एकमात्र मान्यता प्राप्त आयुर्वेदिक कॉलेज है.
सीसीआइएम द्वारा यहां पर भी सशर्त नामांकन की अनुमति दी जाती है. स्थिति यह है कि वर्ष 2013-14 में कॉलेज में नामांकन पर ही रोक लगा दी गयी थी. राज्य में बेगूसराय, आरा, दरभंगा में सरकारी आयुर्वेदिक कॉलेज थे, जो अब बंद पड़े हैं. आयुष मेडिकल एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष डॉ मधुरेंदु पांडेय बताते हैं कि सरकार द्वारा आयुर्वेद चिकित्सकों की नियमित बहाली 15 वर्षों से नहीं हुई है.
इस बीच सरकार द्वारा थोड़ी संख्या में आयुर्वेदिक डॉक्टरों की अनुबंध पर बहाली की गयी. उनका मानदेय इतना कम है कि किसी को इस विधा कि तरफ आकर्षण भी नहीं हो रहा है. दूसरी बात है कि अनुबंध पर नियुक्ति चिकित्सकों की सेवा सिविल सर्जनों द्वारा मनमाने तरीके से ली जाती है. आयुर्वेदिक मेडिकल ऑफिसर के कुल 338 पद स्वीकृत है जिसमें मात्र 165 कार्यरत हैं.
इसी तरह से आयुर्वेदिक कॉलेजों में शैक्षणिक पद 199 स्वीकृत हैं जिसमें 87 लोग कार्यरत है जबिक 171 पद रिक्त हैं.
कैसे कम होते जा रहे हैं विद्यार्थी
राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज,पटना में हर वर्ष स्नातक कोर्स में हर शैक्षणिक सत्र में 40 विद्यार्थियों का नामांकन होता है. पर किसी साल भी इतनी संख्या में छात्र कॉलेज के अंतिम वर्ष तक नहीं पहुंच पाते. हर साल नीट परीक्षा के बाद आयुर्वेद कॉलेज के चार-छह छात्र आयुर्वेद की शिक्षा छोड़कर एमबीबीएस में चले जाते हैं. राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज में हर साल नामांकन लेनेवाले और बीच में ही पढ़ाई छोड़कर जानेवाले विद्यार्थियों की संख्या चौकानेवाली है. वर्ष 2006-07 में कॉलेज में कुल 46 विद्यार्थियों ने नामांकन लिया था.
इसमें फाइनल इयर तक मात्र सात विद्यार्थी ही रह गये और परीक्षा देकर पास किये. इसी तरह से वर्ष 2007-08 में कुल 31 विद्यार्थियों ने नामांकन लिया जिसमें फाइनल इयर तक मात्र छह विद्यार्थी परीक्षा में शामिल हो सके. वर्ष 2008-09 में बेगूसराय आयुर्वेदिक कॉलेज बंद होने के बाद 65 विद्यार्थियों ने नामांकन लिया जिसमें मात्र 14 विद्यार्थी ही परीक्षा में शामिल हो सके.
वर्ष 2010-11 में 40 विद्यार्थियों ने नामांकन लिया जिसमें 17 विद्यार्थी परीक्षा में शामिल हुए. 2012-13 में इस कॉलेज में 33 विद्यार्थियों ने नामांकन लिया जिसमें सात विद्यार्थी परीक्षा में शामिल हैं. वर्ष 2014-15 में 39 विद्यार्थियों ने नामांकन लिया जिसमें 19 विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं.
वर्ष 2015-16 में नामांकन लेने वाले 40 विद्यार्थियों में अभी तक 33 ही शिक्षा ले रहे हैं. आयुर्वेदिक कॉलेज के प्राचार्य डॉ दिनेश्वर प्रसाद बताते हैं कि राज्य का एकलौते संस्थान में हर साल विद्यार्थियों की कम होती संख्या चिंता का विषय है. उन्होंने बताया कि हर परीक्षा के बाद यहां विद्यार्थियों की संख्या कम हो जाती है.
वर्ष – नामांकन – अंतिम वर्ष में छात्र
2006-07 -46 – 07
2007-08- 31- 06
2008-09- 65- 14
2010-11- 40- 17
2011-12- 33- 11
2012-13- 40- 07
2013-14- शून्य
2014-15- 39- 19 पढ़ रहे हैं2015-16- 40- 33 पढ़ रहे हैं

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