बिहार के पैसे से विकसित हो रहे हैं दूसरे राज्य
राज्य के बैंकों का नहीं बढ़ रहा सीडी रेशियो पटना : बिहार के पैसे से दूसरे राज्य विकसित हो रहे हैं. वजह है कि यहां के बैंकों में जितने रुपये जमा किये जाते हैं, लेकिन इन रुपयों से आम लोगों की ऋण के रूप में आर्थिक सहायता या जन कल्याणकारी योजनाओं में ये खर्च नहीं […]
राज्य के बैंकों का नहीं बढ़ रहा सीडी रेशियो
पटना : बिहार के पैसे से दूसरे राज्य विकसित हो रहे हैं. वजह है कि यहां के बैंकों में जितने रुपये जमा किये जाते हैं, लेकिन इन रुपयों से आम लोगों की ऋण के रूप में आर्थिक सहायता या जन कल्याणकारी योजनाओं में ये खर्च नहीं हो पाते हैं. वित्तीय वर्ष 2016-17 के दौरान राज्य के बैंकों का सीडी रेशियो 43.94 प्रतिशत है.
हालांकि पिछले वित्तीय वर्ष 2015-16 के दौरान 44.99 प्रतिशत था. जबकि, सीडी रेशियो का राष्ट्रीय औसत 78 प्रतिशत है. राज्य का औसत करीब इससे आधा है. परंतु नोटबंदी के कारण बैंकों में सामान्य से कई गुना ज्यादा पैसे जमा होने के कारण इस बार थोड़ी गिरावट दर्ज की गयी है.
हाल में हुई एसएलबीसी (राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति) की बैठक में भी सीएम ने इस समस्या को गंभीरता से उठाते हुए बैंकों को स्थिति बदलने का निर्देश दिया था.
विकसित राज्यों का सीडी रेशियो 150 फीसदी तक : बिहार के बैंकों में जमा हुए रुपये यहां तो खर्च नहीं हो पा रहे हैं, लेकिन दूसरे राज्यों खासकर विकसित राज्यों में बड़े स्तर पर खर्च हो रहा है.
इसी का नतीजा है कि विकसित राज्यों मसलन महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, गुजरात, आंध्र प्रदेश, हरियाणा समेत अन्य राज्यों के बैंकों का सीडी रेशियो 100 प्रतिशत से भी ज्यादा है. महाराष्ट्र, तमिलनाडु जैसे कुछ राज्यों में तो यह 150 प्रतिशत से भी ज्यादा है. इन राज्यों में जमा होने से ज्यादा रुपये के लोन बांटे जा रहे हैं. इससे यह स्पष्ट होता है कि बिहार जैसे गरीब राज्यों में जो लोग पैसे जमा करते हैं, उनका उपयोग बैंक वाले विकसित राज्यों में कर रहे हैं. तभी सीडी रेशियो में दो गुना से ज्यादा का अंतर है. राज्य में भोजपुर, सारण, सीवान, गोपालगंज और मुंगेर ऐसे पांच जिले हैं, जिसका सीडी रेशियो 30 प्रतिशत से भी कम है. इन जिलों में मौजूद बैंक तो अपने यहां जमा होने वाले कुल रुपये में 30 फीसदी से भी कम ऋण के रूप में बांटते हैं.राज्य में मौजूद बैंक ऋण देने में सबसे ज्यादा कोताही बरतते हैं, जिसकी वजह से रुपये बैंकों में पड़े रहते हैं.
पिछले 12 साल में बढ़ा महज 11 फीसदी सीडी रेशियो
राज्य में बैंकों की स्थिति का अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि पिछले 12 सालों में महज 11 फीसदी सीडी रेशियो में बढ़ोतरी हुई है. वित्तीय वर्ष 2005-06 में यह 32.10 प्रतिशत था, जो 2016-17 में बढ़कर 43.94 पर पहुंचा. वित्तीय वर्ष 2015-16 में इसमें अब तक की सबसे बड़ी बढ़ोतरी 44.99 प्रतिशत दर्ज की गयी थी.
बीते वित्तीय वर्ष 2016-17 में राज्य के सभी बैंकों में 2 लाख 80 हजार 370 करोड़ रुपये जमा हुए, जिसमें महज एक लाख 23 हजार 191 करोड़ रुपये के ही ऋण बांटे गये. बचे हुए पैसों को बैंक दूसरे राज्यों में वितरित करते हैं. यहां बैंकिंग कारोबार में पिछले 12 साल में 65-70 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. फिर भी सीडी रेशियो नहीं सुधर रहा है. ग्रामीण इलाकों में भी लोग बैंकों के प्रति काफी तेजी से आकर्षित हो रहे हैं.
इन कारणों से नहीं सुधर रही स्थिति
– बैंक वाले लोन देने में नियम-कानून के अलावा इतने तरह के सवाल खड़े कर देते हैं कि एक सामान्य आदमी के लिए इसे पूरा करना संभव ही नहीं हो पाता.
– ऋण या स्वरोजगार या स्वयं सहायता समूहों जैसी योजनाओं में बैंक वाले ऋण देने में रुचि ही नहीं दिखाते.
– बिहार की 80 फीसदी आबादी कृषि पर निर्भर है, फिर भी कृषि और पशुपालन के क्षेत्र ऋण बांटने की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है.
– यहां कोई उद्योग-धंधे भी नहीं होने से बैंक वाले बड़े लोन नहीं दे पाते हैं. छोटे-छोटे लोन से सीडी रेशियो नहीं सुधर सकती.
– किसी बड़ी कंपनी या उद्योग घरानों का निवेश नहीं होने से कोई बड़ा व्यावसायिक केंद्र विकसित नहीं हो पाया है, जिससे बैंक के पास सुरक्षित ऋण देने का कोई ठोस आधार नहीं है.