चंपारण सत्याग्रह पर प्रभात खबर के आयोजन में शामिल हुईं मशहूर हस्तियां, पढ़ें गांधी व मौजूदा दौर पर उनके विचार
यह एक अनूठा आयोजन था. यहां न कोई लेफ्ट था, न राइट. न विचारधारा की लकीर, न ऊंच-नीच की दूरियां. हर तबका, वर्ग और उम्र के लोग यहां ‘गांधी की राह, देश की जरूरत’ विषय पर विमर्श के लिए इकट्ठे हुए थे. मौका था प्रभात खबर की ओर से पटना के मौर्या होटल में आयोजित […]
यह एक अनूठा आयोजन था. यहां न कोई लेफ्ट था, न राइट. न विचारधारा की लकीर, न ऊंच-नीच की दूरियां. हर तबका, वर्ग और उम्र के लोग यहां ‘गांधी की राह, देश की जरूरत’ विषय पर विमर्श के लिए इकट्ठे हुए थे. मौका था प्रभात खबर की ओर से पटना के मौर्या होटल में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी का. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि आजादी के बाद देश अगर गांधी की राह पर चला होता, तो आज यह दुनिया में आदर्श होता. आज देश की सभी समस्याओं का हल गांधी हैं. गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी ने कहा कि गांधी की भक्ति आसान है, लेकिन उनकी राह चलना कठिन. इसके लिए जिगर की जरूरत है. गांधी शांति प्रतिष्ठान, नयी दिल्ली के अध्यक्ष कुमार प्रशांत ने विमर्श के जरिये आज की सभ्यता का विकल्प खोजने का आह्वान किया, तो वरिष्ठ पत्रकार मधुकर उपाध्याय ने जल्द-से-जल्द गांधी की दृष्टि व दिशा की ओर लौटने की जरूरत बतायी. वहीं, गांधी संग्रहालय, पटना के निदेशक रजी अहमद ने कहा कि चंपारण शताब्दी वर्ष के मौके पर नीतीश ने बड़े स्तर पर कार्यक्रम कर बड़ी लकीर खींची है, जिसकी अब नकल हो रही है.
गांधी के विचारों में सभी संकट का हल : मुख्यमंत्री
आजादी के बाद यदि गांधीजी की बात को मान कर चले होते, तो भारत एक आदर्श राष्ट्र बनता और दुनिया के दूसरे मुल्कों को यहां से सबक सीखने का अवसर मिलता, लेकिन यह नहीं हुआ. गांधीजी की बात को नजरअंदाज कर आज हम कई समस्याओं से घिरे हैं. आज देश के सामने जो समस्याएं हैं, उसका समाधान गांधी के अलावा किसी और के पास नहीं है. यह बात मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंगलवार को प्रभात खबर की ओर से गांधी की राह देश की जरूरत विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में कही.
मुख्यमंत्री ने कहा कि गांधी जी ने अहिंसा के सहारे आजादी दिलायी, लेकिन आजादी जब मिलने जा रही थी, तब कोई गांधीजी की बात सुनने के लिए कोई तैयार नहीं थे. देश का बंटवारा हो गया, वह एक परिस्थिति थी, जिस पर किसी को ब्लेम करने की जरूरत नहीं है, लेकिन, उसके बाद का जो हिंसा का माहौल शुरू हुआ, उसे दूर करना पड़ेगा. मन के अंदर से हिंसा के भाव को दूर करना होगा.
चंपारण ही क्यों, पूरे देश के किसानों को मिले उनका हक
मुख्यमंत्री ने कहा कि चंपारण में आंदोलन कर रहे पंकज जेपी आंदोलन के हमारे सहयोगी रहे हैं. हमने सबके सामने बात करायी है. सरकार की ओर से जो काम किये जाने हैं, वह वहां करेंगे, ताकि चंपारण में लंबे काल से जो किसान अभियान चला रहे हैं, उसमें उन्हें कामयाबी मिले. यह हमलोगों की ड्यूटी है और हमारा फर्ज है. यदि चंपारण के किसानों को हक मिला, तो पूरे देश के किसानों को क्यों नहीं मिलना चाहिए?
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने 2008-12, 2012-17 का कृषि रोड मैप बनाया और अब 2017-22 की तैयारी हो रही है. इसका आधार है कि किसानों की आय बढ़े. बिहार में 76 प्रतिशत लोग अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर हैं और 89 फीसदी लोग गांव में रहते हैं
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हमलोग उनके लिए पूरे तौर पर काम करने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि उनकी दशा बेहतर हो सके. हमारे लिए किसान का मतलब सिर्फ जमीन का मालिक नहीं, बल्कि जिसका संबंध खेती से है, चाहे उसके नाम से जमीन हो या न हो, मजदूर हो या दूसरे के खेत में काम करनेवाला हो, उन सब को किसान मानते हुए उनकी आमदनी बढ़े, यह हमलोगों का प्रयास है. गांधीजी ने कहा था कि गांवों का विकास करो. यदि मुंबई और दिल्ली का विकास होगा और गांव पीछे रह जायेंगे, तो इस विकास का कोई मतलब नहीं है
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दिमाग पढ़नेवाली मशीन आयी तो कैसे रह पायेंगे जिंदा
मुख्यमंत्री ने कहा कि टेक्नोलॉजी का विकास हो रहा है और प्रकृति से छेड़छाड़ हो रहा है. क्लोनिंग की बात हो रही है, आदमी का भी हो जायेगा. टेक्नोलॉजी वहां पहुंच जा रही है कि आदमी क्या सोच रहा है यह पता चल जायेगा. इससे उनकी प्राइवेसी का क्या होगा? ऐसे में क्या कुछ बचेगा? जब सामनेवाले की बात पूरी तरह जान जायेगा, आदमी जीवित ही नहीं रह पायेगा. मशीन की तरह हो जायेगा. मोबाइल आ गये हैं. अब तो चेहरा देख कर बात हो जाती है (वीडियो कॉलिंग). सुविधाएं मिल रही हैं, लेकिन इसका क्या असर हो रहा है, इसे जानना होगा. उन्होंने कहा कि चिड़िया (गोरैया) कम हो रही है. प्रकृति से छेड़छाड़ हो रहा है. गंगा की अविरलता कम हो रही है. गंगा के ऊपरी तल पर छेड़छाड़ और अंतिम छोर पर उसे अवरुद्ध करने से इसकी अविरलता खत्म हो जायेगी.
गांधी की स्थिति देवता की तरह, लोग करना चाहते हैं पूजा
सीएम ने कहा कि महात्मा गांधी की स्थिति देवता की तरह हो गयी है. लोग उनकी पूजा करना चाहते हैं. उनके बारे में कोई बुरा सुनना पसंद नहीं करता है, लेकिन उनकी बातों को कोई अपनाता नहीं है. सब जानते हैं कि उनकी राह पर चलना कठित है. हमारा मकसद है कि नयी पीढ़ी तक उनके विचारों को पहुंचाया जाये और वे प्रेरित होकर उसे ग्रहण कर सकें. अगर 10-15 फीसदी युवा भी इसे अपना लेंगे, तो अगले 15-20 साल में समाज बदल जायेगा.
मुख्यमंत्री ने चंपारण शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में 10-11 अप्रैल को पटना में आयोजित राष्ट्रीय परिचर्चा, मुजफ्फरपुर, मोतिहारी में हुई पदयात्रा और राजकुमार शुक्ल के गांव में अप्रैल में आयोजित कार्यक्रमों के बारे में विस्तार से बताया. उन्होंने 1917 में चंपारण सत्याग्रह की घटनाओं पर भी प्रकाश डाला.
हर स्कूल-कॉलेज होना चाहिए मॉडल, सब को मिले ज्ञान का अधिकार
सीएम नीतीश कुमार ने कहा कि गांधीजी ने समान शिक्षा प्रणाली की बात कही थी, लेकिन शिक्षा प्रणाली अनेक हो गयी. हमलोगों से जो कुछ भी संभव होगा उसे करने की कोशिश कर रहे हैं. मॉडल स्कूल बनायेंगे, मॉडल कॉलेज बनायेंगे. हर स्कूल मॉडल स्कूल होना चाहिए, हर कॉलेज मॉडल कॉलेज होना चाहिए. सबको ज्ञान प्राप्त करने का अधिकार है.
उन्होंने कहा बिहार में स्कूल की कमी थी तो गांधीजी ने स्कूल खोला. स्वच्छता, स्वास्थ्य के लिए भी काम किया. चंपारण सत्याग्रह वर्ष को लेकर गांधीजी की ओर से स्थापित स्कूलों का जीर्णोद्धार होना है. शिक्षा विभाग को भी निर्देश दिया गया है कि बुनियादी विद्यालयों को पुनर्जीवित करने के लिए ठोस पहल करें.
जीएम सरसों का फिर किया विरोध
मुख्यमंत्री ने जीएम सरसों का फिर विरोध किया. उन्होंने कहा कि जीएम मक्का व बैगन आया. इसका नुकसान हुआ है. अब जीएम सरसों लाने की बात चल रही है. इससे शहद और मधुमक्खी का क्या होगा? जिस प्रकृति ने हमें बहुत कुछ दिया है, इससे वह बाधित होगी. मुख्यमंत्री ने अर्थशात्रियों, भूगोलविद्, डॉल्फिन मैन समेत अन्य लोगों से अपील की कि वे लोगों को पर्यावरण के बारे में भी सिखाएं कि कैसे उसे बेहतर किया जा सके.
शराबबंदी पूर्ण ही लागू हो सकता है, आधा नहीं
मुख्यमंत्री ने कहा कि शराबबंदी लागू हो सकता है तो पूर्ण ही लागू हो सकता है, आधा नहीं. हम चंपारण शताब्दी वर्ष मना रहे हैं, तो उनके मन के अनुसार आगे बढ़ा जाये. विवेकानंद जी ने कहा था कि कोई अच्छा काम करो तो पहले लोग मजाक उड़ायेंगे, फिर विरोध करेंगे और बाद में साथ हो जायेंगे. हमने जब शराबबंदी लागू की तो क्या-क्या नहीं कहा गया. आज बिहार में इसको लेकर जागृत जनमत है. मानव शृंखला में चार करोड़ लोग शामिल हुए. यह भावना का प्रकटीकरण है. चंद लोग तो गड़बड़ी करते ही हैं, उस गड़बड़ी को ठीक करेंगे. यह बीमारी है तो उसका इलाज करेंगे. इसको लेकर कभी आदर्श स्थिति तो नहीं आ सकती है.
राजनीतिक आंदोलन तो हुआ, अब सामाजिक आंदोलन होगा
सीएम नीतीश कुमार ने कहा कि बिहार सालों पहले से सत्ता का केंद्र रहा है. यहां राजनीतिक आंदोलन होता रहा है, अब सामाजिक आंदोलन भी होगा. सामाजिक क्षेत्र में परिवर्तन की आवश्यकता है. बिहार में दहेज प्रथा व बाल विवाह के खिलाफ सशक्त अभियान चलेगा. सोसल रिफॉर्म के प्रति यहां के लोग एकजुट हैं.
जरूरतों की पूर्ति हो सकती है, लालच की नहीं
सीएम ने कहा कि इस पृथ्वी पर मनुष्य की जरूरतों को पूरा किया जा सकता है, लेकिन लालच की पूर्ति नहीं की जा सकती है. लोग किस तरह का जीवन जीना चाहते हैं. भोजन-आवास चाहिए. अच्छे से जीने के लिए गाड़ी भी चाहिए. लेकिन इससे किस तरह का वातावरण बन रहा है. लालच को और बढ़ावा नहीं देना चाहिए. जब तक यह नहीं होगा तब तक उद्धार नहीं हो सकता है.
मुख्यमंत्री ने राष्ट्रीय संगोष्ठी के आयोजन के लिए प्रभात खबर को धन्यवाद देते हुए कहा यह गांधीजी की ताकत का ही कमाल है कि राजद के प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय एक साथ बैठे हुए हैं. अखबार उठा कर देख लें, दोनों तरफ से वाक् युद्ध चलता रहता है, लेकिन आज दोनों साथ बैठे हैं, कट्सी प्रभात खबर. मुख्यमंत्री ने कहा, हम तो चाहेंगे अलग-अलग विचारों के लोग इसी तरह से साथ बैठा करें. समाज में सहिष्णुता का माहौल हो. लोकतंत्र चलेगा तो सद्भावना और सहिष्णुता से चलेगा. इसके सिवा कोई उपाय नहीं. आज गांधी की राह को अपनाने की जो बात हो रही है, बड़ी बात है. इस तरह का आयोजन होते रहना चाहिए.
नीतीश जी, पूरे देश के गांधी बनिए : तुषार गांधी
शराबबंदी की वजह से कुछ लोग जरूर आपका मजाक उड़ाते होंगे, जिनकी शामों का आनंद खराब हो गया, मगर वे गरीब जरूर आपको दुआएं देंगे, जिनकी शाम का चूल्हा इसकी वजह से राख नहीं हुआ होगा. शराबबंदी के जरिये आपने गांधी की राह पर चलने का जिगर दिखाया है. अब आप पूरे हिंदुस्तान को उस मार्ग पर लाने का जिगर दिखाइए. नीतीश जी, अब आप पूरे देश के लिए गांधी बनिए. ये बातें मंगलवार को गांधीजी के प्रपौत्र व लेखक तुषार गांधी ने प्रभात खबर की राष्ट्रीय संगोष्ठी में कही.
उन्होंने कहा कि हिंदू महासभा के लोग मुंबई में नाथूराम गोडसे का मंदिर बनाने जा रहे हैं. मैं उस मंदिर का विरोध नहीं करूंगा. जिनकी संस्कृति हत्यारों को पूजनेवाली है, वे पूजें. मगर उस मंदिर में जाकर उस नकाब को मैं जरूर खींच डालूंगा, जो देशभक्ति के नाम पर लगाया जा रहा है. इसके लिए 56 इंच का सीना नहीं, शेर का जिगर चाहिए. गांधी का मार्ग है ही ऐसा. इस पर चलने के लिए शेर का जिगर चाहिए होता है. गांधी मार्ग आसान नहीं है, यह बहुत कठिन है. उस मार्ग पर चलने की ताकत बहुत कम लोगों में होती है, इसलिए आजकल गांधी की भक्ति की जाती है. उन्होंने कहा कि आजकल बातों को बढ़ा-चढ़ा कर कहा जाता है, पर काम के लिए बातों की जरूरत नहीं होती, काम अपने-आप ही बोलता है. आज भी हिंदुस्तान में वही काम सफल होता है, जिससे गरीब से गरीब, कमजोर से कमजोर और लाचार से लाचार व्यक्ति का सशक्तीकरण हो.
कस्तूरबा का योगदान महत्वपूर्ण
तुषार गांधी ने चंपारण में कस्तूरबा गांधी के योगदान की खास तौर पर चर्चा की और कहा कि कस्तूरबा की मौजूदगी में ही उस आंदोलन का स्वरूप बदला. उनकी वजह से ही मोहन महात्मा बने. यह बापू की भी विवेकशीलता थी कि उन्होंने कस्तूरबा को कुछ करने से रोका नहीं. वे उन्हें अकेले छोड़ कर चले गये थे और वह अनपढ़ महिला एक अनजान इलाके में अकेले स्कूल चलाती रही थीं. चंपारण में बापू की स्तुति तो की जाती है, मगर चंपारण का एक और जो पहलू है, उसे हम नजरअंदाज कर देते हैं. वह है नारियों का सशक्तीकरण, महिलाओं का सशक्तीकरण. चंपारण में अगर बापू की जीत थी, अगर वहां बापू के कार्यप्रणाली की जीत हुई तो उतनी ही अहमियत कस्तूरबा के काम की भी थी.
अगर कस्तूरबा बापू के साथ चंपारण में नहीं होती, तो बापू का जो प्रभाव वहां पड़ा वह इतना असरकारक नहीं होता. कस्तूरबा सिर्फ बापू की अर्धांगिनी नहीं थी, उनकी फिलॉसफी की जननी भी थी. आज जब हम महिला सशक्तीकरण की बात करते हैं, इलेक्टेड बॉडी में महिलाओं के आरक्षण की बात करते हैं, तब यह समझना जरूरी है कि उस वक्त में चंपारण में कस्तूरबा बापू के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़ी हुई थीं. जब बापू खेड़ा का सत्याग्रह संभालने चले गये थे, तब भी उनकी गैरमौजूदगी में कस्तूरबा अकेले चंपारण में उनका काम संभाल रही थीं. चंपारण में सिर्फ सत्याग्रह नहीं हुआ था, समाज को सुधारने का काम भी हुआ था और उसकी पूरी जिम्मेदारी कस्तूरबा के कंधे पर थी.
कस्तूरबा जैसी अनपढ़ औरत ने वहां स्कूल शुरू किया और उसका संचालन करने लगीं. शुरुआत में जब बापू चंपारण गये थे तो उन्होंने देखा कि उनकी सभा में और सार्वजनिक जगहों में महिलाएं नजर नहीं आ रही हैं. उनको लगा शायद परदा प्रथा की वजह से महिलाएं बाहर नहीं आ रही हैं. तो उन्होंने कस्तूरबा से कहा कि घरों में जाओ और महिलाओं को बाहर लाओ.
तब जाकर पता चला कि गरीबी के कारण स्त्रियों के पास पहनने के लिए कपड़े नहीं थे. इसलिए अपनी लाज बचाने के लिए वे घर के अंधेरे में बंद रहती थीं. उस वक्त अपने काठियावाड़ी लिबास को देख कर गांधी ने सोचा कि मेरे तन पर कितने कपड़े हैं, जबकि इस देश में महिलाओं के पास लाज बचाने के लिए भी कपड़े नहीं हैं. यह जानकारी बापू को नहीं मिल पाती अगर वहां कस्तूरबा नहीं होतीं. इसलिए जब भी चंपारण के इतिहास के बारे में बात हो तो कस्तूरबा का योगदान याद रखना बहुत जरूरी है.
मोहन से महात्मा का जो सफर है, उस सफर पर चलने के लिए बा ने उन्हें सशक्त किया. कस्तूरबा को उनके योग्य मान-सम्मान देना बहुत जरूरी है. मैं तो परपोता हूं इसलिए बोलूंगा. मगर यह सिर्फ वंशज का सम्मान नहीं है, देश का सम्मान है कि उस वक्त कैसे जिम्मेवारी डाल कर स्त्रियों को सशक्त किया जाता था.
चंपारण के बाद ही देश के आजादी के आंदोलन में नारियों की भागीदारी बढ़ने लगी. लेकिन आज भी हमारे देश में स्त्रियों को कमजोर माना जाता है, ऐसा सोचा जाता है कि स्त्रियों की सुरक्षा पुरुषों को करनी चाहिए, यही उन पर होने वाली हिंसा की सबसे बड़ी वजह है. अगर उस वक्त बापू ने सोचा होता तो क्या वे कस्तूरबा को जिम्मेदारी देकर अकेले चंपारण में छोड़कर जाते? और कस्तूरबा ने उस जिम्मेदारी को अच्छी तरह निभाया. हालांकि कस्तूरबा को डराया गया. उनके स्कूल में हर जाति के बच्चे एक साथ पढ़ते थे, इससे कुछ लोगों को परेशानी होती थी.
इसके अलावा एक बार तो भितिहरबा के स्कूल को भी जला दिया गया. मगर कस्तूरबा डरी नहीं. वापस गुजरात नहीं गयी. उन्होंने उस स्कूल को दुबारा बनवा कर उसे चलाया. आज भी उस स्कूल के अवशेष हैं, भितिहरबा के आश्रम में. गांधी का मार्ग अगर हमें प्रेरित करता है तो उस मार्ग को तैयार करने में कस्तूरबा ने जो योगदान दिया है उसे हमें स्वीकार करना पड़ेगा. तभी सही मायने में नारी सशक्तीकरण हो पायेगा.
तुषार ने कहा, कई और पहलू हैं चंपारण के. कहा जाता है कि दांडी के बाद अंगरेजों की भारत पर पकड़ कमजोर होती चली गयी. मगर उस पकड़ को कमजोर सबसे पहले चंपारण ने किया था. और गांधी का जो मार्ग है वह मोतिहारी से शुरू होता है और दांडी से होते हुए दिल्ली के बिड़ला हाउस तक पहुंचता है.
मजे की बात तो ये है कि उस हत्यारे की गोलियां गांधी को तो मार सकी, मगर उनके मार्ग को कभी ओझल नहीं कर पायी. और आज वही उनकी सबसे बड़ी पीड़ा है. व्यक्ति को तो उन्होंने हटा दिया, मगर उस विचार, उस सोच को नहीं खत्म कर पाये. मुंबई में कल्याण के पास हिंदू महासभा के लोग गोडसे का स्मारक बनाने जा रहे हैं और मुझसे पूछा गया है कि मैं क्या करूंगा. मुझसे उसके खिलाफ आंदोलन करने कहा जा रहा है. मैं क्यों उसके खिलाफ आंदोलन करूं.
अगर मुझे अधिकार है बापू की भक्ति करने का, उनका सम्मान करने का, उनके विचारों को समझने का. तो मैं वही अधिकार उस संस्कृति को क्यों नहीं दूं जो हत्यारों की पूजा करना चाहते हैं. अगर मैं उनको वह अधिकार देता हूं तो व्यास पीठ पर खड़े होकर मैं अपना विचार भी सक्षम तरीके से दे सकूंगा. इसलिए मैं कहता हूं कि आप उस हत्यारे के सम्मान में मंदिर जरूर बनाइए, क्योंकि आपकी परंपरा हत्यारी परंपरा है. मेरी परंपरा अहिंसा की परंपरा है.
सहिष्णुता की परंपरा है. लेकिन मैं चुपचाप नहीं रहूंगा, उस हत्यारे के मंदिर में जाकर उसे जो आप देशभक्ति का नकाब पहनाने जा रहे हैं, उसे निकाल भी दूंगा. इसके लिए शेर का जिगर चाहिए, 56 इंच की छाती नहीं. ये जरूरी है कि हम अपने विचार से उनको जवाब दें. आजकल कहा जाता है कि हम उनका अनुकरण करें, मगर उनका अनुकरण करके हम अपने विचारों के प्रति अविश्वास जतायेंगे. इसलिए हमें बदलना नहीं है, हमें उनको बदलना है. और यह काम गांधी के मार्ग पर चलकर ही मुमकिन है.
चंपारण की बात है इसलिए मैं अपनी बात खत्म करने से पहले यह जरूर कहना चाहूंगा कि अगर सौ साल पहले चंपारण के नील किसानों की समस्या थी जिसके लिए मोहनदास करमचंद गांधी चंपारण गये थे, वहां आज भी बहुत बदलाव नहीं आया है. आज भी मोतिहारी में मजदूर न्याय की गुहार लगा रहे हैं. उनका मार्ग या उनका काम शायद गलत हो सकता है. लेकिन न्याय की उनकी पुकार गलत नहीं है. उनको न्याय मिलना चाहिए. इसलिए आज इस मंच से मैं प्रार्थना करूंगा कि मोतिहारी के मजदूरों को आज गांधी चाहिए. और नीतीश जी, वह गांधी आप बनिए, मोतिहारी के मजदूरों को न्याय दिलाइये.
यह सिर्फ मोतिहारी के किसानों-मजदूरों की गुहार नहीं है, आज देश भर के किसानों-मजदूरों को लाचार कर दिया गया है. बापू ने हिंदुस्तान की पहली सरकार को एक ताबीज दिया था, और कहा था कि जब भी कोई नीति का विचार करो. तो गरीब से गरीब, कमजोर से कमजोर और लाचार से लाचार व्यक्ति जो आपको मिला होगा उसका चेहरा अपने आंखों के सामने लाना. तो फिर अपने आप से यह प्रश्न करना कि जो काम आप करने जा रहे हैं, उससे इस व्यक्ति के जीवन पर कोई फर्क पड़ेगा या नहीं. उसको गरीबी और अशिक्षा के अंधेरे से निकालेगा या नहीं, स्वावलंबी बनायेगा या नहीं. अगर प्रमाणित तरीके से जवाब हां है, तभी समझना कि जो काम आप करने जा रहे हैं वह मायने रखती है. वरना ये समझना कि आप सिर्फ अपने लिए वो काम कर रहे हो.
आज नेताओं की एक ऐसी जमात बन गयी है जो सारे कार्य अपने बायोडाटा के लिए करते हैं. अपने बायोडाटा में अच्छा दिखे इसलिए वे प्रयोजन करते रहते हैं. समाज पर उसका कोई असर पड़ता नहीं है, इसलिए आज कई ऐसी नीतियां हैं जिनका सोशल ऑडिट कभी नहीं हुआ.
ऐसा एक कार्य बिहार में मुख्यमंत्री जी ने करके दिखाया, जिसका सोशल ऑडिट होता रहेगा. मैं मानता हूं कि उसमें आपको डिस्टिंक्शन से पास भी कर दिया जायेगा. ये जो शराबबंदी का काम आपने किया है, उसका लोग मजाक उड़ाते होंगे. जिनको लगता है कि उनकी शामें खराब हो गयी हैं. लेकिन ऐसे भी गरीब हैं जिनका चूल्हा उस नशे की वजह से राख नहीं हो पाया. उसकी दुआएं आपको मिलेंगी. ये आपके लिए गर्व की बात होगी.
इसलिए मैं आपसे विनती करता हूं कि गांधी के मार्ग पर चलने का जिगर तो आपने दिखाया है. हिंदुस्तान को उस मार्ग पर लाने का भी जिगर आप दिखाइए. देश के लिए गांधी बनिए. मैं प्रभात खबर अखबार का शुक्रिया अदा करना चाहता हूं कि उन्होंने मुझे दुबारा पटना आने का अवसर प्रदान किया. शुक्रिया, धन्यवाद.
भारत को जानने के लिए गांधी को जानना होगा
‘गांधी की राह : देश की जरूरत’ विषय पर मंगलवार को प्रभात खबर की ओर से राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित हुई. इसमें वक्ताओं ने गांधी की विचारधारा और उनके बताये रास्ते पर चल कर देश की बुनियादी सवालों के समाधान निकालने की बात कही. संगोष्ठी में चंपारण सत्याग्रह से लेकर देश विभाजन के बाद तक की परिस्थितियों और आजादी के बाद बनी सरकारों के लक्ष्य पर विस्तार से चर्चा हुई. देश की मौजूदा समस्या, माहौल और इसके समाधान को फोकस में रख कर सभी वक्ताओं की राय थी कि गांधी की राह ही देश की मौजूदा समस्याओं का समाधान है. संगोष्ठी में भाजपा, जदयू, कांग्रेस, राजद व वाम दलों के प्रतिनिधि समेत समाज के सभी तबके के लोगों ने हिस्सा लिया.
शुरू में प्रभात खबर के प्रधान संपादक आशुतोष चतुर्वेदी ने विषय प्रवेश कराते हुए कहा कि भारत को जानने के लिए हमें गांधी को पढ़ना पड़ेगा. आज हो या कल, हिंदुस्तान का मतलब ही गांधी है. गांधी के विचार आज भी उसी तरह से प्रासंगिक है, जैसे आजादी के वक्त या उससे पहले थे. उन्होंने कहा कि हर घटना की एक शताब्दी आती है. पर इतिहास बार-बार हमारे पास आता है.
इतिहास हमें सोचने को मजबूर करता है कि इससे सीख लेकर आंखें खोलें. चंपारण का इतिहास भी कुछ ऐसा ही है, जो हमें एक सीख देता है. हमें बताता है कि मीडिया को ऐसे मुद्दे उठाने चाहिए, जो जन सरोकार से जुड़े हों. गांधी के जुड़े सत्याग्रह के कामों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि गांधी जी ने कई महत्वपूर्ण कार्य किये. लेकिन उनके तीन कार्य काफी महत्वपूर्ण थे.
पहला गांधी जी ने 1918 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होने के बाद कांग्रेस का कायाकल्प कर कांग्रेस को गांव तक पहुंचाया. दूसरा महत्वपूर्ण काम था स्वतंत्रता आंदोलन में अहिंसा को हथियार बनाना. शराबबंदी के साथ विदेशी सामानों के बहिष्कार को स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा बनाना उनका तीसरा महत्वपूर्ण कार्य था. इसके माध्यम से गांधीजी ने भारत में नैतिक समाज बनाने में योगदान दिया.
गांधीजी की कर्मठता का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि 1909 में गांधीजी ने हिंद स्वराज नाम की एक किताब लिखी. यह किताब के 275 मूल पांडुलिपि में थी. इसके 40 पेज को गांधीजी ने बायें हाथ से लिखा था, क्योंकि निर्धारित समय सीमा में उन्हें वह किताब पूरी करनी थी. इस बात से हम समझ सकते हैं कि वह बायें हाथ से भी उसी तरह सहज रूप से लिख पाते थे जिस तरह दायें हाथ से.
गांधी के विचारों पर होगी बच्चों के बीच प्रतियोगिता
मुख्यमंत्री ने कहा कि गांधीजी के विचारों को जन-जन तक पहुंचाने का कार्यक्रम शुरू होगा. इसमें बापू आपके द्वार कार्यक्रम और स्कूलों में प्रार्थना सभा के बाद बच्चों को गांधीजी के जीवन से जुड़ी कहानियां सुनायी जायेंगी. बच्चों के लिए गांधी के विचारों पर प्रतियोगिता होगी और विजयी बच्चों को पुरस्कृत किया जायेगा. 21 अप्रैल 2018 तक चलनेवाले चंपारण शताब्दी वर्ष के बाद 2019 महात्मा गांधी की 150वीं जयंती का साल होगा. तब तक गांधी के विचारों को जन-जन तक पहुंचा देना है. इसके लिए उनके जीवन पर आधारित फिल्में गांव-गांव में दिखायी जा रही है.
गरीबी की चिंता किये बिना गांधी मार्ग बेमानी
चंपारण का महत्व इसलिए है कि वहां जो सबसे प्रताड़ित तबका था, उसे न्याय दिलाने के लिए, उसे सशक्त करने के लिए कार्य किया गया. उसमें सिर्फ देश की आजादी की बात नहीं थी, व्यक्ति की आजादी की बात थी.
गरीबी से आजादी दिलाने की बात थी. बापू ने कहा था कि गरीबी इनसान के साथ सबसे बड़ी हिंसा है. बदनसीबी ये है कि जब हम चंपारण सत्याग्रह के शताब्दी वर्ष को मनाने जा रहे हैं, उस वक्त भी हमारे मुल्क की सबसे बड़ी समस्या गरीबी की हिंसा ही है. जब तक हम उसकी चिंता नहीं करेंगे, उसका समाधान नहीं करेंगे, तब तक गांधी का मार्ग बेमानी ही रहेगा.
डॉ रामचंद्र पूर्वे
राजद प्रदेश अध्यक्ष
राष्ट्रपिता को फिर से समझने और समझाने की आवश्यकता है. गोष्ठी से गांधी जी को और गांधी जी की राह को समझने का मौका मिला. उस राह पर चल कर ही एक राष्ट्र को गांधी जी के सपनों के अनुरूप निर्माण किया जा सकता है.
नित्यानंद राय
अध्यक्ष, िबहार भाजपा
चंपारण सत्याग्रह व गांधी जी के बारे में लोगों को और अधिक जानने का मौका मिलेगा. ऐसे आयोजन से सबसे अधिक लाभ युवा पीढ़ी को होगा, जो गांधी जी के बारे में कम जानते हैं. नयी पीढ़ी गांधी जी के आदर्श को अपनाये.
श्याम रजक
सदस्य, बिहार विस
चंपारण सत्याग्रह और महात्मा गांधी के बारे में जानने का बहुत ही अच्छा अवसर िमला. तुषार गांधी, कुमार प्रशांत, मधुकर उपाध्याय और रजी अहमद ने जो बातें गांधीजी के बारे में बतायी उससे कई नयी बातों से रूबरू हुआ.
शैबाल गुप्ता
अर्थशास्त्री
हिंदुस्तान ही नहीं, दुनिया को सही ढंग से चलने का रास्ता गांधीवाद बताता है. गांधी जी के बताये मार्ग में हर समस्या का समाधान है. विश्व को तरक्की का रास्ता अख्तियार करना है, तो गांधीवाद की राह पकड़नी हाेगी.
प्रो रास बिहारी सिंह
कुलपति, पटना विवि
आज की युवा पीढ़ी को गांधी जी के बारे में काफी कम जानकारी है. गांधी का जीवन ही उनका संदेश था. वह जो कहते थे पहले खुद प्रयोग करते थे. सत्य, अहिंसा व जितने भी उनके सिद्धांत थे यह सिर्फ सैद्धांतिक नहीं थे बल्कि वे खुद अमल करते थे.
प्रो आरके सिन्हा
कुलपति, एनओयू
कार्यक्रम में गांधी जी के हर पहलु पर चर्चा हुई. यह एक अच्छी पहल है और होते रहना चाहिए. गांधी जी के विचार हमेशा से प्रासंगिक रहे हैं. गांधी जी ने जो कुछ कहा पहले स्वयं पर प्रयोग किया. ऐसे ही उन्हें महात्मा नहीं कहते थे.
सुधा वर्गीस
समाजसेवी
गांधी जी को जानने के बाद ऐसा लगता है जितना आगे की वह सोचते थे, हमारी सोच वहीं पर खत्म हो जाती है. हम हर काम तत्काल को सोच कर करते हैं. हम उसके आगे के परिणामों को नहीं देखते. हमें उनसे सीख लेनी होगी.
बिपिन कुमार सिंह
निदेशक, गोल इंस्टीच्यूट
इस तरह के कार्यक्रम अवेयरनेस लिए काफी जरूरी है. समाज में सामंजस्य होना, सांप्रदायिकता से उठ कर काम करना यह जरूरी है. मुख्यमंत्री ने इस कार्यक्रम में जिस तरह से पर्यावरण के इश्यू को उठाया यह काफी अच्छा लगा.
मन में उठते सभी सवालों के जवाब गांधी के पास : कुमार प्रशांत
गांधीवादी कुमार प्रशांत ने कहा कि इस देश में विमर्श के मंच खत्म होते जा रहे हैं, जबकि भाषण के मंच बढ़ रहे हैं. एक ऐसा देश बनाने की कोशिश हो रही है, जहां हाथ उठाने वाले लोगों की जरूरत है. या तो समर्थन में हाथ उठाया जाये या किसी के विरोध में. गांधी का आज दो ही मतलब है एक विमर्श, एक विकल्प. जब देश आजाद हुआ तो घनश्याम दास बिरला ने कहा कि अब आजादी हो गयी.
सत्याग्रह, धरना, जुलूस जैसे हथियार अप्रासंगिक हो गये, अब आप किस हथियार से लड़ेंगे. गांधीजी ने कहा कि इससे आगे की लड़ाई मैं जनमत के हथियार से लड़नेवाला हूं. लोगों की राय को हथियार की तरह इस्तेमाल करना, यह वह रणनीति है, जिससे गांधी आजादी के बाद का काम करनेवाले थे. बहुत तरह की चिंताएं देश की वर्तमान स्थिति के बारे में होती हैं. हम ऐसे दौर में पहुंच गये हैं, जहां पार्टियां, व्यक्ति, शासन अप्रासंगिक हो गये हैं. अब एक नया दर्शन ढूंढ़ने की जरूरत है.
कुमार प्रशांत ने कहा कि आपस में विमर्श होना चाहिए, एक खोज होनी चाहिए कि विकल्प क्या है, जाना किधर है. विमर्श बहुत जरूरी है, इससे हम आगे आनेवाले खतरों को पहचान सकेंगे. विकल्प इसलिए कि उन खतरों से आगे देश को कैसे ले जाये, उसका रास्ता ढूंढ़ा जा सकेगा. उन्होंने कहा कि मेरा गांधी से सरोकार इसलिए है कि मेरे मन में उठने वाले सवालों के जवाब उनके पास मिलते हैं. आज नयी सभ्यता का दर्शन हमें ढूंढ़ना है. देश में बहुत जगह शराबबंदी हुई है, लेकिन जिस तरह इसको बिहार सरकार ने लागू किया है वह अन्य जगह नहीं है.
बिहार महात्मा गांधी का चंपारण, विनोबा का भूदान, जयप्रकाश की संपूर्ण क्रांति सबकुछ की जन्मभूमि रही है. जेपी कहा करते थे कि लोकतंत्र में दो तरह की ताकत होती है एक लोक की, दूसरा तंत्र की. दोनों के बीच जुगलबंदी हो तो लोकतंत्र बेहतर चलता है. चंपारण बिहार का बीता कल नहीं है. यह बिहार का भविष्य भी है. जहां हम बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं. यह इतिहास नहीं, इतिहास की रोशनी में वर्तमान को देखने की कोशिश है.
गांधी का मूल भाव अन्याय के िखलाफ खड़ा होना : मधुकर
वरिष्ठ पत्रकार मधुकर उपाध्याय ने कहा कि गांधी के सत्याग्रह की पहली प्रयोगशाला भारत के संदर्भ में चंपारण है, जबकि वहां गांधी जी ने न कोई धरना दिया न जुलूस निकाला और न ही गिरफ्तारी हुई पर सत्याग्रह किया. फरवरी 1915 में सीएफ एन्ड्रयूज ने गांधी जी से पूछा कि दक्षिण अफ्रीका की तरह भारत में आप कब आंदोलन करेंगे. गांधी जी ने कहा कि कम-से-कम पांच साल लगेंगे.
मैं समझना चाहता हूं कि मैं जिस तरह का आंदोलन करना चाहता हूं लोग उसके लिए तैयार हैं या नहीं. गांधी जी को चंपारण में ऐसा जरूर कुछ दिखा होगा कि उन्होंने उसे दो साल (10 अप्रैल 17) में ही कर दिया. सत्याग्रह दो शब्दों सत्य और आग्रह से मिल कर बना है. सत्य के साथ किसी को समस्या नहीं होती है.
सत्याग्रही का सत्य उसे पक्षपाती होने से बचाता है. गांधी का सबसे बड़ा योगदान था, वो एक दृष्टि थे, एक दिशा थे. दुर्भाग्य से अब न वो दृष्टि दिखाई पड़ती है और न वो दिशा. महात्मा गांधी केवल चश्मा नहीं थे, केवल छड़ी या खादी नहीं थे. गांधी का मूल भाव अन्याय के खिलाफ खड़ा होना, उसका विरोध करना है. छोटे-छोटे सवालों में वे नहीं उलझते हैं. महात्मा एक यात्रा में थे. रास्ते में एक धर्मशाला की पहली मंजिल पर रुके.
महादेव भाई हर शाम वहां एक दीया जला कर रखते थे. एक दिन तेज आंधी आयी और दीया बुझ गयी. महादेव देसाई आएं, तो देखा कि अंधेरा था और गांधीजी उसमें भी लिख रहे थे. महादेव भाई ने कहा कि आपने आवाज दी होती, तो मैं इसे जला देता. गांधी ने कहा कि पत्र लिखने के लिए प्रकाश की आवश्यकता नहीं होती है, पढ़ने के लिए होती है. चेनुआ अचेले नाइजीरियन लेखक ने कहा था कि मान लीजिए, एक कमरा है, जिसमें केवल एक ही खिड़की है. उसमें बदबू, सड़ांध और दुनिया भर की खराब चीजें रखी हैं.
एक आदमी जो खिड़की पर खड़ा है अंदर की तरफ देखता है. उसे गंदगी और खराबी दिखती है. दूसरा व्यक्ति जो कमरे के भीतर है और खिड़की से बाहर की तरफ देखता है, उसे खुला आसमान दिखता है, बच्चे स्कूल जा रहे हैं और चिड़ियां उड़ रही हैं. दोनों सत्य है. महज एक फुट का फासला है, लेकिन चीजें बदल जाती हैं.
नीतीश ने खींची बड़ी लकीर, नकल की हो रही कोशिश
प्रसिद्ध गांधीवादी व गांधी संग्रहालय पटना के निदेशक रजी अहमद ने कहा कि गांधी की राह कोई बहुत आसान नहीं रही. यह देश की बड़ी उपलब्धि है कि गांधी हमें मिले. उनके विचारों को बचाये रखना और जन-जन तक फैलाना बहुत बड़ा चैलेंज है, जिसे हमें स्वीकार करना होगा. उन्होंने चंपारण सत्याग्रह के शताब्दी वर्ष के मौके पर बिहार में आयोजित कार्यक्रम का उल्लेख करते हुए कहा कि नीतीश कुमार ने वृहद आयोजन कर बड़ी लकीर खींची है, जिसकी नकल करने की कोशिश हो रही है. दिल्ली के कनाॅट प्लेस में 45 लाख रुपये का चरखा लगाया गया है. इसे लगानेवालों को पहले गांधी के विचारों को अच्छे तरीके से समझना होगा. उन्होंने कहा कि देश की परिस्थितियों से लगता है कि भारत में फासिज्म आ गया है.
इस फासिज्म से लड़ने का रास्ता गांधी जी ने ही दिखाया था. उन्होंने कहा कि गांधी को तो हिप्पोक्रेटस ने ही मार दिया. अपने को गांधीवादी कहनेवाले और उनका नाम लेनेवाले हिप्पोक्रेटस रहे हैं. श्री अहमद ने कहा कि केंद्र में जब वाजपेयी की पहली सरकार बनी थी, तो गांधी जी पर आधारित पुस्तक के पंद्रह खंडों में बदलाव कर दिये गये थे.
नारायण देसाई व दीना मेहता ने जब इसे देखा था, तो जांच कमेटी बनी और फिर काफी हंगामे के बाद पहले अंक को ही आधिकारिक माना गया. उन्होंने कहा कि प्रिजर्व गांधी बहुत महत्वपूर्ण इश्यू है. कैरियर की शुरुआत से हम इस पर काम कर रहे हैं. अब तो जवाहर लाल नेहरू का नाम लेना भी जुर्म हो गया है. गांधी के विचारों को बचाना चुनौतीपूर्ण है. गांधी को हर कोई अपने हिसाब से देखता है.
उन्होंने आश्चर्य जताया कि 24 घंटे राम का नाम जपनेवाले गांधी को हिंदुओं का दुश्मन करार दिया जा रहा है. यह सिर्फ गांधी को नहीं, बल्कि देश को नुकसान पहुंचाने वाली बात है. गांधी के हत्यारों का महिमा मंडन ठीक नहीं.