पटना : अपने विवादास्पद बयानों और सोशल मीडिया पर कमेंट्स के चलते लगातार चर्चा में रहने वाले सिने अभिनेता और भाजपा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा इन दिनों बिहार की सियासत के केंद्र बिंदु बने हुए हैं. ताजा मामला है, बिहारी बाबू का लगातार ट्वीटर पर अपनी ही पार्टी के नेता सुशील मोदी परहमला करना . शत्रुघ्न सिन्हा ने 2014 के लोकसभा चुनाव, बिहार विधानसभा चुनाव 2015 और हाल में यूपी चुनाव को लेकर जिस तरह के ट्वीट करते रहे हैं, उससे लोगों को यही लगा कि वह पार्टी के लिये ‘कालीचरण’ हैं. बिहार विधानसभा चुनाव के रिजल्ट के तुरंत बाद वाले ट्वीट में उन्होंने सबकुछ कहने के बाद, यह कह दिया कि वे पार्टी के साथ मजबूती से खड़े हैं, लोगों को लगा उनका ‘दोस्ताना’ बरकरार है. लोकसभा चुनाव के दौरान ही उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी की ‘शान’ में कह डाला कि वह नंबर वन नेता हैं, उन्हें पीएम बनाया जाना चाहिए था. बिहारी बाबू के पहले भाजपा में कई नेताओं को पार्टी के थोड़ा सा भी विपरीत जाने पर निष्कासन से लेकर निलंबन तक का दंश झेलना पड़ा है, लेकिन बिहारी बाबू पर भाजपा आज भी मेहरबान है. सवाल उठना वाजिब है कि क्या शत्रुघ्न सिन्हा पार्टी की ढाल के रूप में एक महत्वपूर्ण रणनीति के तहत काम करते हैं ?
पूरी राजनीति का रुख अपनी ओरमोड़ लेते हैं शत्रु
राजनीतिक जानकारों की मानें तो शत्रुघ्न सिन्हा कई खास मौकों पर बयान देकर और ट्वीट कर पूरी राजनीति का रूख अपनी ओर मोड़ लेते हैं. बिहार की राजनीति में चौतरफा आरोपों से घिरे लालू परिवार पर उनके ही पार्टी के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी लगातार बेनामी संपत्ति को लेकर लगातार निशाना साध रहे थे. सुशील कुमार मोदी मीडिया को लालू की बेनामी संपत्ति का सबूत भी सौंप रहे थे, ठीक इसी बीच शत्रुघ्न सिन्हा का ट्वीटर पर लालू परिवार के समर्थन में बयान आता है. चर्चा, बेनामी संपत्ति से हटकर बिहारी बाबू के बयान पर सिमट जाती है. जानकारों की मानें तो केंद्र सरकार के तीन साल पूरे होने पर विरोधी केंद्र सरकार के कार्यों की समालोचना का प्लान बना रहे थे, तभी शत्रु के ट्वीट ने उनका ध्यान दूसरी ओर खींच लिया. राजनीतिक पंडित कहते हैं कि शत्रुघ्न सिन्हा ने जान बूझकर ट्वीट की बयानबाजी ऐन मौके पर शुरू की, जब बिहार में केंद्र सरकार के कार्यों को लेकर चर्चा या समीक्षा होती. एक तरह से बिहारी बाबू ने केंद्र सरकार के लिए ढाल का काम किया.
बेबाक और बिंदास बयान देते हैं शत्रु
हालांकि कई बार शत्रुघ्न सिन्हा अपने बयानों में अपने-आपको ‘क्रांति’ का अग्रदूत मानते हुए पार्टी नेतृत्व पर ही कई सवाल खड़े कर देते हैं. जरा उनके इस बयान पर नजर डालें, जब उन्हें बिहार विधानसभा चुनाव में प्रचार से दूर रखा गया. उन्होंने ट्वीट कर कहा कि मैं कोई राज्यसभा का सांसद नहीं हूं. मैं जनता के समर्थन से आया हूं और मैंने रिकॉर्ड मार्जिन से दो बार लोकसभा का चुनाव जीता है. मेरे पास आधार है. पूरी गंभीरता और प्रयासों के बावजूद बिहारी बाबू को प्रचार से दूर रखा गया. मेरे दोस्तों, मतदाताओं और समर्थकों को नीचा दिखाया गया. शत्रुघ्न सिन्हा के बयान कई बार पार्टी के प्रति उनके ‘नरम-गरम’ व्यवहार को रेखांकित करता है, तो कई बार उनके ‘खुदगर्ज’ होने का. वैसे उनके बयानों के बाद यह कयासबाजी शुरू हो जाती है कि उन पर ‘कयामत’ आने ही वाली है. हालांकि ‘कशमकश’ में सारी बातें भुला दी जाती हैं.
खुलेआम लालू से स्वीकारा था संबंध
बिहारी बाबू कई बार राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से संबंध के बारे में पूछे जाने पर अपने अंदाज में यह बयान देते हुए कहा था कि हां मेरे इन दोनों नेताओं से आपसी सौहार्दपूर्ण, पारिवारिक संबंध हैं. इसे राजनीतिक रूप से नहीं देखा जाना चाहिए. उन्होंने कहा था कि वह बीजेपी में हैं और मजबूती के साथ हैं, लेकिन स्टार प्रचारक नहीं है. बीजेपी की राजनीति को करीब से देखने वाले कहते हैं कि ऐसे बयानों के मायने बहुत बड़े हैं. शत्रुघ्न को संघ का अंदरूनी सपोर्ट हासिल है और संघ भी गाहे-बगाहे अपनी बात शत्रु के जरिये पार्टी के कुछ नेताओं तक पहुंचाता है, शायद इसी वजह से शत्रु के ऊपर बीजेपी के कई नेता जुबानी हमला तो बोलते हैं लेकिन अनुशासनात्मक कार्रवाई उन पर आजतक नहीं हुई.
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